रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ने के कारण अनेक प्रकार की आसन्न व्याधियों के निवारण का एकमात्र उपाय है प्रातः भ्रमण। ऐसा हमारे चिकित्सक का कहना है। लिहाज़ा आजकल नींद जल्दी टूट जाती है और डॉक्टर के बताए अनुसार प्रातः भ्रमण का क्रम जारी हो जाता है। इसके अनेक लाभ हैं, किन्तु सबसे बड़ा नुकसान है कुछ कड़वी सच्चाइयों का प्रत्यक्ष दर्शन।
मसलन पुष्प तोड़ासन। चाहे जितने भी सभ्य मनुष्य हों, सभी को प्रातः वेला में पुष्प तोड़ासन करते देखना प्रातः भ्रमण की अनिवार्य क्रिया है। आपका पालित-पोषित कोई पुष्प मकान की चारदीवारी के बाहर झाँके तो उसका सर तन से जुदा होना निश्चित है। यह पुष्प तोड़ासन का पहला लक्ष्य है। इसके लिए बहुत-से सम्भ्रान्त जन और जनानियाँ सुबह होते ही थैली, डलिया लिए अपनी पुष्प-नोचन मुहिम पर निकल पड़ते हैं। इनमें से किसी-किसी के पास इस उद्देश्य हेतु विशेष रूप से तैयार किए गए उपकरण व औजार भी होते हैं। यानी पुष्पों (और मौका मिले तो फलों पर भी) आक्रमण के लिए पूरी तैयारी! 
महर्षि पतंजलि के काल में या तो मनुष्य में चौरकर्म की प्रवृत्ति नहीं थी या पुष्प विपुल मात्रा में उपलब्ध थे, यानी आपूर्ति की मात्रा माँग की तुलना में अधिक थी। इसलिए उन्होंने तमाम तरह के आसनों का वर्णन किया, किन्तु पुष्प तोड़ासन का वर्णन नहीं किया। ज़रूरत होती तो अवश्य करते। इतने सारे आसन बताए तो भला इसी को क्यों छोड़ देते! बहरहाल, उनकी शिष्य-परंपरा को आगे ज़ारी रखते हुए हम पुष्प तोड़ासन का विधिवत शास्त्रीय वर्णन कर रहे हैं।आपको पुष्पों की आवश्यकता हो अथवा न हो। भगवान को भी चाहे आपके चढ़ाए फूलों और उनमें सटकर आए लार्वा-प्यूपा में कोई रुचि हो या न हो। किन्तु आपके लिए यह प्रतिदिन सर्वथा करणीय आसन है। अतः इसकी विधि को समझना अत्यन्त आवश्यक है। 
प्रातः वेला में निकलें तो एक थैला या टोकरी साथ ले लें। यदि आपकी ऊँचाई पर्याप्त है और आपके आस-पास के बाग-बगीचों, पार्कों अथवा मकानों में पर्याप्त संख्या में पुष्प उगते हैं तब तो कोई अतिरिक्त उपकरण लेने की आवश्यकता नहीं, भंजक मनोवृत्ति तथा हाथ-पैर-नाखून यानी पशु-सुलभ मानसिकता और अंग ही काफी हैं। किन्तु यदि पुष्प कम हों, बहुत ऊँचाई पर हों तो एक पतली संटी साथ ले लेनी चाहिए, जिसके अंतिम छोर पर संटी की ओर मुड़ा हुआ तार या अंकुश जैसा उपकरण बंधा हो। आपके पास कोलंबस और वास्कोडिगामा जैसी खोजी दृष्टि का होना भी आवश्यक है, क्यों इस आसन में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक रहती है। साथ में आप अपने श्वान (यानी पेट- अब उसे कुत्ता कैसे कहें!) को भी ले सकते हैं। वह पुष्प संधान यानी फूल देखते ही भौंकने और अन्य पुष्पार्थियों को डराने के काम में प्रशिक्षित हो तो सबसे अच्छा। दूसरों के गेट के आगे मल-मूत्र त्याग में तो निष्णात होगा ही। यह कहने की ज़रूरत नहीं। 
अब आप पुष्पों व फलों पर धावा बोलने के लिए तैयार हैं। सबसे पहले पार्क पर अपनी मेहरबानी कीजिए। वह सबकी संपत्ति है, इसलिए यों समझिए कि किसी की भी नहीं है। यदि कोई टोकाटाकी करे तो आपके पास एक बना-बनाया प्रश्ननुमा उत्तर है- पार्क तुम्हारे बाप का है क्या? वैसे तो इस उत्तर की कल्पना मात्र से कोई आपसे बात नहीं करेगा, पास फटकना तो दूर की बात है। और यदि अपने दुर्भाग्य से फटक भी गया तो आगे के लिए उसकी ही नहीं, उसे जाननेवाले लोगों की सात पीढ़ियाँ कभी ऐसी टोकाटाकी की धृष्टता नहीं करेंगी। 
यद्यपि संभावना कम है, किन्तु यदि आपको लगे कि हमें सभ्य, शिष्ट और मृदुभाषी होना चाहिए तो आप कह सकते हैं कि देखिए, हम पुष्प तोड़ासन कर रहे हैं। बहुत संभव है कि इसके बाद वह पृच्छक आपका सच्चा अनुयायी बन जाए। ऊँचाई पर लगे पुष्पों को तोड़ने के लिए आपको दोनों पंजों पर खड़े होना है। दोनों बाँहों को ऊपर पुष्प की दिशा में खींचकर आसमान की ओर ले जाना है। आँखों से त्राटक करते हुए पुष्प पर ध्यान केन्द्रित करना है। एक हाथ से डाली पकड़नी है और दूसरी से पत्तों व कलियों सहित पुष्प को ऐसे नोचना है, जैसे वह शत्रु का चेहरा हो। तत्पश्चात् टूटे हुए फूल-पत्तों को अपने झोले में सरका लेना है। यदि फूल हमारी कमर अथवा घुटने की ऊँचाई पर लगा हो तो उसे यथास्थिति सामने, दायें या बायें झुककर नोचना है। धीरे-से तोड़ना नहीं है। उससे हमारी अनामिका, मध्यमा, तर्जनी आदि अंगुलियों और अंगूठे का पर्याप्त व्यायाम नहीं हो पाता। खूब जोर से नोचना है। यदि इस प्रक्रिया में पौधे की डाल टूट जाए या पौधा ही जड़ से उखड़कर बाहर आ जाए तो उसकी चिन्ता नहीं करनी है। इतनी चिन्ता करने से आपके मन में उद्विग्नता आएगी और पुष्प तोड़ासन का पूरा लाभ आपको नहीं मिलेगा। निर्विकार भाव से, बिना कोई चिन्ता या विचार किए यह आसन तब तक करते रहना है, जब तक आपके झोले में किलो भर फूल न जमा हो जाएँ।
इतने सारे फूल एक ही जगह तो मिलेंगे नहीं, क्योंकि वहाँ आप जैसे सैकड़ों लोग पुष्प तोड़ासन करने में जुटे होंगे। इसलिए ज़रूरी है कि आप ब्रह्म मुहूर्त में यानी लगभग तीन बजे रात को ही अपने अभियान पर निकल लें। कहावत भी है जो जागत है सो पावत है। यकीन मानिए, यह कहावत तीन बजते ही दूसरों के मकान व बाग से पुष्प व फल तोड़नेवालों के लिए ही बनी होगी। तथापि, यदि आसपास फूल न मिलें तो आप दो-चार किलोमीटर दूर तक भी पुष्पानुसंधान कर सकते हैं। कहते हैं कि जिन खोजा तिन पाइयाँ। आपको किलो भर नहीं तो आधा किलो पुष्प अवश्य मिल जाएँगे, वे भी ताजे, मुफ्त में और पुष्प तोड़ासन की क्रिया के बाइ-प्रोडक्ट के रूप में।
पुष्प तोड़ासन से तन और मन का लाभ तो है ही। बाकी बचा धन- उसकी तो शर्तिया बचत होनेवाली है। अगर भगवान यह सब उछल-कूद न देख रहे हों, यानी रात देर तक जागते रहने के कारण वे सुबह जल्दी उठकर प्रातः भ्रमण पर न गये हों और अपने भक्तों की यह ताण्डव-मुद्रा उन्होंने न देखी हो तो पूजा के समय इतने सारे ताज़े फूल अर्पित देखकर वे अवश्य प्रसन्न हो जाएँगे और आपको मनचाहा वर देंगे। किन्तु यदि उन्होंने यह सब देख-समझ लिया हो तो? अजी, भगवान का क्या है! उनकी चिन्ता छोड़िए। आप तो अपना काम कीजिए। भगवान को तो लोग चोरी-भ्रष्टाचार के पैसों से कपड़े-गहने बनवा देते हैं, तरह-तरह के सुस्वादु पदार्थों का भोग लगा देते हैं। काली कमाई में हिस्सेदारी दे देते हैं। भगवान कभी नाराज़ होते हैं क्या! फिर आपके अर्पित किए हुए पुष्प तो पुष्प तोड़ासन का उपोत्पाद मात्र हैं, वे भी भगवान के बनाए हुए! तेरा तुझको अर्पण भगवान!

1 टिप्पणी

  1. आदरणीय रामवृक्ष जी!
    व्यंग्य को पढ़कर लगा कि शायद आप इस दर्द से दो चार हुए होंगे। अपने घर में लगे विशिष्ट फूलों की चोरी से तार फँसा कर टूटते देखने पर बहुत गुस्सा आता है। रोज पानी
    देना,बढ़ते हुए देखना,कलियों का आना, उन्हें बढ़ते हुए देखना,एक-एक पंखुड़ियों को विकसित होते देखने की उमंग और अगले ही दिन सुबह उठने में कोताही बरती कि फूल गायब! पर बात यहीं खत्म नहीं होती एक सज्जन तो मुंह पर बोल गए,” बहन जी! दो गुलाब खिले थे एक तोड़ लिया!अब अपन पड़ोसी से क्या कहें जो ऊँची बाल्कनी से तोड़ने की तिकड़म रखते हैं।”
    इस दर्द के हम भी मुक्त होगी रहे। आज आपका व्यंग्य बहुत कुछ याद दिला गया।

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