मुंबई के मलाड वेस्ट में मालवणी के गेट नम्बर सात पर मन्नू माइकल की मार्ट पर रेग्युलर अड्डेबाज जुटे। मुम्बई भी अजब है यहां बंदर विहीन बांद्रा है ,चर्च गेट स्टेशन पर कहीं चर्च नहीं है उसी तरह मालवणी में आठ नंबर गेट नाम के बस स्टॉप हैं लेकिन गेट कहीं नहीं है ।
अ ने कहा –
“ई जो ऋषि बाबू इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बन गए हैं, यह से हमारी छाती 62 इंच की हो गयी है “।
ब ने पूछा –
“लेकिन पहले तो तुम्हारी छाती 56 इंच की ही हुआ करती थी तुम्हारे प्रधानमंत्री के नाम पर अब 6 इंच काहे बढ़ाए लिहेव“।
अ ने ऐंठते हुए कहा–
“ देखो भैया, हम हैं यूपी के, डबल इंजन की सरकार हमारी चल ही रही थी, अब उसमें भौंपू भी लग गया । अब हमारा झंडा लंदन तक बुलंद हो गया” ।
स ने डपटते हुए कहा ‘काय सांगते तू । तू महाराष्ट्र में पैदा हुआ और खुद को यूपी का बताता है, अबे तेरी तो..” ये कहते हुए उसने आंखे तरेरी।
अ सकपकाते हुए बोला –
“अरे भाऊ, मी शम्बर टक्का मराठी मानुष आहे । वो तो मैं ऐसे ही बोल रहा था । जैसे इंडिया के लोग ब्रिटेन के ऋषि सुनक को इंडियन बोल रहे हैं, वैसे ही मैने भी खुद को यूपी का कहा है”।
स बोला –
“मी काय सांगतो। ये जो ऋषि जी तुम्हारा इंग्लैंड का पंत प्रधान बना है । तुम आज उछल रहे हो। सबसे पहले एक मराठी मानुस उधर की पार्लियामेंट में पहुंचा था एक सौ तीस बरस पहले। हमारा बम्बई, नहीं नहीं मुम्बई के दादा भाई नौरोजी उधर के पार्लियामेंट में जीतकर आया था । समझा क्या जिधर तुम अभी पहुंचे उधर हमारे लोग पहले ही झंडा गाड़ चुके थे”।
अब तक अ, ब, स अपने अमल का सामान पान, तम्बाकू, सिगरेट ले चुके थे और उसका लुत्फ भी लेना शुरू कर दिया था।
तब तक कामरेड सुंदर त्रिपाठी आ गए ।
उन्होंने रुद्राक्ष की माला पहन रखी थी। जो कि वो पहले से पहनते थे ये और बात थी कि उसे कुर्ते के नीचे ही रखते थे । लेकिन मुम्बई में जबसे टेक्सटाइल मिलें बंद हो गईं तब से माला कुर्ते के ऊपर रहा करती है ।
“तू कामरेड नहीं है तो लाल सलाम क्यों बोलता है । नमस्ते किया कर। कामरेड नहीं, त्रिपाठीजी बोला कर बे, या फिरपैलगी किया कर, आशीर्वाद देंगे तो पुण्य मिलेगा । पैलगी जानता है ना, यानी जुबां से बोलकर पांव छूने को पैलगी कहा जाता है । फिलहाल बाहर का पान–पत्त्ता नहीं खाता अब मैं। साफ–सफाई नहीं रखते उसी हाथ से देते रहते हो सबको । मेरा धर्म भर्स्ट कर दोगे”।
“अफीम कब से भ्रष्ट होने लगी कामरेड। अफीम कभी खराब नहीं होती “ मुन्नू माइकल ने कहा ।
“शिव, शिव, क्या बकता रहता है रे । धर्म को अफीम बोलता है। मैं समझ गया…“ तिलमिलाते हुए कामरेड ने कहा।
तब तक एक और रेगुलर अड्डेबाज द बोला –
“देखो जो ये जो ऋषि जी सुनक पीयम बने हैं ,ये हैं पंजाबी खत्री। हम लोग के ही आपस के हैं जो क्षत्रिय लोग हैं ना उन्हीं में से कोई पंजाब गया होगा और वही लोग पंजाब में जाकर खत्री बन गया होगा, कायदे से तो हमको अपना सीना 56 नहीं 66 इंच का कर लेना चाहिये”। ये कहते हुए उसने अपना सीना फुलाया।
अन्ना कैसे पीछे रहते वो द की तरफ देखते हुए बोले –
“तुम बंडल मारता है ।
फिर थोड़ा ठहरकर बोले –
“देखो तुम लोग फर्जी में क्रेडिट लेने को ट्राई करता, अपना डेबिट नहीं देखता । वो हमारा साउथ इंडिया के नारायण मूर्ति जी का दामाद है , रुपया ही रुपया का बात है । नारायण मूर्ति जी उसको बोला कारपोरेट से पालिटिक्स में जाने का। वही ऋषि को रुपया –पैसा के बारे में सिखाया तो वो पहले उधर का फाइनेंस मिनिस्टर बना , अभी उधर का प्राइम मिनिस्टर भी बन रहा है । ये क्रेडिट हम साउथ लोगों का और उनकी एंटरप्रेन्योरशिप को मिलना मांगता है “।
तब तक दिग्गज फेमिनिस्ट बोलीं –
“वही तो , अन्ना बात को बिल्कुल सही पकड़े हैं। औरत न होती तो मिस्टर ऋषि कैसे बड़े आदमी के घर शादी करते और कैसे पीयम बनते। ये सब तरक्की लेडीज की वजह से ही है। लेडीज ना होती तो कुछ भी न होता”। ये कहते हुए मार्ट के एक डिब्बे से उन्होंने पांच चाकलेट निकाले और एक का रैपर फाड़कर खाने लगीं।
सरदार जी कहाँ पीछे हटते ? वो हंसते हुए बोले –
“सारा लंदन ते इंग्लैंड बिच पंजाबियों दा ही बोलबाला । ओ ऋषि अपना प्रा है । पंजाबियों दी शान बल्ले –बल्ले । ए साडे पंजाब और पंजाबियत दी जीत है । पंजाबियों दी इस जीत की खुशी मैं सबको लस्सी पिलावंगा किसी दिन।
असी, तुसी औ लस्सी”।
ये कहकर वो हो– हो करके हंसे ।
बड़ी देर से ये सब सुन –सुनकर उकता चुके एक सज्जन उठे । उन्होंने अपना गला खंखार कर साफ किया और फिर बोले –
“ देखें हजरात, खातिर जमा रखें । बेशक मैं हिंदुस्तान का नहीं हूं लेकिन” उनके इतना कहते ही सबकी नजरें उनकी तरफ ही उठ गयीं।
अपने को घूरता हुआ देख कर उन्होंने कहा –
“मेरा नाम उमर गजनवी है । मैं गुजरांवाला पाकिस्तान का हूँ। यहां के टाटा हॉस्पिटल में कैंसर का इलाज करवाने आया हूँ। वल्लाह तुम्हारा मुल्क बहुत अच्छा है, इधर हमारे पास पैसा नहीं है, फिर भी हॉस्पिटल में हमारा इलाज हो रहा है । हमारा पास पैसा नहीं है फिर भी “।
“आगे बोलो मियां , ये तो चांद सितारों को भी पता है कि जहां–जहां चांद–सितारों का झंडा पकड़े पाकिस्तानी बंदा है उसके पास पैसा नहीं है । और वो पैसा मांगने के लिये कुछ भी सुन –सह सकता है और किसी से भी रिश्ता जोड़ सकता है। खैर ऋषि पीयम से कुछ आपका भी रिश्ता है क्या “ अ ने पूछा।
ये सुनकर उमर गजनवी हो –हो कर के हंसा। फिर ठहर कर बोला –
“देखो मियाँ, हमको तुम्हारी किसी बात का बुरा नहीं लगता । ये हम पाकिस्तान के लोगों का बच्चा –बच्चा बचपन में ही सीख जाता है कि जिसका पैसा तुम पर खर्च हो रहा है, उसकी बात का कभी भी बुरा नहीं मानना चाहिये। वैसे बिरादर एक बात बताओ हमारा पकिस्तान में तो पैसा का लेन–देन में मारामारी हो जाता है। लेकिन इधर इंडिया में हम चाहे होटल में खाता या फिर बस–ऑटो में भी मजाक में कह देता कि पैसा नहीं है हमारा पास , तो लोग मारता नहीं है, बस दो –चार लफ्ज बोलकर रह जाता है । बहुत अच्छा पड़ोसी है तुम लोग, मेहमान से पैसा नहीं लेता, हम तो अपने घर में भी और मुल्क में आये लोगों से पैसा ले लेता । हम दूसरों के घर जाकर भी पैसा मांगता जो हमारे घर आता उससे भी मांगता। मगर तुम्हारे इधर का लोग हमसे सख्ती से पैसा नहीं मांगता”।
“हम बताता है आपको, जैसे इंटरनेशनल सिम कार्ड की बात चल रही है, वैसे ही अगर कोई पकिस्तानी कह दे कि उसके पास पैसा नहीं है तो लोग उसको “इंटरनेशनल भिखारी“ मान ही लेते हैं । ये लीजिये अपना पान और हां मियां आपको इसके पैसे नहीं देने और आप हमारे मुल्क में हैं तो यहां आपको ये भी नहीं कहना है कि मेरे पास पैसे नहीं हैं”।ये कहकर सब हो –हो करके हँसने लगे।
उमर गजनवी ने मुफ्त का पान लिया, उसे मुंह में रखा और फिर सबकी खिलखिलाहट में शामिल हो गए।
सभी के ठहाकों की रफ्तार कम हुई तो उमर गजनवी ने कहा –
“देखें इसे मेरे जाती कर्जे और जाती फायदे के नजरिये न देखें , मुल्क –मुल्क की बात है तो सबसे ज्यादा हक तो हमारा जनाब ऋषि साहब पर बनता है । उनके पुरखे गुजरांवाला, पकिस्तान के थे, तो इसकी बिला पर तो वो हमारे हुए, गालिबन उनका वास्ता सर जमीने पाक से भी रहा है, तो ऐसे में वो पहले पाकिस्तानी हैं जो इंग्लैंड के पीयम बने हैं । टेक्निकली हक तो हमारा भी उन पर उतना ही है “।
ये बात सुनकर वहां कुछ पलों के लिये सन्नाटा छा गया।
“तुम पाकिस्तानियों की कामयाब आदमी से चिपकने की आदत कब जाएगी। तुम तो राजकपूर और दिलीप कुमार को भी पकिस्तानी ही कहते हो, जबकि वो भारत के कोहिनूर रहे हैं । ऋषि सुनक हमारे हैं और हमारे ही रहेंगे” अ की ये बात सुनकर सभी ने सहमति में सिर हिलाया।
“लेकिन ये मार्ट मेरा है और खाली–फुकट के उधारियों का अड्डा नहीं है। चलो अब अपनी –अपनी उधारी चुकता करो और उमर गजनवी तुम भी। इंडिया में इलाज फ्री हो सकता है, पान सिगरेट का पैसा लगता है। और ऋषि सुनक के रिश्तेदारों आज उधारी पूरी चुका दो अब तो तुम्हारे घर का आदमी विलायत का पीयम है । तो लाओ करो मेरे उधार का पेमेंट“।
ये सुनते ही सब वहां से खिसक लिए, नेपथ्य में कहीं एक गीत बीज रहा था –