Saturday, July 27, 2024
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जय शेखर की दो लघुकथाएँ

प्रेम 
वह आज पूरे 5 दिन कर घर लौटा था । उसे देखते ही परिवार के सभी सदस्यों में जैसे जान आ गई थी। वह जब से खोया था तब से सबकी भूख प्यास भी खो गई थी।
उसके आंगन में आते ही उसके लिए उसकी कोने में पड़ी थाली में दूध डाला गया।  वह कभी गुड़िया से लिपटता था, कभी बाबू जी के पैर चाटता था तो कभी कूद कर मां के आंचल को खींचता था। शायद वह सब को बताना चाहता था कि वह वापस आ गया है, वही उनका प्यारा टॉमी है । अगर यह कहा जाए कि वह सब को पहचानने की कोशिश कर रहा था, तो यह गलत होगा। उसके कृष शरीर में आई स्फूर्ति, तेजी से दोलन करती पूछ एवं आंखों में भरे अश्रु उसकी सहज स्वीकृति प्रमाणित कर रहे थे। 
वह कहां किस जेल से छूटा था यह तो पता नहीं लेकिन यह तय था कि उसने पिछले 5 दिनों में कुछ नहीं खाया था,  क्योंकि वह बिल्कुल दुबला पतला हो गया था । भूखा प्यासा होने पर भी वह दूध ना चाट कर परिवार के सदस्यों को चाट लेना चाहता था। उनके आलिंगन में समा जाना चाहता था। उनका प्रेम व स्पर्श उसे भूख और प्यास पर विजय दिला रहा था।
आश्चर्य होता है यह वही टॉमी है जो रोटी के एक टुकड़े के लिए कभी कभी दूसरे कुत्तों से कितना लड़ता था पर आज उसे दूध भी आकर्षित ना कर पा रहा था। 
दुर्भाग्य
मां काफी समय से बीमार चल रही थी। बहुत इलाज कराया गया और एक दिन वह परलोक सिधार गई। 
घर पर मिलने जुलने वालों और रिश्तेदारों का तांता लगा था ।इसी समय उनके परम विद्वान मित्र पारखी जी भी आए। बातों बातों में ही उन्होंने गमले में लगे कैक्टस और कांटे वाले अन्य पौधों पर सारे दुर्भाग्य की जिम्मेदारी डाल दी। उन्होंने बताया कि कांटे के पौधे घर से हटा देने पर बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। 
कुछ ही क्षणों में सभी गमलों से सभी प्रकार के कैक्टस उखाड़ कर सड़क पर फेंक दिए गए।  महत्वपूर्ण बात यह थी कि ये सभी कैक्टस बहुत दिनों से लगे थे जिनका इतना विविध संकलन मां ने ही किया था। माँ वनस्पति शास्त्र में गहरी रुचि रखने वाली विद्वान महिला थीं। 
अब सभी कैक्टस सड़क पर पड़े थे। घर वालों का तो संकट टल चुका था परंतु सड़क पर पड़े अदम्य जीवनी शक्ति के प्रेरणा स्रोत बेचारे कैक्टस अपने दुर्भाग्य का दोष किसी को नहीं दे रहे थे।

जय शेखर
संपर्क – [email protected]
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