Saturday, July 27, 2024
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डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे की लघुकथाएँ

त्रिशंकु
शर्मा जी का लड़का कई साल बाद विदेश से चार हफ़्तों के लिए भारत आ रहा था । घर में बेटियों और उनके बच्चों व अन्य रिश्तेदारों के आने से पूरे घर में चहल- पहल मची हुई थी । वैसे तो शर्मा जी का बेटा जब अठारह साल का था तभी से बाहर ही रहता था, पर तब वह पढ़ाई के लिए वहाँ गया था । बाद में उसकी नौकरी अमेरिका  की एक अच्छी कंपनी में लग गई थी ,तब से वह वही रहता था । इस बार वह अपने अमेरिकी बीवी और दस साल के बेटे के साथ आ रहा था। अब तक परिवार का कोई सदस्य उसकी बीवी व बच्चे से साक्षात रूप में नहीं मिला था।यह पहला अवसर था ,
बेटा घर आ गया शाम को घर में पार्टी रखी गई । शर्मा जी का पोता दूसरे बच्चों के साथ जल्दी घुल मिल गया बस हिन्दी साफ़ नहीं बोल पा रहा था। घर के बच्चे उसे अपने दोस्तों से मिलवा रहे थे”। यह हमारा बाहर वाला ममेरा भाई है, इसे हिन्दी नही आती यह भारतीय नहीं एन आर आई है । कुछ ही देर में बच्चा शर्मा जी के बेटे के पास पहुँचा और बोला “ पापा आप अमेरिका में हमेशा मुझे कहते हो मुझे भारतीय संस्कृति और भाषा सीखनी चाहिए । अमेरिकन लोग भी मेरा अमेरिका  में जन्म होने के बाद भी और हमारी अमेरिकी नागरिकता होने पर भी हमें भारतीय ही मानते है, अमेरिकन,  नही, फिर यहाँ भारत में यह लोग मुझे भारतीय न कह कर बाहर वाला या एन आर आई क्यों बुला रहें हैं?”बेटे के मुँह से यह बात सुन शर्मा जी का बेटा सोचने को मजबूर हो गया ,सच ही तो कह रहा है बेटा आख़िर हमारी पहचान क्या है? क्या सच में हम त्रिशंकु है ?
कर्म
बेचारी निरा भागते भागते और लोगो से अपने लहू लुहान अध नग्न शरीर को बचाने और दर्द से काँपतीं टांगों को ढकने के लिए सहायता माँगती माँगती लगभग दो किलोमीटर तक गिरती पड़ती चली आ रही थी । संभ्रांत लोगों के इस नगर में उसे कोई एक ऐसा द्वार व्यक्ति या स्त्री नहीं मिली जो उसके शरीर व अंतर्मन के दर्द को समझ एक कपड़े का एक टुकड़ा उसे दे देते या उसे एक घूँट पानी ही पिला देते ।पर हाँ  हर  व्यक्ति की निगाह उसके शरीर को अजीब सी निगाहों से ज़रूर देख रहे थे ।थक हार कर बेचारी बच्ची शहर की एक पतली सी गली में शरण लेने को घुस गई और कुछ दूर चलते ही निढाल हो कर एक दिवार के सहारे बैठ गई ।
उसकी आधी चेतना में उसके कानों में एक स्वर सुनाई दिया। दिवार शायद किसी मंदिर की थी। स्वर कह रहा था इंसान जैसा कर्म करता है वैसा ही फल उसे भोगना पड़ता है। बेचारी दस वर्षीय नीरा यह वाक्य सुन कर अपने मन में सोच रही थी ,कि मैंने तो कोई बूरा कर्म नहीं किया ,फिर उन चार अंजान लोगों ने मुझे  घर से बाहर सुनसान जगह पर ले कर ,मेरे साथ ऐसा घृणित कार्य कर मुझे मेरे किस बुरे कर्म की सजा दी है?
डर
माया आज सुबह जल्दी उठ गई थी । आज उसकी सत्रह साल की बेटी परीक्षाएँ ख़त्म होने के बाद एक सप्ताह के लिए स्पेन जा रहे थे।माया को यूँ जवान बेटी को पाँच दिनों के लिए लड़के, लड़कियों का अकेले जाना कुछ पंसद नहीं आ रहा था पर बेटी का मन रखने को उसने अनमने मन से उसे जाने की अनुमति दे दी थी । यूरोप और विशेष रूप से नीदरलैंड अपनी स्वच्छंद प्रवृत्ति के लिए विख्यात है। माया को भी ब्याह कर यहाँ आए बीस वर्ष हो गए थे ।उसके पति विपुल ने यहीं नीदरलैंड में ही जन्म लिया था । उसने बेटी की पाँच दिन के ज़रूरत के सब समान उसके सूटकेस में रख दिए थे। उसके रात को पहन कर सोने के कपड़े; पाँच दिन की पाँच टी शर्ट दो जीन्स वग़ैरह ,बाक़ी सब सामान तो होटल में मिल ही जाना है।
नीदरलैंड से स्पेन की तीन घंटे की उड़ान है ,फिर भी एक घंटे पहले चैक इन करना ज़रूरी होता है। माया ने सब सामान तैयार कर नीया और विपुल को आवाज़ लगाई एयरपोर्ट जाने का समय हो गया। नीया जल्दी से अपना हैंड बैग लेकर नीचे आई ,विपुल भी गाड़ी की चाबियाँ हाथ में लेते हुएबाहर आ गए । कुछ ही देर में वह एयरपोर्ट पर थे। नीया के दोस्त और सहेलियाँ वहाँ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रहे थे। नीया ने जल्दी से माया और विपुल के गालों पर चुंबन किया और अपने दोस्तों की तरफ़ मुड़ी ही थी की माया ने उसके हाथ में एक छोटा सा पैकेट थमा दिया और कहा ज़रूरत पड़े तो इसका उपयोग ज़रूर करना। नीया ने स्पेन पहुँच कर जब कोट की जेब में से वह पैकेट निकाला तो देखा उसमें गर्भ निरोधक गोलियाँ थी।

डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे
स्वतंत्र पत्रकार व लेखिका
नीदरलैंड
  • भारत की बेटी,सूरीनाम की बहूँ व नीदरलैंड की निवासी
  • स्वतंत्रत पत्रकार, लेखिका
  • कवियित्री व समाजसेवी
  • डिस्ट्रिक्ट आसन (नीदरलैंड)
  • टाऊन हाल की सलाहकार समिति की सदस्या
  • Stichting Suriname Hindi parishad  व Nederland Hindi Parishad में अध्यापिका के रूप में जुड़ कर हिंदी को आगे बढ़ाने में प्रयासरत ।  वर्तमानमे “यूरोप कीप्रसिद्ध बाल कहानियाँ “ प्रकाशनार्थ ।
  • अध्यक्ष “ अंतरराष्ट्रीय हिंदी संगठन नीदरलैंड
  • सह अध्यक्ष फ़ेसबुक पेज world of children’s Literature, Art & Cultuur
  • पूर्व संचालिका दिल्ली दूरदर्शन
    • पत्रिका, व साहित्यकी
  • पूर्व समाचार वाचिका
  • विदेश प्रसारण विभाग
  • ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली
    • पूर्व लेक्चरर पत्रकारिता व जनसंचार माध्यम दिल्ली विश्वविद्यालय
  • 2012-2017 तक Sociale Culturele werk Pittelo (नीदरलैंड) की अध्यक्ष पद परकार्यरत रही |
  • 2005 :अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह
  • नीदरलैंड की संचालिका
  • संस्थापिका
  • Mama ochtend (एक सुबह माँ केनाम)
  • महिलाओं को  डच व हिन्दी भाषा के व उनके अधिकार क्षेत्र के बारे में अवगत कराना।
    • MeidenClub ( Girls Club)
  • बारह से पंद्रह साल की लड़कियों के लिए स्वास्थ्य ,शिक्षा  ,स्कूल व पारिवारिकसमस्याओं से संबंधी समस्याओं का निदान ।
  • भाषा: हिन्दी,अंग्रेज़ी, डच
  • कार्य अनुभव:
  • 6 साल तक दिल्ली दूरदर्शन के साहित्यक कार्यक्रम
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2 टिप्पणी

  1. अच्छी लघुकथाएँ हैं ऋतु जी!
    पहली लघुकथा में तो यही कह सकते हैं कि बच्चे जो सुनते हैं वही कहते हैं। पर अपने ही घर में अपना परायापन तकलीफ देता है।
    दूसरी लघुकथा मार्मिक है।और यह सत्य घटना लगी। अचानक याद आया।इंदौर या उज्जैन में कहीं इस तरह की घटना घटी थी। लोग कपड़े तक न दे सके। यह लघुकथा सोचने पर विवश करती है कि इंसान कितना संवेदनहीन हो गया है।हम पशु से भी बदतर होते जा रहे हैं।
    डर कहानी में माँ का डर जायज लगा। स्वतंत्रता को स्वच्छंदता समझती है नयी पीढ़ी। पर माँ का गर्भ निरोधक गोलियां देना भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है?
    सार्थक लघुकथा के लिये शुक्रिया आपका। आभार पुरवाई

  2. आदरणीया Neelima Karaiya ji मेरी लघुकथाओं को पंसद करने व आपके उत्साहवर्धक आशीर्वचनों के लिए मैं आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ ❤️

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