होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. कृष्ण कन्हैया की ग़ज़ल – फ़िक़्र है अपनों की दुआ न... ग़ज़ल एवं गीत डॉ. कृष्ण कन्हैया की ग़ज़ल – फ़िक़्र है अपनों की दुआ न लगे द्वारा डॉ. कृष्ण कन्हैया - December 18, 2022 78 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet फ़िक़्र है अपनों की दुआ ना लगे पर हमें ग़ैर की बद्दुआ ना लगे या रब! ऐसी तबीयत देना हमें वो बुरा कहें, मुझे बुरा ना लगे बंद कमरे में, सहेजता हूँ जज़्बा उसे रंजोग़म की, हवा ना लगे बेवफ़ा कहता था, मुझे हर वक्त अब उसे फिक़्र है बेवफ़ा ना लगे मैं एहसास तक घुटनों पर था ताकि मेरी नमाज जुदा ना लगे मैं टुकड़ों में, जोड़ता रहा ग़म इस सुक़ून से- ग़मज़दा ना लगे कुछ नुक़्स, ढ़ूंढ़ने लगा हूँ उनमें ताकि इबादत में ख़ुदा ना लगे संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं दीपावली पर विशेष : वशिष्ठ अनूप का गीत कमलेश कुमार दीवान का दीपावली पर एक गीत – आओ अंतर्मन के दीप डॉ. रूबी भूषण की दो ग़ज़लें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.