जब मैं ब्रिटेन के परिपक्व लोकतंत्र और भारत के तथाकथित लोकतंत्र की तुलना करता हूं तो पाता हूं कि यहां ब्रिटेन में सरकार जवाबदेह होती है… प्रधानमंत्री जवाबदेह होता है। जब ब्रिटेन का प्रधानमंत्री जनता को कोरोना काल में कुछ दिशा निर्देश देता है और स्वयं उनका पालन नहीं करता है तो उसे त्यागपत्र देने को कहा जा सकता है। दूसरी ओर भारत है जहां के नेता जनता से कहते हैं कि कोरोना काल में फ़ेस मास्क लगाइये, सुरक्षित दूरी बनाइये, विवाह और अंतिम संस्कार में केवल तीस लोग ही जुड़िये… मगर अपनी राजनीतिक चुनाव रैलियों में लाखों लोगों की भीड़ सरकारी ख़र्चे पर इकट्ठी कर लेते हैं। हमें अपनी गिरेबान में झांक कर देखना होगा कि हमारे नेता कब अपनी जनता के प्रति जवाबदेह होने की शुरूआत करेंगे।
आजकल ब्रिटेन के सट्टेबाज़ बहुत व्यस्त दिखाई देते हैं। अटकलें यही लगाई जा रही हैं कि क्या ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बॉरिस जॉनसन अपने पद से इस्तीफ़ा देंगे या नहीं। जिस तरह हाउस ऑफ़ कॉमन्स में लेबर पार्टी के अध्यक्ष सर कीयर स्टॉमर ने बॉरिस जॉनसन की क्लास ली, बॉरिस उस शरारती बच्चे की तरह रोनी सूरत बना कर बैठे दिखाई दिये जिसे क्लास में शोर करने के लिये अध्यापक ने डाँट दिया हो।
बॉरिस जॉनसन पर आरोप है कि जब पूरा देश कोरोना वायरस के आतंक के सामने घुटने टेक रहा था, उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री अपनी कार्यालय 10 डाउनिंग स्ट्रीट के लॉन में एक ड्रिंक पार्टी कर रहे थे जिसमें भाग लेने वाले सदस्यों से कहा गया था कि सब अपनी-अपनी शराब लेकर आएं। सत्तारूड़ टोरी पार्टी के सदस्य भी इस बात को लेकर ख़ासे नाराज़ है कि बॉरिस जॉनसन ने बहुत ही ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार का परिचय दिया।
याद रहे कि जब देश प्रिंस फ़िलिप की मौत पर दुःख मना रहा था और देश का झण्डा आधा झुका हुआ था, ऐसे में डाउनिंग स्ट्रीट के कर्मचारी शराब के मज़े लूट रहे थे। अगले ही दिन महारानी एलिज़ाबेथ के पति का अंतिम संस्कार था। डेली टेलीग्राफ़ और डेली मिरर समाचार पत्रों द्वारा तो यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि रात को जब पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी तो शराब ख़त्म हो गयी। ऐसे में एक कर्मचारी को 16 अप्रैल की रात एक सूटकेस लेकर निकट के इलाके स्ट्रैंड के एक सुपर-मार्केट को-आप से शराब ख़रीदने भेजा गया।
योजना यह बनाई गयी कि वहां से ट्राली सूटकेस को पहियों पर चलाते हुए पैदल ही 10 डाउनिंग स्ट्रीट के पीछे के प्रवेश द्वार से दाख़िल होंगे। उस प्रवेश द्वार से दाख़िल होने पर पुलिस की निगाहों से बचा जा सकता था। पार्टी में मौजूद कर्मचारियों को शराब इतनी चढ़ गयी कि उनमें से एक प्रधान मंत्री के एक साल के पुत्र के लिये बनाए गये झूले पर चढ़ गया और उसके वज़न से झूला टूट गया। लगता था जैसे सभी शराबी नियंत्रण से बाहर हुए जा रहे हैं।
10 डाउनिंग स्ट्रीट की पार्टी को इस कोण से भी देखना होगा कि, लॉकडाउन के दबाव में जी रही ब्रिटिश जनता के लिये होम सचिव प्रीति पटेल ने घरों में होने वाली पार्टियों पर 800 पाउंड के जुर्माने की घोषणा कर दी थी। याद रहे कि पहले यह राशि केवल 200 पाउंड थी। और आयोजकों पर दस हज़ार पाउंड का जुर्माना लगाया जा सकता था। यह वो समय था जब नाई और हेअर-ड्रेसर की दुकानें, वाचनालय एवं रेस्टॉरेंट तक बंद कर दिये गये थे। लोगों से बाहर मिलने पर गले मिलने पर भी मनाही कर दी गयी थी। प्रधान मंत्री का भारत दौरा रद्द कर दिया गया था… ऐसे में प्रधान मंत्री कार्यालय के कर्मचारियों ने शराब पार्टी की और नाच गाना भी किया।
लेबर पार्टी के सांसद जेस फ़िलिप्स ने टिप्पणी करते हुए कहा, “मछली सिर से सड़ना शुरू करती है। डाउनिंग स्ट्रीट में अवहेलना और माफ़ी का माहौल बन चुका है। क्या कोई सोच सकता है कि टेरेसा मे के ज़माने में ऐसा हो सकता था?
पहले तो एक लंबे अरसे तक बॉरिस जॉनसन यह मानने से इन्कार करते रहे कि 10 डाउनिंग स्ट्रीट में शराब-पार्टी हुई थी। मगर अंततः जब सारे पोल खुलने लगे तो उन्होंने संसद में आकर माफ़ी मांगी। बहुत बेचारा सा मुंह बना कर वे अपनी बात कहते रहे और उनकी बातों पर लेबर पार्टी के नेता और सांसद ठहाके लगा कर हँसते हुए देखे गये।
बॉरिस जॉनसन ने हाउस ऑफ कॉमन्स में दिए गए अपने बयान में कहा था, ‘मैं माफी मांगना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि पिछले 18 महीनों में लाखों लोगों ने असाधारण बलिदान दिया है। मुझे पता है कि मुझे और सरकार को लेकर वो कितने गुस्से में हैं।’ उन्होंने आगे कहा, “मुझे पता है कि वे मुझे और मेरे नेतृत्व वाली सरकार को लेकर क्या महसूस करते हैं जब वे सोचते हैं कि नियम बनाने वाले लोग ही डाउनिंग स्ट्रीट में नियमों का सही से पालन नहीं कर रहे हैं। मैं मौजूदा जांच के परिणामों को लेकर पूर्वानुमान नहीं व्यक्त कर सकता, लेकिन मुझे यह अच्छी तरह समझ में आया है कि हमने कुछ चीजों को सही से नहीं लिया और मुझे जिम्मेदारी लेनी चाहिए।”
लेबर नेता कीयर स्टामर ने प्रधानमंत्री पर हमला करते हुए कहा, “यह साफ़ पता चलता है कि बॉरिस जॉनसन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को कितनी गंभीरता से लिया है। कंज़रवेटिव पार्टी ने ब्रिटेन की जनता का अपमान किया है। माफ़ी मांगने से काम नहीं चलेगा। बॉरिस जॉनसन के लिये एक ही विकल्प बचा है कि वे त्यागपत्र दे दें।”
लिबरल डेमोक्रैटिक नेता एड डेवी ने संसद में प्रधानमंत्री को घेरते हुए कहा, “बॉरिस जॉनसन ने महारानी एलिज़ाबेथ और ब्रिटेन के लाखों व्यथित लोगों के प्रति जो अपराध किया है उसके लिये उन्हें व्यक्तिगत रूप से माफ़ी मांगनी चाहिये।… इस अवसर का सदुपयोग करते हुए उन्हें महारानी को अपना इस्तीफ़ा भी सौंप देना चाहिये।” विपक्ष ही नहीं, जॉनसन की पार्टी के लोग भी उनके इस्तीफ़े की माँग करने लगे हैं।
अप्रैल में हुई इस पार्टी के केन्द्र में रहे प्रधानमंत्री जॉनसन के पूर्व संचार निदेशक जेम्स स्लैक ने कहा, “यह आयोजन उस वक्त नहीं होना चाहिए था, जब हुआ। मैं दिल से माफी मांगता हूं और इसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हूं।”
फिलहाल ‘द सन’ अखबार में डिप्टी एडिटर-इन-चीफ के पद पर कार्यरत स्लैक ने “लोगों को पहुंची तकलीफ और उनके गुस्से को लेकर दिल से माफी मांगी है।”
प्रमुख सट्टा कंपनी ‘बेटफेयर’ ने कहा है कि कोविड महामारी के दौरान शराब पार्टी को लेकर 57 वर्षीय प्रधानमंत्री पर इस्तीफे का दबाव बढ़ रहा है… ये दबाव केवलविपक्ष की तरफ से ही नहीं बल्कि बॉरिस जॉनसन की अपनी ही कंजर्वेटिव पार्टी की तरफ से भी है।
बेटफेयर के सैम रोसबॉटम ने ‘वेल्स ऑनलाइन’ से बात करते हुए बताया कि यदि प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन इस्तीफा देते हैं तो पद की दौड़ में सबसे आगे भारतीय मूल के ऋषि सूनक हैं जो कि इस समय ब्रिटेन के वित्त मंत्री हैं। इसके बाद विदेश सचिव लिज ट्रस, कैबिनेट मंत्री माइकल गव आते हैं। भारतीय मूल की प्रीति पटेल भी प्रधानमंत्री की इस रेस में शामिल हैं। प्रीति पटेल वर्तमान में ब्रिटेन की होम सेक्रेटरी हैं।
सट्टेबाज़ों का कहना है कि प्रधान मंत्री बॉरिस जॉनसन जल्दी ही त्यागपत्र दे सकते हैं।
जब मैं ब्रिटेन के परिपक्व लोकतंत्र और भारत के तथाकथित लोकतंत्र की तुलना करता हूं तो पाता हूं कि यहां ब्रिटेन में सरकार जवाबदेह होती है… प्रधानमंत्री जवाबदेह होता है। जब ब्रिटेन का प्रधानमंत्री जनता को कोरोना काल में कुछ दिशा निर्देश देता है और स्वयं उनका पालन नहीं करता है तो उसे त्यागपत्र देने को कहा जा सकता है। दूसरी ओर भारत है जहां के नेता जनता से कहते हैं कि कोरोना काल में फ़ेस मास्क लगाइये, सुरक्षित दूरी बनाइये, विवाह और अंतिम संस्कार में केवल तीस लोग ही जुड़िये… मगर अपनी राजनीतिक चुनाव रैलियों में लाखों लोगों की भीड़ सरकारी ख़र्चे पर इकट्ठी कर लेते हैं। हमें अपनी गिरेबान में झांक कर देखना होगा कि हमारे नेता कब अपनी जनता के प्रति जवाबदेह होने की शुरूआत करेंगे।
It is indeed shocking to learn that the British Prime Minister organized a party during this critical period..
You have rightly pointed out how this event was outrightly condemned and he was made to apologize.
A comparison between the British politicians and our Indian counterparts does hint at the need of more accountability on their part.
A wake-up call for us.
Very timely too as the state elections are being held in near future.
Regards n best wishes,Tejendra ji
Deepak Sharma
सम्पादकीय में कर्तव्य कर्म को रेखाँकित किया है ।कार्य के अच्छे और बुरे का आकलन समय सुनिश्चित करता है एक और तो कोविड की आपदा और दूसरी ओर देश प्रिंस फिलिप की मृत्यु का दुख मना रहा हो ,ऐसे समय में प्रधानमंत्री का आचरण संयत होना ही चाहिए ।भारत हो या कोई भी देश आम जन का नेतृत्व करने वाले का व्यवहार लोगों को प्रभावित करता है ,जन शक्ति को ऐसे नेतृत्व को माफ़ नही करना चाहिए ।संदेश प्रद और वैचारिक सम्पादकीय हेतु साधुवाद ।
माननीय सम्पादक महोदय
अति सुन्दर संपादकीय, लेकिन अपने देश से तुलना अपने आप मे एक विडम्बनापूर्ण मज़ाक़ होगा ! जहाँ नाम मात्र का प्रजातन्त्र और सम्विधान है। चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री, मन्त्री औऱ अन्य नेताओं का मनोनयन हो जाये उसे प्रजातन्त्र कहेंगे ! तो ये एक अच्छा मख़मल में लपेट कर तश्तरी में रखा चरणपादुका है ! सम्विधान में धर्मनिरपेक्ष को धर्म के नाम पर चुनाव क्या धर्मनिरपेक्षता की दुहाई का खुला मज़ाक़ नहीं! शराब पार्टियां तो जितनी दुनियाँ के सबसे बड़े प्रजान्त्र में होती हैं उतनी तो पूरे संसार मे नहीं होतीं ! हिन्दी राष्ट्रभाषा वाला पूरा देश शाम सात बजे के बाद सिर्फ़ अँग्रेज़ी बोलता पाया जाता है। ये आदमी की दिनचर्या में कितना अति आवश्यक है इस बात से पता चलता है कि —
पिछले दो वर्ष में जब कोरोना के कारण सम्पूर्ण लॉक डाउन लगा और दोनों बार लॉक डाउन खोलने का समय आया तो सबसे पहले शराब की दुकानें खोलने से शुभारंभ किया गया। और तारीफ़ की बात ये की जनता ने भी पुरजोश के साथ स्वागत किया कि आटा, दाल, चावल, राशन किराना की दुकानों से ज़्यादा भीड़ शराब की दुकानों पर देखी गई !
शराब की पार्टियाँ तो यहाँ भी सरकारी महकमों में ख़ूब होती हैं उसकी जानकारी सबको होते हुए भी किसी को नहीं होती, गोदी मीडिया को फीडिंग बोतल से इतना सराबोर कर दिया जाता है कि उन्हें ये बी पता नहीं रहता कि ऐसी भी कोई पार्टी होती है। इन सब बातों के ऊपर आपके द्वारा दर्शय मुद्दे पर तब कुछ होगा जब जनता/मतदाता शिक्षित होगा, जागरूकता बढ़ेगी। सरकार को जवाब देह मानेंगे। आज स्थिति ये है कि ग़लती सरकार करती है तो मीडिया सवाल विपक्ष से करती है। आठ बरस में एक भी प्रेस कॉफ्रेंस न होने के बावजूद जनता और मीडिया दोनों सन्तुष्ट और प्रसन्न हैं । हम सम्विधान और सरकार की जिम्मेदारियों को भूल कर धर्म और भृष्टाचार की राजनीति में राह भटक गए हैं।
बर्तानिया की जनता नेता व विपक्ष शिक्षित है, जागरूक है, जनता के प्रति जवाबदेह है। भ्रस्टाचार अभी वयस्क नहीं हो पाया, न्यायपालिका और मीडिया कर्तव्यनिष्ठ हैं। उपरोक्त वर्णित सम्पादकीय के विषय का परिणाम निकट भविष्य में शीघ्र दुनिया के समक्ष होंगे ।
आदरणीय तेजेन्द्र भाई
आपकी संगति में इतने वर्ष रह कर जो सीखा
आपके स्नेह, प्यार, बड़प्पन का ही तो असर है ।
विचार तो समानांतर ही उद्गम होंगे
मनः पूर्वक आभार
एक शासक के कर्तव्य-संदर्भ में दो देशों की तुलना हालांकि कई बिंदुओं पर विभिन्न हो सकती है, लेकिन देश के सामने अपनी कथनी और करनी के बिंदु पर यह तुलना सहज ही देखने योग्य है। भारतीय संदर्भ में भी जनता को नियमों की रूपरेखा पढ़ाने वाले नेताओं की विपरीत करनी को जब तब देखा जा सकता है और चुनाव जैसे समय पर तो ऐसी लापरवाहियों की अधिकता बहुत ही बढ़ जाती है। और हमारे देश का दुर्भाग्य तो यह है कि ब्रिटेन में तो बॉरिस जानसन के इस्तीफे की कल्पना की भी जा सकती है लेकिन भारत में तो नेताओ के इस्तीफ़े की बात ‘शास्त्री जी’ के अनुकरणीय उदाहरण के बाद एक बेमानी बात ही कही जाएगी।
एक सटीक और निर्भीक संपादकीय के लिए साधुवाद आद: तेजेन्द्र जी।
आदरणीय तेजेन्द्र जी आपका लेख बहुत ही जानकारी भरा और रोचक है। रही बात ब्रिटेन और भारत के शासन तुलनात्मक दृष्टिकोण की तो दोनों देशों की आर्थिक और प्रगति स्थिति बहुत ही भिन्न है। हालाँकि देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं को जिम्मेदारी में कोई अंतर नही हो सकता परंतु भ्रस्टाचार राजनीति के चलते अपनी जिम्मेदारियो को भूल जाना यह आम बात हैं।
संपादकीय में आपने ब्रिटेन और भारत की सरकार तथा विपक्ष की भूमिका का तुलनात्मक वर्णन किया है। शक्तिशाली विपक्ष इतनी महत्वपूर्ण भूमिका संसद में जनता की ओर से निभा सकता है इसका सर्वोत्तम उदाहरण ब्रिटेन है । भारतीय विपक्ष को शक्तिशाली होने की आवश्यकता है।
It is indeed shocking to learn that the British Prime Minister organized a party during this critical period..
You have rightly pointed out how this event was outrightly condemned and he was made to apologize.
A comparison between the British politicians and our Indian counterparts does hint at the need of more accountability on their part.
A wake-up call for us.
Very timely too as the state elections are being held in near future.
Regards n best wishes,Tejendra ji
Deepak Sharma
Deepak ji your detailed response to the editorial is highly appreciated. Now, we actually wait for your reaction every week!
सम्पादकीय में कर्तव्य कर्म को रेखाँकित किया है ।कार्य के अच्छे और बुरे का आकलन समय सुनिश्चित करता है एक और तो कोविड की आपदा और दूसरी ओर देश प्रिंस फिलिप की मृत्यु का दुख मना रहा हो ,ऐसे समय में प्रधानमंत्री का आचरण संयत होना ही चाहिए ।भारत हो या कोई भी देश आम जन का नेतृत्व करने वाले का व्यवहार लोगों को प्रभावित करता है ,जन शक्ति को ऐसे नेतृत्व को माफ़ नही करना चाहिए ।संदेश प्रद और वैचारिक सम्पादकीय हेतु साधुवाद ।
Dr Prabha mishra
धन्यवाद प्रभा जी। आपने संपादकीय के मर्म को सही पकड़ा है। सार्थक टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
माननीय सम्पादक महोदय
अति सुन्दर संपादकीय, लेकिन अपने देश से तुलना अपने आप मे एक विडम्बनापूर्ण मज़ाक़ होगा ! जहाँ नाम मात्र का प्रजातन्त्र और सम्विधान है। चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री, मन्त्री औऱ अन्य नेताओं का मनोनयन हो जाये उसे प्रजातन्त्र कहेंगे ! तो ये एक अच्छा मख़मल में लपेट कर तश्तरी में रखा चरणपादुका है ! सम्विधान में धर्मनिरपेक्ष को धर्म के नाम पर चुनाव क्या धर्मनिरपेक्षता की दुहाई का खुला मज़ाक़ नहीं! शराब पार्टियां तो जितनी दुनियाँ के सबसे बड़े प्रजान्त्र में होती हैं उतनी तो पूरे संसार मे नहीं होतीं ! हिन्दी राष्ट्रभाषा वाला पूरा देश शाम सात बजे के बाद सिर्फ़ अँग्रेज़ी बोलता पाया जाता है। ये आदमी की दिनचर्या में कितना अति आवश्यक है इस बात से पता चलता है कि —
पिछले दो वर्ष में जब कोरोना के कारण सम्पूर्ण लॉक डाउन लगा और दोनों बार लॉक डाउन खोलने का समय आया तो सबसे पहले शराब की दुकानें खोलने से शुभारंभ किया गया। और तारीफ़ की बात ये की जनता ने भी पुरजोश के साथ स्वागत किया कि आटा, दाल, चावल, राशन किराना की दुकानों से ज़्यादा भीड़ शराब की दुकानों पर देखी गई !
शराब की पार्टियाँ तो यहाँ भी सरकारी महकमों में ख़ूब होती हैं उसकी जानकारी सबको होते हुए भी किसी को नहीं होती, गोदी मीडिया को फीडिंग बोतल से इतना सराबोर कर दिया जाता है कि उन्हें ये बी पता नहीं रहता कि ऐसी भी कोई पार्टी होती है। इन सब बातों के ऊपर आपके द्वारा दर्शय मुद्दे पर तब कुछ होगा जब जनता/मतदाता शिक्षित होगा, जागरूकता बढ़ेगी। सरकार को जवाब देह मानेंगे। आज स्थिति ये है कि ग़लती सरकार करती है तो मीडिया सवाल विपक्ष से करती है। आठ बरस में एक भी प्रेस कॉफ्रेंस न होने के बावजूद जनता और मीडिया दोनों सन्तुष्ट और प्रसन्न हैं । हम सम्विधान और सरकार की जिम्मेदारियों को भूल कर धर्म और भृष्टाचार की राजनीति में राह भटक गए हैं।
बर्तानिया की जनता नेता व विपक्ष शिक्षित है, जागरूक है, जनता के प्रति जवाबदेह है। भ्रस्टाचार अभी वयस्क नहीं हो पाया, न्यायपालिका और मीडिया कर्तव्यनिष्ठ हैं। उपरोक्त वर्णित सम्पादकीय के विषय का परिणाम निकट भविष्य में शीघ्र दुनिया के समक्ष होंगे ।
कैलाश भाई आपने तो संपादकीय के समानांतर संपादकीय लिखा डाला। बधाई।
आदरणीय तेजेन्द्र भाई
आपकी संगति में इतने वर्ष रह कर जो सीखा
आपके स्नेह, प्यार, बड़प्पन का ही तो असर है ।
विचार तो समानांतर ही उद्गम होंगे
मनः पूर्वक आभार
एक शासक के कर्तव्य-संदर्भ में दो देशों की तुलना हालांकि कई बिंदुओं पर विभिन्न हो सकती है, लेकिन देश के सामने अपनी कथनी और करनी के बिंदु पर यह तुलना सहज ही देखने योग्य है। भारतीय संदर्भ में भी जनता को नियमों की रूपरेखा पढ़ाने वाले नेताओं की विपरीत करनी को जब तब देखा जा सकता है और चुनाव जैसे समय पर तो ऐसी लापरवाहियों की अधिकता बहुत ही बढ़ जाती है। और हमारे देश का दुर्भाग्य तो यह है कि ब्रिटेन में तो बॉरिस जानसन के इस्तीफे की कल्पना की भी जा सकती है लेकिन भारत में तो नेताओ के इस्तीफ़े की बात ‘शास्त्री जी’ के अनुकरणीय उदाहरण के बाद एक बेमानी बात ही कही जाएगी।
एक सटीक और निर्भीक संपादकीय के लिए साधुवाद आद: तेजेन्द्र जी।
धन्यवाद भाई विरेन्द्र जी। आप निरंतर संपादकीय पढ़ते हैं। आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है।
नेता तो नेता हैं, कुछ भी करेंगे….
धन्यवाद शैली जी
आदरणीय तेजेन्द्र जी आपका लेख बहुत ही जानकारी भरा और रोचक है। रही बात ब्रिटेन और भारत के शासन तुलनात्मक दृष्टिकोण की तो दोनों देशों की आर्थिक और प्रगति स्थिति बहुत ही भिन्न है। हालाँकि देश का नेतृत्व करने वाले नेताओं को जिम्मेदारी में कोई अंतर नही हो सकता परंतु भ्रस्टाचार राजनीति के चलते अपनी जिम्मेदारियो को भूल जाना यह आम बात हैं।
धन्यवाद भाई सूर्यकान्त जी। आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है।
भारत में इस तरह की कोताही आम बात है लेकिन ब्रिटेन में ऐसा होगा कम से कम मैं ऐसा नहीं सोच सकता और वो भी एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री द्वारा।
भाई धर्मवीर जी जोकर तो हर जगह हो सकते हैं…
संपादकीय में आपने ब्रिटेन और भारत की सरकार तथा विपक्ष की भूमिका का तुलनात्मक वर्णन किया है। शक्तिशाली विपक्ष इतनी महत्वपूर्ण भूमिका संसद में जनता की ओर से निभा सकता है इसका सर्वोत्तम उदाहरण ब्रिटेन है । भारतीय विपक्ष को शक्तिशाली होने की आवश्यकता है।