Saturday, July 27, 2024
होमलघुकथाकुमार गौरव की लघुकथा - चाभी

कुमार गौरव की लघुकथा – चाभी

  • कुमार गौरव

एक नवयुगल बेंच पर प्रेमालाप में मग्न था। सामान साथ था मतलब उन्हें आनेवाली ट्रेन पकड़नी थी। वहीं बेंच के सटे दूसरी तरफ वाली बेंच पर एक अधेड़ जोड़ी बैठी थी वे अपनी बेटी को लेने आए थे। दोनों जोड़े एक ही ट्रेन के इंतजार में थे । मगर ये इंतजार के पल नवयुगल के लिए फूल से मुलायम थे तो इनके लिए शूल से कठोर ।
अधेड़ जोड़े ने अभी तक आपस में कोई बात नहीं की थी । युवक ने उन दोनों को दूसरी तरफ देखता पाकर हौले से अपनी प्रिय का हाथ चूम लिया ।
अधेड़ ने कनखियों से देखा और मुस्कुराते हुए  पत्नी की तरफ रूख किया । पत्नी ठस्स बनी बैठी । उसने घड़ी देखी जो बँद पड़ी थी । चिढ़ कर उसने घड़ी को थपथपाया  और बुदबुदाया ” घड़ी बँद रहने से वक्त के बीतने का पता भी नहीं चल रहा । “
औरत ने एक नजर उसकी तरफ देखा और तीखे स्वर में बोली “उसमें चाभी देना पड़ता है समय समय पर । “
अधेड़ ने चौंककर उसकी तरफ देखा लेकिन वह पूर्ववत मुँह फेर चुकी थी । वह भी बेंच की पुश्त से सर टिकाकर इस ठहरे हुए रिश्ते की चाभी के बारे में सोचने लगा ।
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest