Saturday, July 27, 2024
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डॉ. यास्मीन मूमल की दो ग़ज़लें

1
अदाओं ने तेरी मुझको भी दीवाना बना डाला।
लबों को जाम तो आंखों को पैमाना बना डाला।।
निगाहें चार क्या कर लीं यूं हीं तुझसे सरे महफ़िल।
बस इतनी बात का यारों ने अफ़साना बना डाला।।
चिराग़- ए- हुस्न से तेरे लिपटकर जान देने को।
हक़ीक़त ये है मैंने ख़ुद को परवाना बना डाला।।
मुहब्बत ये है मिलकर जिस्म दो इक जान हो जाएँ।
हवस-ख़ोरों  ने  उल्फ़त का  ये  पैमाना बना डाला।।
शराब-ए-इश्क़ पीना है मुझे दिन रात इस बाइस।
तेरी मदहोश आँखों को ही मयख़ाना बना डाला।।
मुझे  अपना  या  ठुकरा “यास्मीं”  मर्ज़ी  ये  तेरी है।
तेरी ख़ातिर तो अपनों को भी बेगाना बना डाला।।
2
चेहरे जो चमकते थे वो मुरझाए हुए हैं।
लगता है  यही  देखके  ठुकराए हुए हैं।।
जो झूठ को  सच  मान के  रहते थे ख़ुशी से।
सच  सामने  आया  तो  वो झुंझलाए  हुए हैं।।
लगता तो यही है कि न बच पाउँगी हरगिज़।
जो  तीर   निगाहों  से   वो  बरसाए  हुए  हैं।।
इल्ज़ाम पे इल्ज़ाम लगाते थे जो मुझपर।
वो  लोग  मुझे  देख   के  शरमाए  हुए हैं।।
वो लोग कभी चैन से रह भी नहीं सकते।
जो लोग  ग़रीबों  पे  सितम  ढाए  हुए हैं।।
खुश रहने को इतना ही भरम काफी है “मूमल”।
कुछ  लोग  मुझे   देख   के  घबराए  हुए  हैं।।
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