डॉ. यास्मीन मूमल की दो ग़ज़लें
अदाओं ने तेरी मुझको भी दीवाना बना डाला।
निगाहें चार क्या कर लीं यूं हीं तुझसे सरे महफ़िल।
चिराग़- ए- हुस्न से तेरे लिपटकर जान देने को।
मुहब्बत ये है मिलकर जिस्म दो इक जान हो जाएँ।
शराब-ए-इश्क़ पीना है मुझे दिन रात इस बाइस।
मुझे अपना या ठुकरा “यास्मीं” मर्ज़ी ये तेरी है।
चेहरे जो चमकते थे वो मुरझाए हुए हैं।
जो झूठ को सच मान के रहते थे ख़ुशी से।
लगता तो यही है कि न बच पाउँगी हरगिज़।
इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाते थे जो मुझपर।
वो लोग कभी चैन से रह भी नहीं सकते।
खुश रहने को इतना ही भरम काफी है “मूमल”।
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