हमारे देश मे ‘अतिथि देवो भवः’ कहा जाता है। पर जिस अतिथि की हम बात कर रहें हैं उससे तो देवता भी डर जाएं। ये तो घर जमाई के जैसा जम गया, जाने का नाम ही नहीं लेता। ये अतिथि हैं विषाणु देव कोरोना। आए तो आए और आते ही सारा काम काज अपने तरीके से करवाना शुरू कर दिया जो भी काम करना है सब घर मे बंद हो कर करो, बाहर सब जगह बंद का ऐलान।
फिर क्या बाज़ार बन्द, ऑफिस बन्द, मॉल बन्द सिनेमा घर, मंदिर, गिरिजाघर, मस्जिद सब बन्द पर सबसे मज़े तो विद्यार्थियों के उनका स्कूल, कॉलेज जो बन्द। आह ! हमें तो वो दिन याद आ गये जब हम स्कूल न जाने के बहाने ढूंढा करते थे, कभी पेट दर्द का बहाना, कभी बगल में प्याज दबाकर बुखार आने का बहाना, कभी टीचर को ही बीमार बना देने का बहाना और कभी तेज बौछारें स्कूल न जाने का खुद ही बहाना बन जाया करती थी।
बच्चों के स्कूल न जाने का बहाना अबकी करोना बन गया सो बच्चे भी खुश हो गए। आजाद पंछी तो नहीं पर घर के पिंजरे में कैद पंछी यह जरूर बन गए थे लेकिन .. …ये ‘लेकिन ‘ सब जगह अड़ंगा लगा ही देता है तो विद्यार्थियों की ये खुशी कुछ दिनों की मेहमान निकली। स्कूल ने भी सोचा ‘बच्चे हम से पीछा कैसे छुड़ाओगे, तुम नहीं आ सकते तो क्या हम तुम्हारे घर चले आते हैं’ फिर क्या था स्कूल मोबाइल और लैपटॉप से घर पर चलाया और बच्चों और विद्यार्थियों पर पढ़ाई की गाज गिर गई। यह मुआ विज्ञान के आविष्कार भी कभी-कभी नाक में दम कर देते हैं। कहा गया है आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है पर यहां विद्यार्थियों को पढ़ाई की आवश्यकता थी कहां !!
ख़ैर, मुसीबत ऑनलाइन क्लासेज के रूप में आ ही गई तो अब तो उससे मुकाबला करना ही था। बहरहाल ऑनलाइन क्लासेस का आगाज हो गया और मोबाइल और लैपटॉप ने क्लासरूम की शक्ल अख्तियार कर ली स्क्रीन के एक और टीचर और दूसरी और विद्यार्थी। अब समान्य कक्षा में तो टीचर मुस्कुराते हुए गुड मॉर्निंग करते हुए बच्चों से मुखातिब होते थे, अब तो टीचर स्क्रीन पर खुद ही अपना चेहरा देखते हुए खुश हो लेते हैं, बच्चों के वीडियो ऑफ तो शक्लें कैसे दिखे। हमारे महारथी टीचर छात्रों की शक्ल देख कर ही उनकी अक्ल का अंदाजा लगा लेते थे लेकिन अब क्या करें … ख़ैर उन्हें तो पढ़ाना ही है यही सोच कर कि शक्लें धोखा भी दे जाती हैं।
इधर हमारे होनहार छात्रों ने शुरुआत तो धुंआधार तरीके से की। बिल्कुल नहा धोकर तैयार हो कर बैठ गए मोबाईल के आगे, घर में माँ बाप भी बच्चों की इस मुस्तैदी से बड़े खुश लेकिन … लेकिन ये तो बस चार दिन की चांदनी थी, जब लग जाये कि कोई देखने वाला नहीं तो भला क्यों तैयार होने की जहमत उठाई जाये तो बस अब तो ब्रश करते हुए भी ऑनलाइन जाना शुरू और अब तो ये हाल कि सोते हुए भी मोबाईल ऑन कर के कक्षा मे प्रवेश कर गए।
ऑनलाइन पेरेंट्स मीटिंग में इच्छा हुई कि टीचर से कहें कि अब जब स्कूल खुलें तो बेंच की जगह बच्चों के लिए बेड का इंतजाम होना चाहिए आखिर जब हमारे बच्चों के लिए स्कूल में स्मार्ट बोर्ड, एसी का इंतजाम हो सकता है तो फिर बेड का क्यों नहीं,खैर स्कूल तो जब खुलेंगे तब खुलेंगे अभी तो ऑनलाइन पढ़ाई में ही गुज़र करनी है।
एक दिन हमारी टीचर साहिबा गणित के समीकरण बता रहीं थीं कि a2+b2=…..चाय अभी नहीं चाहिए, ये कौन सा नया समीकरण, दरअसल टीचर जी के पतिदेव जो कि अपनी घरेलू परंपरागत वेषभूषा यानी कि बनियान पहने चाय ले कर आ गए थे और हमारे होनहार छात्र गणित के इस अनोखे समीकरण को पढ़कर लोटपोट हुए जा रहे थे। ये कहानी तो लगभग हर दिन की है बस प्रस्तुति अलग – अलग तरीकों से होती रहती है।
ऑनलाइन कक्षाओं में छात्रों की पौ बारह है, यहाँ टीचर पढ़ा रहे हैं उधर छात्र क्लास में प्रवेश लेकर घूमने का आनंद ले रहे, जी हाँ माँ बाप अपने लाडलों को पढ़ता देख निहाल और लाडले मोबाइल पर दूसरी साइट खोले चैटिया रहें। आखिर अपनी होनहार छवि को खराब थोड़े ही करना है, समान्य कक्षाओं में तो घूमते हुए पकड़े जाते पर यहां कौन माई का लाल है जो इन्हें गिरफ्त में ले ले। अगर गलती से घर में मम्मी जी घूमती हुई आ भी गईं तब तक तो अँगूठा ऑनलाइन क्लास में पहुँच ही जाएगा।
हमारे परम विद्वान टीचरों की क्या बात कहें ऑनलाइन पढ़ाने की कला उन्हें खूब आ गयी। अपना कमरा ही क्लासरूम, कोई प्रिन्सिपल चक्कर नहीं काट रहा कि आप कैसा पढ़ा रहे हैं, थोड़ा कम पढ कर भी पढ़ा सकते हैं जैसे अपना ही कॉलेज, आप ही मालिक और आप ही प्रिन्सिपल। वाह ! क्या बात है।
अब बारी आयी परीक्षा की। बड़ा प्रश्न कि कैसे कराए जाएंगे पेपर पर जब प्रश्न है तो उत्तर भी ढूंढ लिया जाता है। ऑनलाइन ही परीक्षा दो बेटा ऐसे थोड़े न तुम्हें पास कर देंगे, । पढ़ो लिखो पीडीएफ बनाओ और भेजो उत्तर। लेकिन हमारे होनहार छात्र पढ़े कम लिखे ज्यादा। लिखने में नकल का सहारा खूब लिया, यहां पर हमारे आदरणीय माता -पिता का भी वरद हस्त कई बच्चों को प्राप्त हुआ ‘ अरे!बच्चा पास हो जाएगा और क्या चाहिए …. ‘।
अब ऑनलाइन कक्षाओं में प्रतियोगिता भी करवा दी। ये गायन प्रतियोगिता तो नृत्य प्रतियोगिता, कविता पाठ प्रतियोगिता। स्कूल में तो टीचर बेचारे जुटे रहते थे तैयारी करवाने में और कुछ गड़बड़ प्रिन्सिपल की डांट, मैनेजमेन्ट की डांट …..डांट तो अब भी उन्हें पड़ जाती है पर ऑनलाइन (ऑनलाइन डांट का प्रभाव साक्षात डांट के प्रभाव से निश्चित रूप से कम होता है )। अब यहाँ तो मां बाप की कवायद चालू। … क्या करें, क्या न करें बड़ी मुसीबत। आजकल के होनहार कहाँ सुनते हैं माँ – बाप की …”आई डोंट केयर या मेरी मर्जी वाले हैं। अब क्या किया जाय …. बस ‘राम झरोखे बैठ कर सबका मुजरा देख ‘यही कर सकते हैं।
खैर…… जब तक स्कूल नहीं खुलते तब तो ऑनलाइन स्कूल चलेगा ही भले कुछ लाइन पर हो न हों।