हमारी श्रीमती जी एक कुशल गृहणी है। वह हमारी हर सुख – सुविधा का पूरा – पूरा ख़्याल रखती हैl सुबह के नाश्ते से लेकर रात्रि के भोजन तक, हमारी पसंद का मेन्यू पूछा जाता है, हम भी स्वाद के कल्पनालोक में अपनी जीभ को मुँह के अंदर ही अंदर घुमाते हुए, मुँह में एकत्रित पानी को गले से नीचे उतारते हुए, सुबह एक कप चाय के साथ पोहा, बटर – टोस्ट, सैंडविच, उपमा, जवे, ताज़ा फल, दोपहर एवं रात्रि के भोजन में विभिन्न प्रकार के सूप, सूखी मौसमी सब्ज़ी और तरी युक्त तरकारीयाँ, मिक्सी में पिसी हरे पत्तेदार सब्ज़ियां, दाल, चावल, सांभर, रसम, पापड़, अचार, चटनी, मिठाई और फिर कॉफी या चाय। खीर – पूड़ी, हलवा, गजक, रेवड़ी, बर्गर, पिज़्ज़ा, कुल्फी, लस्सी इत्यादि… इत्यादि… को हमारा दिल और दिमाग तुरंत स्वीकार करता रहता है और हमारा हाज़मा अब बिना हाजमोला की गोली के सभी को डाइजेस्ट करने की क्षमता विकसित कर चुका है।
किन्तु रसोईघर की दहलीज़ पर कदम रखते ही श्रीमती जी के व्यवहार में आमूल चूल परिवर्तन आने लगते हैं। हमारी सारी इच्छाओं की बली चढ़ाते हुए उनका हमारी तरफ का रुख चुम्बक के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के समान हो जाता है। कुशल गृहणी से कुशल प्रशासक जैसे रासायनिक परिवर्तन उनके व्यवहार में प्रत्यक्ष नज़र आने लगते हैं और किसी जीते हुए नेता की भाँति हमें अपने घर में ही हिटलर की मौजूदगी का अहसास होने लगता है। अब रसोई में सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके ही फॉर्मूले नज़र आने लगते हैं, सुबह चाय के साथ दो आलू के परांठे, दिन में चार रोटी मटठे के आलू के साथ, दोपहर की चाय के साथ आलू की पकौड़ी या आलू के चिप्स, रात्रि भोज में सूखे आलू उनकी प्राथमिकता सूची में सदैव सर्वोच्च स्थान पर रहते हैं।
हमने तो सिद्धांत बना लिया है भोजन थाल में जो कुछ भी परोसा गया हो, मुस्कुराते हुए लच्छेदार तारीफों के पुल बांधते हुए स्वीकार करते रहे, क्योंकि जो कुछ भी परोसा जाएगा उसमे सिर्फ़ और सिर्फ़ आलू ही दिखलाई देगा, चौबीस घंटे, सातों दिन। श्रीमती जी अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा का प्रयोग करते हुए अत्यंत उत्साह के साथ बयान करती हुई देखी जा सकतीं हैं “आलू सब्ज़ियों का राजा होता हैl आलू के बगैर कोई सब्ज़ी बन ही नहीं सकतीl आलू बनाने में गैस की बचत होती हैl आलू को छीलो या ना छीलो, काटो या ना काटो, तुरंत तैयार हो जाता है। इसीलिए फ्रीज में ठसाठस आलू भरे रहते है, फ्रिज का दरवाज़ा खोलते ही किसी चुनावी रैली में भाड़े पर जुटाई भीड़ की तरह, धड़ा-धड़ घर आँगन में आलू दौड़ते नज़र आने लगते हैं। उबला आलू हमेशा रसोईघर में तैयार रहता है जो हमारी श्रीमती जी के प्रयोगों एवं किचन में आर एंड डी की मूल वस्तु होती है जिनका परीक्षण चूहों एवं बंदरों के बजाए सीधे हम पर किया जाता है। आलू का रायता, आलू का चार, आलू का हलवा, आलू के पापड़, आलू के लड्डू, आलू की खीर और भी बहुत कुछ…। आलू पकवानों को हमें खिलाते हुए हमसे बड़े ही कूटनीतिज्ञ तरीके से पसंद करवाया जाता है।
गली मोहल्ले में विचरण करने वाले सब्ज़ी के ठेले वाले भी यह बात भली भाँति जान गए हैं अत: क्या मज़ाल एक पसेरी से कम आलू तौल दें। अन्य सब्ज़ियां वर्ष में एक आध बार ले ली जाती है तो उनके हाथों से 100 से 200 ग्राम के ऊपर के बाँट नहीं उठते।
शादी के शुरूआती दिनों में हमारे भी तेवर देखने योग्य हुआ करते थेl घर के बर्तन आपस में ना टकरायें अतः हमने अपने मर्दाना स्वरुप की गृह शांति यज्ञ में आहूति देते हुए एडजस्टमेंट के फॉर्मूले को अपना लिया है। अब काहे का गुस्सा! काहे की ईर्ष्या! स्वीकार कर लिया है कि हमारी श्रीमती जी हमसे अधिक आलू देवता को प्यार करतीं हैं। अब आलू हमारा सौत हैl “जय हो देवों के देव आलू देव”।
कसम से अब तो दिल करता है आलू देवता का शहर के बीचोंबीच मंदिर बनवा दिया जाए। आलू देवता पर किसी प्रबुद्धजन से आलू चालीसा लिखवाया जाए। शहर में आलू के गुण बखान करते बड़े – बड़े होर्डिंग्स लगवाए जायें।