फ़िक़्र है अपनों की दुआ ना लगे
पर हमें ग़ैर की बद्दुआ ना लगे
या रब! ऐसी तबीयत देना हमें
वो बुरा कहें, मुझे बुरा ना लगे
बंद कमरे में, सहेजता हूँ जज़्बा
उसे रंजोग़म की, हवा ना लगे
बेवफ़ा कहता था, मुझे हर वक्त
अब उसे फिक़्र है बेवफ़ा ना लगे
मैं एहसास तक घुटनों पर था
ताकि मेरी नमाज जुदा ना लगे
मैं टुकड़ों में, जोड़ता रहा ग़म
इस सुक़ून से- ग़मज़दा ना लगे
कुछ नुक़्स, ढ़ूंढ़ने लगा हूँ उनमें
ताकि इबादत में ख़ुदा ना लगे

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