लेखक एक अलग किस्म का प्राणी होता है वैसे तो कुछ महान लोग कहते हैं कि लेखक बनते नहीं पैदा होते हैं|पर आज फेसबुक युग में ये बात कतई लागू नहीं होती बल्कि आजकल तो लेखकों की खेती शुरू हो चुकी है और बिना कीटनाशक का प्रयोग करे भी फसल भी बहुत अच्छी हो रही है यानी लेखक प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं |
ये प्राणी वैसे तो देश के अलग अलग स्थानों पर अपनी लेखन साधना में रत होता है पर जिस प्रकार अनेकों साधू सन्यासी अपनी खोह और गुफाओं से निकल कर कुम्भ के मेले मैं इकट्ठे होते हैं ठीक उसी प्रकार ये लेखक रूपी प्राणी भी पुस्तक मेले में आते हैं और अपनी शक्ति का यानी पुस्तकों का प्रदर्शन करते हैं यानी किसने क्या लिखा और कितना ? पुस्तक मेले में ही कुछ वरिष्ठ कहे जाने वाले लेखक भी मौजूद होते हैं जो पुस्तकों के विमोचन का कार्य ही करते हैं | अब आप लोग ये मत पूछ बैठना वरिष्ठ क्या होता है जरा सब्र से काम लें मैं आगे लेखक के प्रकार बताउंगी उसमें आपको जबाब मिल जायेगा |
जैसे रचना प्रक्रिया होती है उसी प्रकार लेखक प्रक्रिया भी होती है यानी जब कोई नया नया लेखक बनता है और छपने के जुगाड़ में होता है तो वो बहुत ही लोचदार और नम्र होता है, उसकी गर्दन थोड़ी झुकी होती है, वो सभी लेखकों का सम्मान करता है और जिसका पलड़ा भरी देखता है उसी तरफ लटक जाता है | जैसे जैसे उसे विभिन्न पत्र पत्रिकाओं मैं स्थान मिलता है और पहचान बनने लगती है, उसकी गर्दन सीधी होने लगती है और अपनी बात कहने की हिम्मत जुटाने लगता है |
वैसे इस लेखक नाम के प्राणी के कई प्रकार होते हैं पर फिलहाल हम दो प्रकारों पर बात करते हैं |एक वो लेखक होते हैं जिन्हें किसी बड़े लेखक या यूँ कहें किसी मठाधीश की सरपरस्ती शुरू से ही मिलती है यानी गॉड फादर मिले होते हैं जो न सिर्फ उनका मार्गदर्शन करते हैं |न सिर्फ उन्हें सम्मानित करवाते हैं और तो और जहाँ जिस मंच पर मौका मिले उनका गुणगान करते नहीं थकते,इन्हें भरी सभा में गीतकार ,कहानीकार,और व्यंग्यकार घोषित करते रहेंगे भले ही ये कुछ भी ना लिखें |
दूसरे प्रकार के लेखक वो लेखक होते हैं जो अपनी कलम और अपने लेखन के बूते पर आगे बढ़ते हैं, भले ही वो मठाधीश और उनके चेले लाख इनका रास्ता रोकने की कोशिश करें पर ये निरंतर अपनी उपस्थिति दर्ज करते रहते हैं |
कुल मिलाकर लेखक के दो ही प्रकार प्रसिद्ध हैं एक वो जो लिखते हैं और दूसरे वो जो सम्मानित होते हैं |
वैसे एक बात और है हमारे पहली प्रकार के लेखक शव्दों को जोड़तोड़ कर कुछ लिखने का प्रयास निरंतर करते हैं और इनकी अनेकों पुस्तकें भी छपती हैं पर पाठकों को आभाव हमेशा बना रहता है |
हमारे दूसरे प्रकार के लेखक की पुस्तक देर से भले ही आये पर पाठकवर्ग को आकर्षित जरुर करती है और अपने पाठकों के बीच खासे चर्चित होते हैं |
पहली प्रकार का लेखक यदि संपादक बन जाए तो उसकी गरदन पूरी तरह से अकड़ जाती है ,अब वो जिसे मर्जी शीर्षाशन करा दे इत्ती कूबत रखता है,महिला, पुरुष, छोटे, बड़े सभी प्रकार के लेखक उन्हें प्रशन्न करने की कोशिश मई लगे होते हैं और ये निरंतर घमंड में फूलते जाते हैं और शाल नारियल और मोमेंटम की भूख बढती जाती है |जो इसका पेट भरने में कामयाब होता है वही वही आगे बढ़ता प्रतीत होता है |
दुसरे प्रकार का लेखक संपादक बनता है तो अकड़ तो आती है पर वो अच्छे लेखन का कद्रदान होता है सो नालायक नहीं लायक से खुश होता है |
अभी लेखक प्रक्रिया चालु आहे भाई रुकिए बताते हैं
अब जैसे जैसे लेखक युवा व्यंग्यकार से वरिष्ठता की ओर बढ़ता है और वृदत्व को प्राप्त होता है (कुछ लोग उम्र से वरिष्ठता को परिभाषित करते हैं कुछ लेखन से ) वो मंच की ओर लपकने लगता है इसमें अक्सर वो लेखक होते हैं जिन्होंने सालों से कुछ नहीं लिखा होता बस संपादन या पुराने लेखन और बालों की चाँदीकी वजह से वरिष्ठता का चोला ओढ़ लेते हैं |
जैसे बन्दर बूढ़ा होकर भी गुलाटियां मारना नहीं छोड़ता वैसे ये महाशय भी अपनी जोडक तोड़क नीति अर्थात उठापटक की राजनीति का इस्तेमाल कर मंच पर अपनी छटाएं बिखेरते हैं,इनका बस चले तो मंच पर खटिया लगाकर परमानेंट कब्ज़ा कर लें |