1
कुछ इस तरह से किया दर्द का चारा हमने
हर एक अश्क को कागज़ पे उतारा हमने।
अजनबी शहर की अनजान सूनी राहों में
याद कर कर के तुझे वक़्त गुज़ारा हमने।
घिर के हालात के तूफां में क्या बताएं हम
तुमको ए दोस्त कई बार पुकारा हमने ।
ज़िन्दगी ख्वाब की मानिंद बिखरती ही रही
ये और बात उसे फिर भी संवारा हमने।
गिला किससे करें नाकामियों का हम अपनी
खुद अपने आप पे ये कहर गुज़ारा हमने।
छूटता जाता था उम्मीद का दामन फिर भी
आखिरी आह तलक तुझको पुकारा हमने।
जब रकीबों ने किया रुसवा नाम ले के तेरा
बड़ी हसरत से तेरी और निहारा हमने ।
मेरे वजूद में शामिल है यूं वजूद तेरा
आईने में भी किया तेरा नज़ारा हमने।
बहुत सकूं है कोई रंज ओ गम नहीं बाकी
कर लिया अब ‘स्मृति’ दुनिया से किनारा हमने।
2
उजालों में भी मुझको तीरगी महसूस होती है
की दिल को जब तुम्हारी तश्नगी महसूस होती है।
कभी कर बैठे गर कोई तुम्हारा ज़िक्र भूले से
मुझे पलकों में हल्की सी नमी महसूस होती है।
नवाज़ा है मुझे इस ज़िन्दगी ने हर खुशी से पर
मुझे हर शै मैं तेरी ही कमी महसूस होती है।
तड़प के जान कदमों में लूटा देने को जी चाहे
मुझे जब भी तुम्हारी बेरूखी महसूस होती है।
बड़ी शिद्दत से मुझको और भी तुम याद आते हो
तुम्हे जब भूलने में बेबसी महसूस होती है।
3
सिवा अपने किसी को वो बड़ा होने नहीं देता
यही एहसास आदम को ख़ुदा होने नहीं देता ।
यूं तो हम भूल गए उसको एक अर्सा हुआ
कुछ तो बाक़ी है जो हमें रात भर सोने नहीं देता।
एक सैलाब रुका रहता है पलकों में मगर
खौफ ए रुसवाई हमें फूट के रोने नहीं देता।
मेरा आगाज़ वही था वही अंजाम भी है
यही ख़्याल मुझे ग़ैर का होने नहीं देता।
नींद में देखे हुए ख़्वाब कि औकात ही क्या
ख़्वाब वो है जो कभी चैन से सोने नहीं देता
उसको चाहत है फ़कत अपनी ही बुलंदी की
अपने हमसाए को भी वो खड़ा होने नहीं देता।
अजीब हाल हुआ उससे बिछड़ने में ‘स्मृति’
अक्स उसका कभी तनहा मुझे होने नहीं देता।