1 – प्रसाद
लंबी बेरोजगारी से परेशान चार युवकों के चेहरों पर अब नौकरी लग जाने से संतुष्टि के भाव थे। चारों खुश थे और इसी खुशी में अपनी नौकरी के पीछे का रहस्य बता रहे थे।
पहला युवक – “मैंने सीधे बड़े साहब से बात की, ताकि चूक की कोई गुंजाइश ही न रहे। बात पूरे दो लाख में बनी।”
दूसरा युवक – “मैंने छोटे साहब से बात की। वे स्थापना विभाग के प्रभारी थे, इसलिए चूकने की आशंका नहीं थी। मैंने लाख रुपए में बात पक्की की थी।”
तीसरा युवक – “मैंने डीलिंग क्लर्क से बात की थी। हस्ताक्षर होने के बाद भी सूची में बीच में एक–दो नाम डालने की योग्यता उसमें थी ही। वह पचास हजार में ही मान गया।”
चौथा युवक – “मैंने किसी को रुपए नहीं दिए, मेरा काम मुफ्त में हो गया।”
बाकी तीनों युवक एक स्वर में बोले – “सफेद झूठ!”
चौथे युवक ने राज खोला – “मैंने चार अन्य बेरोजगार युवकों से साहब को रुपए दिलवाए, तो प्रसाद के रूप में मुझे नौकरी मिल गई।”
2 – अपना-अपना उपहार
‘कमला, तुम अपनी बेटी राधा को उसके बर्थडे पर क्या गिफ्ट देती हो? मैंने तो अपनी सोनिया को एक से बढ़कर एक कीमती और खूबसूरत गिफ्ट दिए हैं।‘ यह कहते हुए मेमसाब के चेहरे पर अहंकार साफ झलक रहा था।
‘मैं तो अपनी राधा को दिनभर का समय देती हूं। उसके जन्मदिन पर पूरा दिन उसी के साथ गुजारती हूं…’
कमला की बात पूरी भी न हुई थी कि मेमसाब ने व्यंग्य से कहा– ‘यहां से छुट्टी मारकर! वैसे भी तुम्हारे पास है ही क्या देने को? राधा नासमझ है तो तुम्हीं को देख–देखकर खुश हो जाती होगी।‘
कमला सहजता से बोली– ‘जिसके पास जो होगा वही देगा न दीदी!’
उसकी बात सुनकर मेमसाब थोड़ी असहज हो गईं। फिर उन्होंने अपनी कलाई पर बंधी कीमती घड़ी की ओर देखा और किटी पार्टी के लिए निकल गईं।
सोनिया हमेशा की तरह वीडियोगेम में व्यस्त थी। उसे न अपनी मम्मी के आने का पता चला, न जाने का!