होम ग़ज़ल एवं गीत सपना सक्सेना की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत सपना सक्सेना की ग़ज़ल द्वारा सपना सक्सेना - August 29, 2021 57 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet हर सुबह बदलता है हर शाम बदलता है मौसम की तरह पल पल इंसान बदलता है कैसा यकीं उसका जो खुद को नहीं हासिल कपड़ों की तरह देखो ईमान बदलता है कहता है जिसे अपनी जागीर नहीं तेरी ये वक्त है होकर मेहरबान बदलता है उलझा है दीवाना अपने ही सायों में कभी राह कभी मंजिल नादान बदलता है जो साथ नहीं कोई तो ग़म न करो इसका गिर गिर कर उठना ही पहचान बदलता है संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल – हम को जीना पड़ा जतन कर के सतीश उपाध्याय का नवगीत – मुझ में ही सपने पलते हैं आशा शैली की ग़ज़ल – साथ तू था न तेरा साया था कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.