Saturday, July 27, 2024
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रोहित शर्मा की लघुकथा – बेगैरत निरपेक्षता

जीवा ट्रेन में नई दिल्ली से वाराणसी जाने के लिये थर्ड एसी कोच में चढ़ी। उसे अपर बर्थ मिली थी। वहाँ उसे मालूम हुआ कि उसके केबिन की आठों बर्थ में वह अकेली लडक़ी थी।

“एक दो लड़कियाँ या महिलायें और होती तो अच्छा रहता” उसने सोचा।

जीवा ने अटेंडेंट द्वारा रखी बेडशीट तरीके से बिछा कर चादर ओढ़ कर  बैग से बुक निकाल ली।  ऊपर बगल वाली बर्थ  पर एक अधेड़ व्यक्ति लेटा था। नीचे की चारों और साइड की दोनों  बर्थ  छः  युवकों के नाम आरक्षित थी।  उन युवकों का अभी सोने का मूड नहीं था इसलिए नीचे वाली बर्थ पर बैठ कर वार्तालाप में व्यस्त हो गए । उनकी बातों से जीवा को मालूम हुआ कि वे सभी दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की कोचिंग कर रहे थे और अभी मेन्स का एग्जाम देकर घर जा रहे थे।  उनकी चर्चा से लग रहा था कि उन्होंने संविधान और इंडियन पैनल कोड का गहन अध्ययन किया है। वे एक एक धारा का  गहन विश्लेषण कर रहे थे।

जीवा का ध्यान बगल वाली बर्थ पर लेटे व्यक्ति की ओर गया। वह व्यक्ति बहुत देर से उसे एकटक निहारे जा देख रहा था। उसने कुछ देर इंतज़ार किया लेकिन वह व्यक्ति ढीठाई से देखता रहा तो उसने टोका –

“अंकल कुछ परेशानी है आपको?”

अधेड़ नज़र फेर कर ऊपर ताकने लगा।

नीचे चर्चा कर रहे युवा एक क्षण के लिए रुके फिर अपनी बातों में व्यस्त हो गए। इससे उस व्यक्ति का साहस बढ़ गया। वह व्यक्ति अब सिर उठा कर जीवा के पास आकर घूरने लगा। इस बार जीवा ने ऊंची आवाज में कहा ताकि सब सुन सकें।

“अंकल क्या कर रहे हो? अपनी सीट तक रहो।”

बगल की बर्थ पर व्यक्ति झट से करवट बदल कर सो गया।

लड़कों की वार्ता में खलल पड़ गया था। वे कुछ समय के लिए रुके और फिर अपनी बातों में व्यस्त हो गए।

 नीचे से कोई प्रतिक्रिया नहीं आने पर वह व्यक्ति जीवा की तरफ देखकर फूहड़ तरीके से मुस्कुराने लगा। जीवा को लग रहा था  कि वह और बड़ी हरक़त कर सकता है  तभी बगल के केबिन से एक बुजुर्ग व्यक्ति आये और बोले

“क्या हुआ बेटा? मैं उधर केबिन से सब सुन रहा था। तुम मेरी सीट पर चले जाओ। बगल वाली सीट पर मेरी पत्नी है।”

जीवा के उतरते ही वे थोड़ा श्रम से जीवा की सीट पर चढ़ गए और बगल वाली सीट वाले अधेड़ से बोले

“मुझे भी देखते रहना भैया।”

सुनते ही अधेड़ ने करवट बदल ली।

फिर उन्होंने नीचे चर्चा में व्यस्त  युवकों को टोकते हुए कहा

“बेटा मैं कम पढ़ा लिखा हूँ। क्या सक्षम होने के उपरांत भी अन्याय होता हुआ देख कर निरपेक्ष रहने वालों के लिए भी किसी सजा का  प्रावधान है?”

युवकों ने एक दूसरे की ओर देखा फिर चुपचाप अपनी अपनी बर्थ पर सोने चले गए।

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