प्रार्थनाएं
बारिश न होने से वहाँ नौबत अकाल की आ पड़ी। जनजीवन त्रस्त हो गया।
“भो ईश्वर! त्वमस्माकम् एकमेव उपाश्रय:। वर्षादृते तव सृष्टि न जीवनशक्य भवति। कृपायाम् भवति कुर्वन्तु वर्षाम्।” मन्दिर से पुजारी ने ईश्वर से बारिश की प्रार्थना की। मगर बारिश नहीं हुई। शायद वो संस्कृत नहीं जानता था।
“या रब्बील आलमीन! अल्लहुमा अरज़ुक हयातुना फि वुरतत बिदुन मा, नतावक़ ज्मयिआना यर्ज़ अलहुसुल इयालाह तुमतिर क़रीबाना।”
मस्ज़िद के मौलवी ने ख़ुदा को बरसात की दरख़्वास्त पेश की। बारिश फिर भी नहीं हुई। शायद वो अरबी भी नहीं समझता था।
“ओह गॉड! हैल्प अस। अ’र लाइफ इज़ इन बिग ट्रबल विदाउट वॉटर। वी आर ऑल यर्निंग। प्लीज़ गेट इट रेन्ड सून।”
चर्च के पादरी ने गॉड से प्रे की। मगर बारिश हुई ही नहीं। शायद वो अंग्रेज़ी भी नहीं समझ पाया।
वहीं दूर किसी सूखे खेत में बैठे किसान ने अपने कृशकाय बैलों की पीठ पर हाथ फेरते हुए आशा भरी निगाहों से ऊपर देखा।
वह तुरन्त समझ गया और बारिश शुरू हो गयी।
मेमसाब
“दीदी।। भैयाजी।। आज हमको मेमसाब बनने दो ना! हम कभी मेमसाब नहीं बने।” रश्मि के घर काम करने वाली माया की बेटी छुटकी की आवाज़ से रश्मि का ध्यान बच्चों की ओर गया।
माया उसे अपने साथ ही काम पर ले आती थी। जब तक वह घर का काम निपटाती, तब तक छुटकी रश्मि के बच्चों संजू और पिंकी के साथ खेलती रहती। आज भी बच्चे हमेशा की तरह घर-घर खेल रहे थे।
“नहीं! तू कैसे मेमसाब बन सकती है? जिसकी मम्मी मेमसाब होती है, वही मेमसाब बनती है।” पिंकी ने छुटकी को झिड़क दिया।
नन्ही बच्ची का मायूस चेहरा देखकर रश्मि को तरस आया, उसने बच्चों को उसे भी मेमसाब बनाने को कहा। मेमसाब बनते ही छुटकी का चेहरा खिल उठा। पैर पर पैर चढ़ाये हाथ में मैगजीन लिये सोफे पर बैठकर उसने आदेश दिया- “जा माया! एक अच्छी सी चाय बनाकर ला।”
तब तक असली माया भी रश्मि के लिए चाय ले आई।
उधर ‘माया’ बनी पिंकी खिलौने के कप-प्लेट में चाय ले आई। छुटकी के सामने टेबल पर चाय रखकर पलटते हुए उसका कारपेट में पैर उलझा, और वह गिर पड़ी। छुटकी ने उसे देखा, और तुरन्त मैगजीन पटककर उसे सँभाला।
“अरे-अरे माया ध्यान से। तुझे कहीं लगी तो नहीं? इधर सोफे पर बैठ, दिखा मुझे।।।। ओह लगता है मोच आ गई। चल ऐसा कर ये चाय तू ही पी, तब तक मैं तेरे पैर पर बाम लगा देती हूँ।” छुटकी ने माया बनी पिंकी को सोफे पर बैठाते हुए कहा।
बच्चे ठठाकर हँस पड़े- “तू गलत खेल रही है छुटकी! मेमसाब ऐसे थोड़ी करती है।”
रश्मि की निगाह माया से मिली और शर्मिन्दा सी होकर झुक गई।
“नहीं बेटे! ये सही खेल रही है। मेमसाब को ऐसे ही करना चाहिए।” उसने चाय आधी-आधी की और एक कप माया को पकड़ा कर अपने पास ही बैठा लिया।
छुटकी बहुत खुश थी।। बहुत खुश।