“हर आम -ओ- खास को इत्तला दी जाती है कि फेसबुक और व्हाट्सएप्प ग्रुप की महारानी हवाखोरी के लिये नैनीताल गयी हैं ,उनकी रियाया जो कि इल्म की भूखी है उसकी जेहनी खुराक के लिए जनाब कालीन कर्मा और मोहतरमा ओमनी शर्मा को वजीर घोषित किया जाता है ,मोहतरमा ओमनी शर्मा खरीद -बिक्री का हिसाब -किताब देखेंगी और इस सल्तनत के हर कलेक्शन की रपट महारानी को रोज शाम को मोबाइल से भेज दिया करेंगी “।
एक तालिब -ए-इल्म ने सवाल किया –
“तो कालीन भैया क्या करेंगे खाली इल्म का कट्टा बेचेंगे मिर्जापुर वाले कालीन भैया की तरह “।
मुनादी वाला जोर से चीखा –
“चुप रहो, ये महारानी की शान में गुस्ताखी है । फेसबुकिया सल्तनत में ऐसे सवालों की सजा सिर्फ ब्लॉक है । लेकिन हमारी महारानी लोगों के खून -पसीने को चूसकर, नहीं-नहीं अपना खून -पसीना बहाकर महारानी बनी हैं ,इसलिये वो रियाया को मुआफी दे देती हैं। ए कमजर्फ मुनादी पूरी सुन । कालीन कर्मा साहब मौके पर सदर -ए -रियासत होंगे। कालीन कर्मा साहब ने अपनी बीवी को मायके भेज दिया है और बच्चे की आन लाइन क्लास वहीं से होगी। हमारी महारानी उनकी खिदमत से बेहद खुश हैं , महफिलों में दरी बिछाने से लेकर चाय -पानी तक की अपनी जेब से खिदमत की है ,इसलिये महारानी आज उनको ये मुकाम अता फरमा रही हैं “।
रियाया से किसी ने अपने दिल का दर्द बयां किया –
“अजब दुनिया है शायर यहां पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफिलों में दरी चादर उठाते हैं “।
मुनादी करने वाला चीखा –
“चुप कर नामाकूल , महारानी जी कहती हैं कि हमने किसी शायर से दरी -चादर नहीं उठवाई ,अलबत्ता दरी -चादर उठाने वालों को हमने शायर बना दिया ।कुलीन कर्मा एडहॉक पर सीढियां उठाते थे सरकारी महकमे की , अब देखो बड़े -बड़े तमगे उठाएंगे। उन्हें ये अख्तियार होगा कि वो बड़े से बड़े अदीब को फेसबुक ग्रुप से निकाल सकें , उन्हें ये भी अख़्तियार होगा कि वो जलीलतरीन किस्सों पर तबादले -ए-ख्याल करवा सकेंगे फेसबुक के ओपन फोरम पर । जो ख्याल किस्से के खिलाफ होंगे उनको नेस्तानाबूद कर दिया जायेगा और जो ख्याल किस्से के हक में होंगे ,उस जलीलतरीन किस्से के बेहतरीन होने की तस्लीम करेंगे ,उनको ही शाया होने दिया जायेगा “।
रियाया में फिर एक आवाजे बुलन्द आयी –
“तुम्हारी महफ़िल का तो हर किस्सा घटिया -ए-अजीम है । फिर वो खुशनसीब किस्सा किस नेकबख्त का होगा उसे कौन तय करेगा कालीन कर्मा या और कोई “।
मुनादी वाला फिर चीखा –
“ए कमजर्फ , बद दिमाग , तनखैय्या वजीरों को हुकूमतों के रोजमर्रा के कामों के लिये रखा जाता है ,बादशाही फैसले तो बेगम साहिबा ,मतलब महारानी ही लिया करेंगी , फैसले रियाया को और वजीरों को इत्तला कर दिए जाएंगे। किस जलील तरीन किस्से को चुनकर बेहतरीन का खिताब देना है ,ये बादशाही फैसले नैनीताल से ही आएंगे”।
कोई अहमक रियाया फिर पूछ ही बैठा –
“तो कोई जिस बदतरीन किस्से को ख़िताब देकर बेहतरीन किया जायेगा ,उसे रिसालों में जगह मिलेगी या नहीं । और एक रजील फरमा रहा था कि उस बदतरीन किस्से पर मुकम्मल किताब शाया होगी या नहीं ,और होगी तो मदद -ए-माश का रेट बताएं “।
मुनादी वाला और मोहतरमा वजीर -ए -खजाना दोनों तिलमिला उठे। शाही फरमान पर कुछ बोलने ही वाले थे कि किसी इल्मी रियाया ने एक शेर पढा –
“खुदा ने हुस्न नादानों को
बख्शा जर रजीलों को
अक्लमंदों को रोटी खुश्क
औ हलुआ वखीलों को “।
दोनों वजीरों और मुनादी करने वालों के सर के ऊपर से बात निकल गयी । उन्हें याद आया कि वो शायरी के तुकबंद तो हैं ,चुनाँचे कि उर्दू उन्होंने सीखी नहीं है ।
ये तो मसला -ए -फजीहत है सो उन्हेंने बेगम -ए-इल्म को नैनीताल फोन लगाया । बेगम साहिबा को याद आया कि उनके पास उर्दू के आलिम और संस्कृत के शास्त्री की डिग्री तो है मगर ये जुबानें उंन्होने सीखी नहीं है , उनके फेसबुक के हामियों की मेहरबानी है कि ये कि संस्कृत की डिग्री उन्हें दिल्ली की बुटीक वाली खातून ने बनवा दी थी दोस्ती का नजराना देकर और संस्कृत के शास्त्री डिग्री का बंदोबस्त उनके जयपुर के एक और दरी -चादर उठाने वाले तुकबंद शायर ने दी थी । उन्हीं कागजी नजरानों के एवज में आज उनको दो वजीर मिले ।
लेकिन रियाया , हुक्मरानों से ज्यादा होशियार निकली , उसमें किसी ने ऐसा शेर पढ़ दिया कि हुक्मरान तिलमिला उठे फेसबुक ग्रुप के।
ताकीद की गयी कि बादशाही मसले यूँ सबके सामने नुमायां नहीं किये जा सकते ।
नतीजतन एक और मुनादी की गई –
“जिस भी मोहतरमा या हजरात को बेगम के बादशाही फैसलों पर नुक्ता चीनी करनी वो व्हाट्सअप ग्रुप में शामिल हो जाएं। बेगम की बादशाहीयत पर यूँ सरेआम सवाल उठाना अदीब की नहीं अदब की गुस्ताखी है “।
“सवाल गुस्ताखी का नहीं सवाल रेट का है ,कितने लगेंगे ,जितने पिछली बार लगे थे क्या उतने ही लगेंगे ” अदब की रियाया में घुसे एक मामूली शख्स ने पूछा ?
मुनादी वाले के साथ -साथ दोनों वजीर चीखे –
“ए नामाकूल ये नाफरमानी है , बेगम साहिबा किसी से पैसे नहीं लेतीं ,कोई नहीं कह सकता कि उन्होंने किसी से पैसे लिये हो कभी ,अलबत्ता ये तो उनके फ़ेसबुकिया रियाया की प्यार मोहब्बत है जिसकी वो मेहमाननवाजी कुबूल फरमाती रही हैं। कपड़े,पापड़,अचार , और तमाम जनाना सामान उन्हें चढ़ावे में मिलते हैं , वैसे तो वो बहुत मना करती हैं मगर लोग हैं कि मानते नहीं ।अब ये तो उनकी फेसबुक पर सल्तनत है कि लोग उन पर प्यार और समान लुटाते हैं”।
“तो ये नैनीताल का सफर अपने पैसों से हो रहा है कि ये भी किसी मेहमाननवाज का प्यार है “
रियाया के किसी चोट खाये तुकबंद शायर ने पूछा ।
मुनादी वाला , मोहतरम और मोहतरमा वजीर तिलमिलाए । वो कुछ कहने वाले थे तब तक एक और चोट खायी बन्दी चीखी-
” बेगम साहिबा से कहो ,नैनीताल बाद में जाएं ,पहले गुजिश्ता बरस दिल्ली सफर के जो देनदारियां हैं वो निपटा दें , वो मैंने जाती कर्जा दिया था ,उंन्होने तस्लीम भी किया था ,और अब उसे वो जबरदस्ती मेरी मेहमाननवाजी के तले दबाना चाहती हैं। मांग -मांग कर थक गए मगर बेगम हैं कि यही फरमाती हैं कि वो पैसों के बदले मुझे बड़ा शायर बना देंगी। जब इन्हें एक अदने से शेर का तर्जुमा नहीं मालूम तो मुझे क्या खाक शायर बनाएंगी।
ये सुनिए मोहतरम
“शायरी चारा समझकर वैसाखनन्दन चरने लगे
शाइरी आये नहीं, शायरी करने लगे”
ये शेर पढ़कर उसने फरियाद की
“बेगम साहिबा मेरे पैसे दो “।
उसके ऐसा कहती ही मुनादी करने वाले ने मुनादी छोड़कर उस अदनी सी रियाया पर छलांग लगा दी पिटाई करने के लिये , बेगम साहिबा की शान में गुस्ताखी होने पे मोहतरम कालीन कर्मा ने सचमुच कट्टा निकाल लिया ,दूसरी मोहतरमा वजीर ने अपनी सैंडिल निकालकर वार करना शुरू कर दिया।
इधर ये जूतमपैजार चल रही थी उसी के पीछे एक बारात निकल रही थी जिसमें गाना बज रहा था –
“सैयां भये कोतवाल ,अब डर काहे का “।
ये सब देखकर मैंने हुकूमत और रियाया के झगड़े से खिसक कर बारात का लुत्फ़ लेना ही उचित समझा।