सत्य व्यास, हिंदी साहित्य के युवा लेखकों में एक बेहद चर्चित नाम हैं। ‘नयी वाली हिंदी’ की धारा के महत्वपूर्ण लेखक हैं। अबतक इनके चार उपन्यास (बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, चौरासी, बागी बलिया) प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से कई तो बेस्टसेलर भी रहे हैं। आजकल किताबों के साथ-साथ ऑडियो माध्यम तथा टीवी के लिए भी लेखन में हाथ आजमा रहे हैं। हाल ही में इनकी ‘अजातशत्रु’ नामक ऑडियो कहानी आई है। इस संबंध में युवा लेखक/समीक्षक पीयूष द्विवेदी ने सत्य व्यास से उनकी लेखन-यात्रा तथा ऑडियो माध्यम के लेखन की संभावनाओं-चुनौतियों को लेकर बातचीत की है, जो यथावत नीचे प्रस्तुत है।
सवाल – नमस्कार सत्य जी, पुरवाई से बातचीत में आपका स्वागत है। किताबों के बाद अब आप ऑडियो मीडियम में हाथ आजमा रहे हैं। ‘अजातशत्रु’ नामक आपकी ऑडियो कहानी अभी ही आई है। प्रिंट से ऑडियो तक की इस यात्रा के अनुभव के बारे में कुछ बताइए।
सत्य व्यास – ऑडियो लेखन में मेरा प्रवेश साल भर पहले ‘शिशिर की गर्लफ्रेंड’ नाम की एक कहानी से हुआ था। इस लिहाज से अजातशत्रु मेरी दूसरी कहानी है। प्रिंट से ऑडियो तक के सफर को एक सीढ़ी की तरह लेता हूँ, जो मंजिल को जाती है।
सवाल – मेरी जानकारी के मुताबिक़, ‘अजातशत्रु’ एक पॉलिटिकल थ्रिलर है। आपका पिछला उपन्यास ‘बागी बलिया’ भी पॉलिटिकल थ्रिलर के रूप में ही प्रचारित हुआ था। आप प्यार-मोहब्बत के लेखक के रूप में शुरू हुए थे और अब लगातार दो पॉलिटिकल थ्रिलर रच दिए। इसके पीछे क्या कोई रणनीति है?
सत्य व्यास – नहीं, रणनीति कोई नहीं। मुझे जानने वाले जानते हैं कि राजनीति कदाचित अंतिम विषय हो जिसपर बात-बहस करना मैं पसंद करता हूँ। यह मित्रघाती विषय है, ऐसा मेरा मानना है। जब-जब जो विषय रुचता है उसपर लिखता हूँ। अजातशत्रु की कहानी काफी पहले से जेहन में थी। यह महज एक सुयोग है कि दोनों एक के बाद एक आयीं। व्यावसायिक लेखन में हूँ तो विषय के वैविध्य पर काम करना ही होगा।
सवाल – कहानी के मामले में ‘बागी बलिया’ से अजातशत्रु कितना अलग है?
सत्य व्यास – पूर्णतया अलग है। बागी बलिया एक मित्र द्वारा दूसरे मित्र को यूनियन अध्यक्ष बनवाने की जद्दोजहद के साथ-साथ एक बदला प्रधान कहानी है, जहां हास्य, विनोद, प्रेम, विछोह सबका पुट है; वहीं दूसरी ओर अजातशत्रु विशुद्ध राजनैतिक कहानी होने के साथ-साथ एक हत्या रहस्य भी है। यहाँ छल, बल और रोमांच की प्रधानता है।
बागी बलिया। भाईचारे, दोस्ती, एकता और बंधुत्व प्रधान कहानी है जिसमे राजनीति एक तत्व है। वहीं दूसरी और अजातशत्रु का मूल तत्व ही राजनीति है। वह राजनीति के दांव पेच, उठापटक, मेल-कुमेल के जालों से बुनी श्रव्य कहानी है।
सवाल – ऑडियो माध्यम, लेखन की एक बड़ी संभावना के रूप तेजी से विकसित हो रहा है। अब जबकि आप इस क्षेत्र में हाथ आजमा चुके हैं, तो हम चाहेंगे कि हमारे पाठकों के लिए इसकी सम्भावनाओं और चुनौतियों पर थोड़ा प्रकाश डालें।
सत्य व्यास – कहानियों का ऑडियो माध्यम अथाह संभावनाएं लेकर आया है। यह नए कलेवर का लेखन तो है ही, साथ ही साथ रचनात्मक भी है खासकर नए लेखकों के लिए। लेखक के पास अब एक अतिरिक्त अवसर यह भी है कि इसमें वह अपने लेखन के पेंच ओ खम को दुरुस्त कर सकता है। मांग के अनुसार लिखने में वह कितना काबिल है, जांच सकता है। टीवी लेखन, स्क्रीन प्ले लेखन का शुरुआती व्याकरण भी सीख सकता है।
चुनौतियां भी काफी हैं। यहाँ लेखक के धैर्य की, व्यवहार कुशलता की, अपने लिखे पर संपादकीय दखल पर सहज रहने की, समयबद्ध लेखन करने की परीक्षा भी हो जाती है। ऑडियो लेखन क्योंकि पठनीय न होकर श्रवणीय माध्यम है जहां समझते वक्त केवल श्रव्य इंद्रियों को ही कहानी समझते जाना है। इसलिए उस अनुसार लेखन भी अपने आप में कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।
सवाल – ऑडियो माध्यम का लेखन क्या विशुद्ध कमर्शियल लेखन ही है या साहित्यिक नैतिकताओं के लिए भी इसमें कुछ जगह है?
सत्य व्यास – मोटे तौर पर हाँ। ऑडियो माध्यम कमर्शियल लेखन ही है। मुझे ध्यान आता है कि सालों पहले गुनाहों का देवता और तुम्हारे लिए को लेकर ऑडियो किताबों के प्रयोग हुए थे जो बुरी तरह असफल हुए थे। (हिन्दी बुक सेंटर, दरयागंज में 500 रुपए की किताब लेने पर मुझे वह कैसेट मुफ्त मे थमा दी गयी थी। कारण पूछने पर ज्ञात हुआ कि सालों से टंगी पड़ी है, बिक नहीं रही।)
कारण वही है जो ऊपर बताया। साहित्य का आनंद पढ़ने मे ज्यादा है, जहां आपको कोई अच्छा वाक्य/वाक्यांश पढ़कर किताब सीने पर रखकर उस बारे में सोचने की सहूलियत है। यह सुविधा ऑडियो लेखन में उपलब्ध नहीं। इसी कारण कहानी का, भाषा का, प्लॉट का कसा होना बहुत जरूरी है, कुछ कुछ आज कल के वेब सीरीज की तरह जहां आप पल भर को भी आराम के मूड में आएं तो दर्शक चीजों को दस सेकेंड आगे खिसका देगा।
सवाल – ऑडियो लेखन करते हुए मोटे तौर पर किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए?
सत्य व्यास – इन बातों का :
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आरंभ ऐसा हो कि वह दर्शक को कहानी से चिपकने पर मजबूर कर दे। ऑडियो लेखन में श्रोता पहले पाँच मिनट में ही निर्णय कर लेता है कि आगे बढ़ना है या दूसरी कहानी खोजनी है।
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कहानी के किरदारों का अनावश्यक विवरण न हो। श्रोता दरअसल वहाँ स्वयं को फिट कर लेता है।
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विवरण ऐसा हो कि श्रोता को आँख की जरूरत ही न महसूस हो।
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धारावाहिक समापन में हर एपिसोड ऐसे हों कि वह श्रोता को अगले एपिसोड पर जाने को मजबूर करें।
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सरप्राइज़ एलिमेंट ज्यादा हों।
रोचक सक्शात्कार। सत्य व्यास की इस बात से सहमत हूँ कि लेखन में बात हो तो अर्थ आपको ढूंढ ही लेता है बस आपको लेखन में विविधता और लेखन से जुड़े नये नये माध्यम तलाशने की आवश्यकता है।
रोचक साक्षात्कार