“अम्मा, अब बताओ तुम छोटी बहू के साथ रहोगी या बड़ी ? “
“बड़ी! सीधा, शांत उत्तर देकर अम्मा बड़ी का मुँह प्यार से देखने लगीं।”
सभी रिश्तेदार व और भी जो लोग इकट्ठा थे आश्चर्य से अम्मा को देखने लगे।
“पर अम्मा रोज़ तो बड़ी तुमसे नाराज़ हो जाती है ? फिर भी!!“ छोटे बेटे ने पूछा।
“हाँ, जानती हूँ, लेकिन बहू से ये मेरी माँ कब बन गई पता ही नहीं चला।”
“लेकिन चिल्लाना ?”
“अरे बच्चा गलती करेगा तो माँ तो ग़ुस्सा करेगी ना ,इसे मेरी चिंता रहती है ।मैं समय से दवाई ना लू ,खाना ना खाऊं, तो कब तक शांति से बोलेगी… कभी तो ग़ुस्सा आएगा ना!!“
“अम्मा, अब बहुत देर से बैठी हो चलो कमरे में, लेट जाओ।”
बड़ी बहूँ साधिकार अम्मा की उँगली पकड़े कमरे में ले जा रही थी। अम्मा भी मुस्कराती नटखट बच्चे-सी बहू के साथ हिलती-डुलती चल दी।