वीडियोग्राफी और सर्वे का काम खत्म हो चुका था l कोर्ट परिसर खचाखच भीड़ से भरी हुई थी l सबकी साँसें रूकी हुई थीं l कि आखिर फैसला क्या आयेगा l फैसला देने के लिये जज साहब भी सोच ही रहे थें l तभी खचाखच भरी उस भीड़ में अचानक से बूढ़ा माईकल नमूदार हुआ l और जज साहब से मुखातिब होते हुए बोला – ” जज साहब , हमारे अस्पताल वाले फैसले का क्या हुआ ? जो सालों पहले से यहाँ लंबित पड़ा हुआ है l मेरा वकील कह रहा था कि आजकल में मेरे गाँव के विवादित जमीन जिसपर अस्पताल बनना तय हुआ था l कुछ दबंगों ने जबरजस्ती कब्जा कर लिया है l
आपको पता भी है मेरी बीबी इलाज के लिये एड़ियाँ रगड़- रगड़ कर गाँव में ही मर गई l उसी दिन मैनें कसम खाई थी कि हमारे गाँव में भी हमारे लिये अस्पताल होगा l किसी को भी गाँव से बाहर दस किलोमीटर दूर नहीं जाना होगा l गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी रास्ते में अब नहीं होगी l कोरोना में अस्पताल नहीं रहने के कारण हमारे गाँव के कई लोग मर गये l गाँव में अस्पताल होता तो शायद कितने लोगों की जान बच सकती थी l अब अपने गाँव में और मौतें मैं नहीं होने देना चाहता l “
बूढ़ा माईकल बोलते -बोलते थकने लगा था l कुछ देर सुस्ता कर फिर बोला – ” जज साहेब l आज मेरा फैसला कर दीजिये l बहुत तारीखें पड़ चुकीं l ” सत्तर साल का बूढ़ा माईकल जो पीठ से काफी झुका हुआ था ने जज साहब के इजलास में अपनी फरियाद सुनाई l
उसकी इस तरह की बातें सुनकर l वहांँ , मोजूद लोग माईकल को कौतूहल से देखने लगे l गोया उन्होंने भूत देख लिया हो l
तभी संतरी सेवाराम ने माईकल को डपटा – ” तुमको पता नहीं है कि आज किस चीज का फैसला आने वाला है l आज इस बात का फैसला आयेगा l कि जगदतदल पुर में मंदिर बनेगा या मस्जिद l सारा देश इस फैसले को देखने के लिये बैठा हुआ है l देखते नहीं कि ये फास्ट- ट्रैक कोर्ट लगा हुआ है l चलो जाओ और जज साहब को अपना फैसला सुनाने दो l तुम्हें मालूम है अगर ये फैसला ना आया तो बलबा मच जायेगा l बलबा ! समझे कुछ l बहुत सेंसीटिव मुद्दा है l “
बूढ़ा माईकल अब भी कुछ नहीं बोला l और वहीं का वहीं खड़ा रहा l तब जज साहेब ने लताड़ा – ” कैसे अहमक हो भाई तुम l एक बार में बात समझ नहीं आती क्या ? तुम्हारे अस्पताल वाले जमीन के केस के लिये कोई दूसरा दिन मुकर्रर किया है l तब तक घर जाओ और आराम करो l ” जज साहब टालने की गरज से बोले l
इस बार माईकल कुछ ऊँची आवाज में बोला – ” जज साहेब मंँदिर – मस्जिद की जरूरत किसको है l हमें तो अस्पताल और स्कूल चाहिये l अफसोस है कि इस पर फैसले नहीं होते l और हम आँखें बँद किये रहते हैं lईश्वर तो दर असल यहीं बिराजते हैं l डाॅक्टर के रूप में l शिक्षक के रूप में l क्या अस्पताल और स्कूल सेंसिटिव मुद्दे नहीं हैं l लोगों को अस्पतालों और स्कूलों के लिये बलवा करते कभी नहीं देखा l आदमी को स्कूलों और अस्पतालों के लिये लड़ना चाहिये l ना कि मंँदिर और मस्जिद के लिये l क्या मैं ठीक कह रहा हूँ जज साहेब l”
बूढ़ा माईकल जज साहब से सवाल पूछ रहा था l और जज साहेब उजबकों की तरह माईकल के चेहरे को घूरे जा रहें थें l उनको समझ में नहीं आ रहा था l किस फैसले का निपटारा वो पहले करें l
प्रसंग सामायिक है और कुलबुलाने वाला भी; लेकिन, भाषागत त्रुटियां अखरती हैं।
इतनी अच्छी लघुकथा के लिए लेखक को साधुवाद!