होम लघुकथा बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की तीन लघुकथाएँ लघुकथा बालकृष्ण गुप्ता ‘गुरु’ की तीन लघुकथाएँ द्वारा Editor - August 29, 2021 193 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet जिसका जूता… एक राजनीतिक पार्टी के झंडे के रंग की जींस और बनियान पहने युवक ने रिक्शेवाले से पूछा– “नया बसस्टैंड चलोगे?” “नेताजी, पचास रुपये लगेंगे।” “मुझे नेताजी मानते हो और बेवकूफ भी मुझे ही बना रहे हो। पच्चीस रुपये दूंगा।” “नेताजी, धूप तेज है, आपने भी तो काला चश्मा लगाया और कैप पहनी है। मैं तो वाजिब ही मांग रहा हूं।” युवक ने तुरंत अपने बैग से पार्टी के चुनाव चिह्न वाली कैप निकालकर उसे पहना दी और उसका ही गमछा उसी के चेहरे पर लपेटते हुए कहा, “लो, गरीब हो इसका मैंने ध्यान रख लिया।” अब चलो कहते हुए वह रिक्शे पर सवार हो गया। गंतव्य पर रिक्शे से उतरकर जैसे ही वह जाने लगा, रिक्शेवाले ने याद दिलाया– “नेताजी पैसे?’ “पच्चीस की जगह तीस रुपये की टोपी तुम्हें पहनाई तो है।” युवा नेता के होंठों पर कुटिल मुस्कान थी। “लो तुम्हारी तीस रुपये की टोपी। पच्चीस रुपये रिक्शे–भाड़े के और पच्चीस रुपये तुम्हारे जबरदस्ती के प्रचार के, टोटल पचास रुपये निकालो।” रिक्शेवाले ने बेरुखी से कहा। युवा नेता ने एक पल उसके डील–डौल और मजबूत शरीर को देखा और खिसियानी हंसी के साथ पचास का नोट देते हुए कहा, “लो पहलवान, अब तो खुश!” चमक “तुम विधवा हो, मांग भरती हो। पर तुम्हारी मांग चमकीली नजर नहीं आती?” परिचित महिला ने पूछा। “मैं शहीद की पत्नी हूं। शहीद मरता नहीं, अमर रहता है। जिस स्थान पर मेरे पति गोलियां लगने से शहीद हुए थे, उस स्थान की मिट्टी खुद लेकर आई हूं, मांग भरने। सरहद की मिट्टी शहीद के खून को आत्मसात कर लेती है।” दूसरी औरत उसकी मांग को कुछ देर तक ध्यान से देखती रही फिर उसके मुंह से निकला, “हां, तुम्हारी मांग की तेज चमक से मेरी आंखें चौंधिया गई थीं।” गिलहरी प्रयास ‘हम मकान नहीं घर बनाते हैं’। इस खूबसूरत विज्ञापन की शर्तों को पढ़कर रामभरोसे को भरोसा हो गया कि उन शर्तों को पूरा करते ही उसका भी घर हो जाएगा। पर बिल्डर ने बताया कि कुछ छोटी–छोटी शर्तें भी हैं। तथाकथित छोटी–छोटी शर्तों को सुनने के बाद रामभरोसे का भरोसा ही उठ गया। वह उदास चला आ रहा था कि उसकी नजर एक तीन–चार साल की बच्ची पर पड़ी, जो मिट्टी के ढेले उठा–उठाकर अपनी मां को देती जा रही थी। मां गारा मता रही थी और मिट्टी के लोंदे बना–बनाकर, पास ही मिट्टी की दीवार उठा रहे अपने पति को देती जा रही थी। पति मिट्टी के लोंदों को जमा–जमाकर दीवार को जन्म दे रहा था। रामभरोसे को रामचरितमानस में सेतुबंध के समय एक नन्ही गिलहरी के योगदान का ध्यान आया और खुशी से उसके मुंह से ज़ोर से निकला, “गिलहरी!” आवाज सुन तीनों का ध्यान उस ओर गया। रामभरोसे को लगा कि उसकी आवाज ने उन तीनों का ध्यान ही भंग कर दिया। वह सिर झुकाकर चलते–चलते पीछे मुड़–मुड़कर गिलहरी रूपी बच्ची को देखता रहा। अपने किराए के मकान वाली गली के मोड़ पर घुसते ही वह उमंग से मुस्कराने लगे। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि लहर की लघुकथा – विरोध डॉ. मधु प्रधान की लघुकथा – हीरा हींगवाला कपिल कुमार की तीन लघुकथाएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.