Saturday, May 18, 2024
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राहुल पाण्डेय की पाँच कविताएँ

1- मै मिथ्या हूँ, और यही सत्य है
मै मिथ्या हूँ, और यही सत्य है।
मै जो अंदर हूँ, वो बाहर नहीं !!
जो कथन में है, वो कर्म में नहीं !!
मै नश्वर हूँ, मै मिथ्या हूँ।।
मै सांत्वना देता हूँ, पर स्वयं दुखी !!
मै सहायता करता हूँ, पर स्वयं असहाय !!
मै निर्बल हूँ, मै मिथ्या हूँ।।
मै स्वतंत्र हूँ, पर द्वन्द से घिरा हुआ !!
मै धनवान हूँ, पर महत्वाकांक्षा का शिकार !!
मै “निर्धन” हूँ, मै मिथ्या हूँ।।
“मै” अहम है, “मै” मिथ्या है !
“मै” के बिना मै ब्रह्म, और यही परम सत्य है।।
2 – प्यार बांटों, नफरत नहीं
चलो एक छोटा घरोंदा बनातें हैं,
कुछ ईंट तुम लाओ, कुछ हम लाते हैं।
नफरत फैली है चारो और इस दुनिया में,
इस घरोंदें में प्यार की थोड़ी रेत मिलाते हैं।

नफरत की आंधियां, तूफ़ान बनने लगीं हैं,
घरों को, शहरों को, इंसानियत को निगलने लगीं हैं।
चलो एक जज्बातों की प्यारी दीवार बनाते हैं,
इन आँधियों को, वापसी की राह दिखाते हैं।

बात बस इतनी सी समझनी है दोस्तों,
सियासती रंग अक्सर ‘लाल’ होता है।
घर के बंटवारे में तो फिर भी प्यार पनप सकता है,
सियासती बंटवारे में हर घर हलाल होता है।

वक़्त की ताकीद है की हमे चेत जाना है,
नफरत को छोड़, प्यार को आगे बढ़ाना हैं,
फिर चलो – एक छोटा घरोंदा बनातें हैं,

कुछ ईंट तुम लाओ, कुछ हम लाते हैं।
और – इस घरोंदें में प्यार की थोड़ी रेत मिलाते हैं।
3- इलाहाबाद में अंग्रेजी नाश्ता
हमें अंग्रेजी बोलता देख
ड्राईवर सीधे अंग्रेजी नाश्ते की दुकान पर ले गया
और बोला
“साहब चीज-सैंडविच खाओ”

हमने कहा “अरे भाई-
दिखावे पे मत जाओ, अपनी अकल लगाओ।
भाषा छोड़ सब देशी है
अरे ये तो बता, कौन से एंगल से हम विदेशी हैं?”

वो सकपकाया और धीरे से बोला-
“साहब क्या कहें हम गरीब तो दर-ब-दर भटकते हैं।
पर आजकल अपने ही सबसे ज्यादे अँगरेज़ बने फिरते हैं।”

बात तो सच ही कही उसने अपने ही अंदाज़ में
कहीं खुद को ही तो नहीं भूल रहे दिखावे के राज में।

4-चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं
चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं,
कुछ बताते हैं, कुछ सुनाते हैं।
वो पिछली छुट्टी का साथ बिताना,
वो समंदर के किनारे बैठे गुनगुनाना।
वो हँसना और रात भर हँसाना,
चलो उन क़िस्सों को फिर जी आते हैं।
चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं।
उनके साथ फ़िज़ूल की बातें करना,
और उन बातों की खाल निकालना।
और फिर मजाक में सब भूल जाना,
चलो कहानियों के नयें दौर चलाते हैं।
चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं।
बहुत हुआ “करोना के बाद मिलेंगे”,
“अभी मीटिंग में हूँ, फिर बात करेंगे”।
क्यों ना पाँच मिनट आज ही बतियाते हैं,
चलो दोस्तों को फ़ोन लगाते हैं,
कुछ बताते हैं, कुछ सुनाते हैं।
5-सत्य
सत्य क्या है ?

जो आँखों के सामने घटित हुआ?
जो इतिहास के पन्नों में वर्णित हुआ?
जो विज्ञान के सिद्धांतो ने प्रमाणित किया?

शायद हाँ   !! शायद ना   !!

जो घटित हुआ, छलावा हो सकता है !
इतिहास के पन्नों में बदलाव हो सकता है !
विज्ञान के सिद्धांतो पर पुनर्विचार हो सकता है !

तो फिर सत्य क्या है?

ह्रदय का स्पंदन।
चिड़ियों का चहकना।
हवाओं का बहना।
सूरज का उगना।

अर्थ कुछ यूँ निकलता है-

प्रकृति सत्य है,
प्रकृति का सृष्टिकर्ता सत्य।
ईश्वर सत्य है,
ईश्वर का हर विधान सत्य।

शेष व्यक्तिपरक दृष्टिकोण की बातें है।

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