Tuesday, October 8, 2024
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डॉ सपना दलवी की लघुकथा – राह ताकती आस भरी निगाहें

दिव्या खुशी से उछलती हुई,मां.. मां.. कहा हो तुम..? जल्दी आओ तो यहां मैं तुम्हें कुछ दिखानेवाली हूं। इतने में कमला बाहर आई और उसने दिव्या को कहा,अरे बेटा तुम तो अभी आई हो बाहर से,थक चुकी होगी,थोड़ा पानी पिलो फिर आराम से बताना। दिव्या ने मां की हाथ से पानी का ग्लास लिया और दोनों सोफा पर बैठ कर बातें करने लगी।
मां पता हैं मेरे फाइनल ईयर का रिजल्ट आ गया आज। क्लास में सबसे टॉपर बन गई।अब तुम्हारी बेटी बहुत जल्द डॉक्टर बनेगी और अपनी मां को वो सारी खुशियां देगी। मां मैं आज बहुत खुश हूं, मेरा डॉक्टर बनने का सपना साकार हो गया है।
दिव्या की बात सुनकर कमला की आंखों से आसूं निकल रहे थे। मां क्यों रो रही हो तुम..? नही बेटा मैं कहा रो रही हूं यह तो खुशी के आसूं हैं। सच में तू कितनी बड़ी हो गई हैं दिव्या।कुछ देर दोनो एक दुसरे की तरफ़ देखते रहे। फिर कमला ने दिव्या को उसके पापा की तसवीर के पास खड़ा कर के, पापा से आशीर्वाद लेने के लिए कहा।
दिव्या ने पापा की तसवीर की तरफ़ देखा तभी,पापा आ गए, पापा आ गए, दिव्या खुशी से कूदती हुई पापा की तरफ़ गई। रमेश ने दिव्या को गोदी मे लिया। दिव्या ने पूछा पापा मेरे लिए क्या लेकर आए हो आप..?दिखाओ ना जल्दी, रमेश ने प्यार से दिव्या बेटा यह देखो मैं तुम्हारे लिए एक प्यारी सी गुड़िया लेकर आया हूं।दिव्या बोली पापा मुझे गुड़ियां नही मुझे डॉक्टर वाली ड्रेस चाहिए। मुझे बड़ी होकर डॉक्टर बनना है। रमेश दिव्या की बात सुनकर मुस्कुराने लगा और कहा, ठीक है मेरी लाड़ो बेटी अगली बार मैं तुम्हारे लिए जरूर डॉक्टर वाली ड्रेस लाऊंगा। मेरी गुड़ियां रानी बहुत अच्छी डॉक्टर बनेगी।
पर रमेश कभी लौटा ही नही। पर पापा के इंतजार में दिव्या आज भी आस भरी निगाहों से राह ताक रही है। दिव्या की आंखों से आसूं बह रहे थे। बेटा दिव्या, बेटा क्या हुआ..? कहा खो गई तुम..?पापा की याद आ रही है..?कमला बोले जा रही है.. दिव्या एकदम से अपनी यादों से बाहर आकर मां..मां..पापा मेरे लिए डॉक्टर वाली ड्रेस लाने वाले थे ना। पर आज तक नही आए है। बोलकर फूट फूट कर रोने लगी। कमला ने दिव्या को गले लगा लिया। कमला खुद भी पुरानी यादों में खोकर,कहीं गुम हो गई। दिव्या आस भरी निगाहों से आज भी पापा की राह देख रही है।
डॉ. सपना दलवी
डॉ. सपना दलवी
स्त्री विमर्श लेखिका संपर्क - [email protected]
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