जब कोई सामने झुकता है तो सोचते हैं हम कुछ भी तो नहीं हैं। जब कोई सामने तनता है तो सोचते हैं,  तुम हो क्या ? बन्दर को मिली हल्दी की गांठ पंसारी बन बैठा। ऐसा इसलिए होता है कि झुकने, तनने  वाले दोनों में ही ईश्वर का नूर है और ईश्वर को तनना, ऐंठना पसंद नहीं। आँधी में तनने, ऐंठने वाले पेड़ टूट जाते हैं। जड़ें  उखड़ जाती हैं। धराशायी हो जाते हैं। लचीले झुकने वाले सभी  छोटे-बड़े पेड़ बचे रहते हैं। आदमी के भाव भी नींबू-टमाटर की तरह हैं, उठते हैं तो लोग कमेंट मारते हैं, भाई इसकी न पूछो, आजकल आसमान पर बैठ गया है।
नींबू आसमान पर बैठा तो लोगों ने खरीदना बंद कर दिया। देखना बंद कर दिया। कुछ लोग खरीदकर चुटकले बनाने लगे। सस्ते बनो तो नालियों में मिलते हैं।  दुकानों पर टँगते  हैं। सड़क पर गिरे, पड़े, कुचले मिलते हैं। पड़े-पड़े सूख जाते हैं। सामान्य भाव रहें तो कोई गरीब हो या अमीर, मध्य वर्ग हो या उच्च वर्ग सब सस्ता समझ चबा जाते हैं, फेंकते रहते हैं। न अपर क्लास छोड़ती है न लोवर यहाँ तक कि मध्य वर्ग भी अपने इस वर्ग की जान के पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है।  दे शिकंजी दे सूप, सड़ा-सड़ा कर डस्टबीन में डालते हैं। नींबू की तरह हमारे अधिकतर वरिष्ठ भी आसमान पर जा बैठे हैं। वे केवल अमीरों के लिए सुलभ हैं। अमीरी का अपना अलग व्याकरण है। अमीर कैसे बने ये बात मायने नहीं रखती। कुछ खानदान दत्त अमीर हैं। कुछ फादर-मदर  दत्त अमीर हैं। कुछ मित्र-यार-रिश्ते  दत्त  अमीर  हैं तो  कुछ रुपया दत्त  या सत्ता दत्त अमीर हैं।
साहित्य दत्त अमीर केवल वहीं हैं जिन्हें माँ शारदे ने गोद में बैठाकर दुनिया को ईर्ष्या की आग में झुलसा डाला हो। जिन्हें देखकर सारे बच्चे कह रहे हों  हम क्या सौतेले हैं। वैसे ऐसे लाडलों को सबकी उपेक्षाएँ  झेलनी पड़ती हैं। सीनियर- जूनियर सब उनका बहिष्कार कर डालते हैं। बात नींबू की थी। दाम बढ़ने पर नींबू की तरह वरिष्ठ भी कहते हैं, हाँ हूँ खट्टा, मुझे खाते ही क्यों हो? उन्हें लाख समझाओ कि जब तुम पेड़ पर थे, कच्चे थे, तुम्हें कोई सूँघता भी नहीं था मगर उन्हें कोई फर्क न पड़ेगा।
खैर लोग इतना खट्टा,  बौना,  घमंडी नींबू खाने के बजाय मीठा सुंदर बड़ा संतरा क्यों न खाएं। न वह इतराता है न वह आसमान पर बैठा है। बैठ भी जाये तो खाकर कुछ पेट तो भरे मजा तो आये। दिल बाग-बाग तो हो। सो मित्रो नींबू हम सब की पहुँच से बाहर है इस खड़ूस का बहिष्कार कर सह्रदयता से भरपूर वरिष्ठ संतरों  मुसम्मियों  की तरफ ध्यान दो। संतरा भगवा नहीं कभी किसी दूसरे अर्थ में ले लो। उसका रंग रूप ही भगवा लगता है। वह निरा सज्जन, मानवीयता, पौष्टिकता, विटामिन सी  से भरपूर ग्रेट फल है। उसे खाकर उल्टी   भी नहीं आती। एसिड भी नहीं बनता।
नन्हे मुन्ने बच्चे की तरह छोटे साहित्यकार भी उसके एसेंस से बनी रसना पर लट्टू रहते हैं। ये  जान में जान डाल  देता है खाते ही।  हमारे अच्छे वरिष्ठ जनों की तरह। सो सब एक साथ बोलो नींबू मुर्दाबाद संतरा मुसम्मी  जिंदाबाद। सवाल ये है उन ठिगने, बौने, खट्टे नींबूओं को आसमान पर चढ़ाया किसने है।

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.