दीपू सातवीं कक्षा में था। पढ़ाई में औसत।आलसी भी। वह सुबह – सुबह तैयार हो स्कूल जाने में अक्सर देर कर देता था। मां- बाप के झकझोर कर उठाने से भी वह जल्दी नहीं उठता। अलार्म घड़ी भी जैसे ही बजती उसका बटन दबा उसे बंद कर फिर से सो जाया करता। उसके मां – बाप को दीपू के अक्सर देर से स्कूल पहुंचने को लेकर स्कूल प्रबंधन से हमेशा शिकायतें सुनने को मिलती रहतीं। उसके मां-बाप इसको लेकर परेशान रहते। इधर जिस भाड़े के मकान में वे लोग वर्षों से रहते आ रहे थे, कुछ कारण से उन्हें दूसरे मकान में शिफ्ट करना पड़ा।इस नये मकान से सटा एक परिवार के बुजुर्ग व्यक्ति रोज सबेरे ठीक छः बजे भगवान की पूजा करने के क्रम में शंख व घंटी कुछ देर तक बजाया करते थे।उसकी आवाज से दीपू की नींद हर रोज सुबह – सुबह खुल जाती।वह चाहकर भी उस आवाज को आने से रोक नहीं सकता था।एक – दो दिन तो उसे सुबह – सुबह उठने में अंदर ही अंदर चिड़चिड़ापन भी महसूस हुआ पर धीरे – धीरे ही सही अब वह ठीक सुबह छः बजे जैसे ही शंख व घंटी की आवाज उसके कानों तक जाती उसकी नींद बरबस टूट जाती और वह बिस्तर छोड़ देता। फिर तैयार हो समय पर स्कूल पहुंच जाया करता।
दीपू के मां-बाप भी समझने लगे थे कि शंख व घंटी की आवाज उनके लिए वरदान से कम नहीं।वे मन ही मन पड़ोसी को धन्यवाद भी देते।
पर जीवन -मरण का क्या भरोसा! आज दोपहर बाद जब दीपू अपने स्कूल से घर वापस आया तो देखा कि सुबह – सुबह शंख व घंटी बजाकर पूजा करने वाले पड़ोसी अंकल के यहां भीड़ लगी थी।पता चला कि वे स्वर्ग सिधार गए। उसे एक पल तो लगा कि अब अच्छा हुआ सुबह – सुबह शंख व घंटी की आवाज उसे नहीं जगा पाएगी परंतु दूसरे ही पल वह अन्य लोगों की आंखों में आंसू देख गमगीन हो चला। आखिर था तो वह अभी बच्चा ही।वह इन सब घटनाओं से विमुख हो रात में होम वर्क करने के बाद खाना खाकर सो गया।
परंतु अगली सुबह बिना शंख व घंटी की आवाज सुने ठीक छः बजे दीपू की नींद खुल चुकी थी।वह अपना बिस्तर छोड़ समय पर तैयार हो स्कूल के लिए निकल चुका था।
दीपू की मां ने अपने पति से पूछा- ” आज न तो शंख न ही घंटी की आवाज आई फिर भी दीपू ने ठीक समय पर बिस्तर छोड़ दिया। आखिर उसमें ऐसा परिवर्तन आया भी तो आया कैसे?”
पति ने जवाब दिया- जैविक घड़ी।