पुरवाई के संपादकीय ‘तबस्सुम यानी कि किरण बाला सचदेव नहीं रहीं’ पर निजी संदेशों के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाएं

तरुण कुमार
जिस किसी ने भी तबस्सुम को रेडियो पर या tv पर देखा सुना है , वह उनकी दमदार और खनकती हुई आवाज़ कभी नहीं भूल सकता/ सकती है…
मीरा गौतम
आपने तब्बसुम को याद किया और बहुत सी बातें याद आयीं. उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि👏👏
समय को पलट देने का यह क्रांतिकारी पन्ना था. उस समय की हस्तलिपि ने दिल्ली दूरदर्शन को जो संस्कार दिये वे आज तलक कायम हैं.
तब्बसुम अपनी सौम्य मुस्कराटों और हँसती आँखों से सब हासिल कर लेतीं थीं. ऐसी शख़्सियत जाति धर्म से ऊपर होती हैं. गौर करने वाली थी- इन्टरव्यू लेने से पहले की उनकी गहन तैयारी और रिसर्च वर्क.
‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ साक्षात्कार लेने की तकनीक का नज़ीर बना.
‘दृश्य और श्रव्य धारावाहिकों में संवेदना और तकनीक के अन्तर्सम्बन्ध’ पर जो शोध विक्रम कराया था वह इसीलिए मानक बना कि दूरदर्शन और आकाशवाणी सामने थे.
यह थिसिस ‘आकाशवाणी कुरुक्षेत्र’ वालों ने नहीं ही तो लौटायी. साधिकार कह दिया, ‘नहीं देंगे.दूसरी कॉपी बनवा लो.” विक्रम को पहले प्रयास में असिस्टेंट प्रोफेसर की सरकारी नौकरी मिली.
शोध की यह चर्चा इसलिए कि तब्बसुम का कार्यक्रम इसके केन्द्र में था और फिर, हिन्दी-विभाग और पत्रकारिता – विभाग में इस तरह के शोधकार्यों का सिलसिला जारी हुआ. हिन्दी और पत्रकारिता दोनों रोज़गारपरक बने.
कितना आभार दूँ तबस्सुम को! पत्रकारिता में घटनात्मक ख़बरों के ‘इन्ट्रो’ और सांस्कृतिक ख़बरों के ‘विलम्बित इन्ट्रो’ की कवरेज पर शोध की समझ विकसित करने के प्रयास हुए.
आभार तेजेन्द्र शर्मा जी. आपका यह सम्पादकीय पत्रकारिता और हिन्दी विभागों को भेज रही हूँ. हार्दिक बधाई. शोधकर्ता इससे लाभान्वित होंगे.🙏🙏
दामोदर खडसे
प्रिय तेजेन्द्र भाई, तबस्सुम पर बहुत अच्छी जानकारी के साथ आपने सम्पादकीय लिखा है।उनके जीवन के कई पहलुओं पर आपने रोशनी डाली है। आपका शुक्रिया 🙏🙏
उषा साहू
एक एक कर के हमारे सभी चहेते कलाकार, हमसे बिछुड़ते जा रहे हैं l Tabassum उन्हीं में से एक हैं l मैंने मोहतरमा को बहुत से लाईव प्रोग्राम में देखा है l मजे की बात ये है कि वे स्वयं अपने उपर ही जोक सुनाया करती थी l जो कि बहुत ही मुश्किल काम हैl मैंने एक प्रोग्राम में उनका एक जोक सुना l वह जोक बताना चाहूँगी l
Tabassum जी के शब्दों मेँ :-
एक दिन मैं एक प्रोग्राम खत्म करके घर पंहुची, तो नौकर ने बताया Mahim से आप की सहेली का फोन आया था, उसके पति बीमार हैं, आपको urgent बुलाया है l इतनी देर हो गई, मैंने driver को भी छोड़ दिया l मैं खुद ड्राइविंग करती नहीं हूँ l अब क्य़ा करूं l मैंने बुर्का पहना, घर से बाहर आई, टैक्सी रुकाई और पूछा “भैया Mahim चलेंगे?” टैक्सी वाला बड़ी रूखी आवाज में बोला “नहीं जी, Tabasshum जी का प्रोग्राम फूल खिले हैँ गुलशन गुलशन का टाइम हो गया , मैं वह प्रोग्राम कभी नहीं छोड़ता, आप कोई और टैक्सी देख लें” मुझे बड़ा बुरा लगा, अपनी तौहीन लगी l फिर मैंने सोचा कोई बात नहीं, है तो अपना फेन l हालाकि बांद्रा से Mahim तक के 20 रुपये लगते है, मैंने 50 का नोट निकाला और उसको दिखाया l 50 का not देखकर वह पता है क्या बोला, ” छोड़ो Tabassum को चलिए मैं आपको Mahim छोड़ देता हूं, बैठिए गाड़ी में”l ये थी उनकी जिंदादिलीl
पद्मा मिश्रा
हर बार की तरह इस बार भी सामयिक संदर्भों में लिखा गया आपका संपादकीय लाजवाब है, शब्द नहीं मिलते प्रशंसा के लिए, तबस्सुम जी को हमारी पीढ़ी ने न केवल स्क्रीन पर बल्कि जीवन के विविध पक्षों पर हमेशा हंसते मुस्कुराते खिलखिलाते हुए देखा है, उनकी प्यारी आवाज और फूल खिले हैं गुलशन गुलशन*अनेक चरित्रों में देखा, महसूस किया, एक छोटी सी बच्ची हमेशा उनके मन में जीवित रही, उम्र का अहसास ही मिटा देती थी उनकी हंसी,,वो आवाज़ अब नहीं रही, बहुत विस्तार से आपके संपादकीय ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है,मेरा भी शत् शत् नमन, विनम्र श्रद्धांजलि,आप जिंदा रहेगी हमेशा हमारे मन में तबस्सुम जी 🙏 अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं 🙏 भाई आपके लिए…
एस. भाग्यम शर्मा
बहुत ही बढ़िया जानकारी तबस्सुम के बारे में बहुत अच्छा लगा बहुत-बहुत बधाई आपको। आप हमेशा लिखते रहें और हम पढ़ते रहें।
रश्मि रविजा
जानकारी से भरा आलेख। तबस्सुम की चहकती आवाज़ मानो अभी भी कानों में गूंज रही हो… विक्रम गोखले का धीर गंभीर व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। दोनों कलाकारों को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏
डॉ. मुक्ति शर्मा
तेजेंद्र शर्मा जी नमस्कार, जिस प्रकार एक शोधार्थी, शोध करने से पहले प्रत्येक पहलू की जांच पड़ताल करता है। उसी प्रकार आप भी करते है। तबस्सुम जी के बारे में बहुत से आर्टिकल पड़े। पर आपने तो विस्तृत जानकारी दी, आपकी लेखनी को सलाम, पुरवाई में छपने वाली प्रत्येक रचना चाहे वो कविता हो कहानी हो , आलेख हो काबिले तारीफ है।
शन्नो अग्रवाल, लंदन
धन्यवाद तेजेंद्र जी। आपके संपादकीय से तबस्सुम जी के बारे में इतना कुछ जानने को मिला।
जीवन की यही विडंबना है कि कुछ स्थाई नहीं होता। बड़े-छोटे, राजा-रंक सभी को एक दिन इस दुनिया से जाना पड़ता है। सब अनंत में विलीन होते जा रहे हैं। दुनिया एक रंगमंच है जहाँ से लोग अपना अभिनय करके चले जाते हैं। कुछ चुपचाप तो कुछ अपनी कोई खास छाप छोड़ जाते हैं।
तबस्सुम जी व विक्रम गोखले जी को नमन व उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। ॐ शांति! 🙏🏻

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