मैन्युफैक्चरिंग डिफ़ेक्ट
बलात्कार के बाद नृशंस हत्या के अपराधी को रिमांड पर ले आयी पुलिस, जब काफ़ी टॉर्चर के बाद भी उसका मुँह नहीं खुलवा पायी तो उसे अपनी टीम के मनोवैज्ञानिक एक्सपर्ट के हवाले कर दिया ।
“तुम्हारा नाम क्या है ?”
“असली नाम तो माँ-बाप रखते है, पर मेरा बाप हम छः भाई बहनों को गिनती से याद रखता था। एक नाम था जिससे वो हम सबको बुलाता था ‘सूअर की औलाद’ । पहले अजीब लगता , पर दिन के उजाले में उसे कीचड़ में पड़ा देख जल्द ही यकीन हो गया था । “
“औरत क्या है ?”
“औरत सिर्फ चढ़ने की चीज़ है , ये हमारे बाप ने हमें बचपन में ही बता दिया था। 8 बाई 9 की उस खोली से वो हम भाई बहनों को बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर देता तो हम दरवाजे के सुराखो से झांकते और फिर उसने दरवाजा बंद करना ही छोड़ दिया था ।”
“मर्द क्या है ?”
“मर्द खुल्ला सांड है जिसे अपनी पसंद की हर चीज़ पर मुँह मारने का पूरा हक है। उसे रोकने के लिये डंडे बरसाये जा सकते हैं, पर यहाँ भी जीतने के लिये डंडे को चमड़ी से सख्त होना होगा।”
“समाज क्या है ? “
“पता नहीं, पर जंगल जैसा ही है जहां जीने के लिये छीनना पड़ता है ।
तेरे बाप ने तुझे दिमाग से छीनना सिखाया है, तेरे आगे पीछे लाईन में कितने तेरे जैसे होंगे पर तूने अपने दिमाग के दम पर ये नौकरी उनसे छीन लिया होगा।
मेरा बाप हाथ और पांवों से छीनता था बिल्कुल गली के कुत्तों जैसा। जितना तेज़ गुर्रा सकते हो, जितना बड़ा टुकडा नोंच सकते हो उतना बड़ा इलाका तुम्हारा, और इलाका ना भी मिला तो तुम जैसे जगह दे देते हो। बड़े शौक से पालते हो तुम सब खूँखार कुत्तों को अपने घरों में ।”
“तुम्हारा इलाज क्या है ?”
” कितनी बार कहूँ बीमार नहीं हूँ मैं , तुम सब से अलग हूँ ।
तुम्हारे आस पास सैकड़ों ना दिखने वाले जंगल हैं, जहां मेरे जैसे रोज पैदा होते हैं। और तुम सब को उन्हे अपने जैसा बनाने का होश उस वक्त आता है, जब उन्हे या तो पालतू बनाया जा सकता है, पिंजड़े में डाला जा सकता है या फिर जान से मारा जा सकता है।
दाढ़ी वाले मास्टर ने भी बड़ी कोशिश की थी, मुझे तुम जैसा बनाने की, और एक दिन मैंने उसे ही उसकी इस फालतू की कोशिश से आजाद कर दिया था। आखिर जाते जाते वो माना था कि ‘तेरा कुछ नहीं हो सकता तेरे में तो मेन्यूफेक्चरिंग डिफ़ेक्ट है।”
दलदल
आज फिर से उसकी भागने की कोशिश नाकाम हो गयी थी।
राबिया से उसके चोट और खरोचों के रिसाव देखे नहीं जा रहे थे, और वो मरहम पट्टी लेकर उसके पास पहुँची।
“खबरदार, जो अपने गंदे हाथों से मुझे छुआ तो।”
“नयी है तू , तुझे तो यहाँ की गंदगी का ठीक से अंदाजा भी नहीं है।
और अपना ये गुस्सा उस नामर्द के लिये बचा कर रख जो तुझे यहाँ छोड़ गया है।”
राबिया उसके ऐतराज के बावजूद उसके घावों को साफ करती रही। तो वो फिर से बोली, “तेरी तरह कमजोर नहीं हूँ मैं, जो हर रोज खुद को किसी के नीचे बिछाने को तैयार हो जाऊँ। सुना तो होगा ही, जहां चाह वहाँ राह।”
“बिल्कुल सही कहा तूने,
हाथ पांव मारने का फायदा तो होता ही है, पर शर्त ये कि हम सख्त मिट्टी पर हो ना कि किसी दलदल में।
..चल आज तो मैने कर दी, पर आगे हम सबने जैसे सीखी है तू भी सीख ले खुद की मरहम पट्टी करना।”