बबलू अपने नाना के साथ छुट्टियों में नानी के घर गाँव में आया हुआ था। दिन में नानी उसे तरह तरह की चीजें बनाकर खिलातीं, शाम को नाना उसे अपने साथ गाँव की सैर कराते। चारों तरफ़ खेत की हरियाली देखकर उसे बहुत अच्छा लगता था। दिल्ली में तो उसे लोगों की भीड़ के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं देता था।
गाँव में इतनी सारी गाय, भैंस और बकरियाँ देखकर वह बहुत खुश था। वह यह देखकर हैरान था कि गाय, भैस दूध देती हैं और नाना नानी वही दूध काम में लेते हैं। शहर में तो दूध की डेयरी पर थैलियों में दूध मिला करता है।
यहाँ दिन में नानी उसे मम्मी के बचपन की मज़ेदार बातें सुनातीं और रात को अच्छी अच्छी कहानियाँ सुनातीं थीं, जिन्हें बबलू बड़े चाव से सुना करता था।
बबलू नानी से हमेशा पूछता था ,”नानी आप मम्मी से ज़्यादा प्यार करती हो या मुझसे ?”
नानी हँसकर कहतीं,”मैं दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार अपने बबलू से करती हूँ ।”
नानी का जवाब सुनकर बबलू बहुत ख़ुश हो जाता था।
शहर में उसके मम्मी पापा दोनों नौकरी पर जाते थे।दोपहर को स्कूल से घर आने पर ,घर में काम वाली बाई उसे खाना परोस कर देती और फिर टेलीविजन पर आ रहे सीरियल देखने बैठ जाती ।दोपहर में वह कभी सो जाता या कभी उसके पास बैठकर टी.वी. देखने लगता।मम्मी पापा शाम के सात बजे घर आते थे।कई बार अकेला बैठा बबलू बहुत उदास हो जाता था।
यहाँ गाँव में हर समय नाना नानी के साथ रहना उसे बहुत अच्छा लगता था।
शहर में तो छुट्टी के दिन घर में मम्मी पापा भी देर तक सोए रहते थे और बबलू भी देर से ही सोकर उठता था ।
नानी के घर तो सुबह सुबह ही खटर -पटर शुरू हो जाती थी।कल रात बिजली चली गयी तो वह नाना के साथ आंगन में बिछीं खाट पर सो गया था ।
सुबह सुबह आँखों में पड़ती सूरज की रोशनी से उसकी नींद खुल गई थी।वह आँखें मलता हुआ बिस्तर पर उठकर बैठ गया था।
उसे ऐसा लगा की नानी शायद आस पड़ोस के बच्चों से बात कर रहीं हैं ।उसने ध्यान से सुना तो सुनाई दिया नानी कह रही थीं, “कैसा है रे तू ? इतना कुम्हला गया है। क्या हुआ धूप का ताप ज़्यादा हो गया क्या ? चल अब छाया में आ गया है ना ।अब ठीक हो जाएगा ।तेरे साथी तो ठीक हैं तू कुछ ज़्यादा ही नाज़ुक है । मेरी ही गलती हो गई ।घर में जब से नन्हा बबलू आया है ,उसके बिना कुछ अच्छा ही नहीं लगता है। उसकी मीठी मीठी बातों में मन लगा रहता है। इसीलिए तुम सबसे बात करने का समय ही नहीं मिला ।मेरे प्यारे प्यारे बच्चों अब मैं तुम्हारा पूरा ध्यान रखूंगी।”
बबलू चुपके चुपके घर के पीछे बने बग़ीचे में खड़ी नानी के पीछे जा पहुँचा। चारों ओर कोई बच्चा नहीं था ।नानी बिलकुल अकेली खड़ीं थीं।बगीचे में ज़मीन पर एक छाता खोल कर रखा हुआ था ।
वह हैरानी से बोला ,”नानी यहाँ तो कोई नहीं है आप किससे बात कर रही हो? बरसात भी नहीं आ रही फिर ये छाता क्यों खोलकर रखा हुआ है ?”
बबलू की बात सुनकर नानी खिलखिला उठीं,”तुझे दिखाई नहीं दे रहा मैं अपने इन बच्चों के साथ ही तो बैठी हूँ|”
बबलू डर गया, उसे टी वी सीरीयल वाला भूत याद आ गया था। वह सहमता हुआ बोला, “नानी क्या तुम भूतों से बात कर रही हो? मुझे तो यहाँ कोई बच्चा दिखाई नहीं दे रहा ।”
नानी ने प्यार से बबलू को सहलाते हुए कहा, “बेटा भूत- प्रेत कुछ नहीं होता है |यह सब हमारे मन का वहम है ।”
“नही नानी मैंने एक बार एक टेलिविज़न सीरियल में देखा था ।भूत होता हैं लेकिन वह सबको दिखाई नहीं देता।”
नानी ने उसे फिर समझाया,”बेटा भूत सिर्फ़ मन का वहम होता है। तुम्हें ऐसे सीरियल नहीं देखने चाहिए ।क्या तुम्हारी मम्मी ऐसे सीरियल देखतीं हैं?”
“नहीं नानी ,मम्मी नहीं देखतीं | दिन में काम वाली बाई रमिया घर में रहती है वही टी. वी. सीरियल देखा करती है।”
नानी चिंतित हो गईं,”अच्छा मैं तुम्हारी मम्मी से कहूंगी कि वो रमिया को मना करें इस तरह के सीरियल नहीं देखें ।चलो आओ मैं तुम्हें अपने नन्हें बच्चों से मिलाती हूँ ।
देखो ये मैंने कुछ अमरूद ,अनार और अंजीर के पौधों को यहाँ लगाया है।दो महीने तक इन पौधों को पानी की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए मैंने पानी देकर इन्हें छोड़ दिया था ।तुम्हें यहाँ आए हुए पूरे सात दिन हो गये और मैं इन्हें बिलकुल भूल ही गई । “
नानी की बात सुनकर बबलू का चेहरा खिल उठा ,”अच्छा तो ये हैं आपके बच्चे , आप इन्हें बच्चे क्यों कहती हो नानी ,ये तो पौधे हैं ।ये मेरी तरह आपकी भाषा थोड़ी समझते हैं ? इनको पानी नहीं दिया तो क्या हो जाएगा ?”
नानी फिर मुस्कराई ,”बेटा पौधे भी हम इंसानों की तरह ही साँस लेते हैं।
हम इंसान साँस के साथ अपने अंदर ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं जबकि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अपने अंदर लेते हैं और ऑक्सीजन बाहर छोड़ते हैं।इसलिए पेड़ पौधे हमारे जीवन के लिए बहुत ज़रूरी होते हैं। ऑक्सीजन को इसीलिए प्राणवायु भी कहते हैं ।इसके बिना हमारी सांस बंद हो सकती है ।”
बबलू हैरानी से नानी की बात सुन रहा था,“अच्छा नानी ये पौधे आपकी भाषा कैसे समझते हैं ?”
“बेटा ,पौधे सब समझते हैं। हम पौधों को प्यार करते हैं ,अच्छे से खाद पानी देते हैं तो यह जल्दी बढ़ते हैं ।हम इनका ध्यान नहीं रखते तो ये मुर्झा जाते हैं।एक बात और इन्हें हम पानी इनकी ज़रूरत से कम दें तो इनका विकास रुक जाता है। और ज़रूरत से ज़्यादा पानी दें तो भी ये गल जाते हैं।
अच्छा बताओ अगर तुम्हें खाना नहीं मिले पूरा दिन तो तुम क्या करोगे ?
“नानी मैं भूखा नहीं रह सकता हूँ । एक दिन खाना नहीं खाया तो मुझे स्कूल में चक्कर आने लगे थे।।”
“ऐसे ही पौधे छोटे बच्चे की तरह होते हैं ।खाद पानी से बड़े होते हैं। जैसे तेज गर्मी हमें सहन नहीं होती उसी तरह इनके भी पत्ते जल जाते हैं तना सूख जाता है ।इनके साथ भी धूप और छाया का ध्यान रखना होता है ।”
“अच्छा नानी फिर तो ये बिलकुल हमारी तरह ही हैं ।”
“हाँ बेटा बिलकुल सही कह रहे हो तुम। तुम्हें पता है इन पेड़ों को लगाने के लिए मैंने और तुम्हारे नाना ने कितनी मेहनत की है । हमने एक महीने पहले ज़मीन में गड्ढे खोदकर खुले रख दिए थे इसलिए कि तेज धूप से इसके अंदर किसी तरह के कीटाणु हों तो वो मर जाएं । बाद में इसमें खाद डालकर इनमें ये पौधे रोपे हैं ।”
बबलू कह रहा था,”आपने इन्हें ज़मीन में रोपे हैं तो फिर छाया में कैसे रखोगे ?”
नानी मुस्करा रहीं थीं,”इसीलिए तो इस पौधे पर कुछ समय के लिए छाता तान के रखा है।” अचानक बबलू का ध्यान एक बड़े पेड़ पर गया ,नानी इस पेड़ में ये इतने सारे छोटे छोटे से कौन से फल लगे हुए हैं?”
“यह पपीते का पेड़ है । तुम एक महीने तक यहाँ रहोगे ना तो इसके मीठे मीठे पपीते खाने को मिलेंगे ।तुम खाओगे ना बबलू ?”
वह ख़ुशी से ताली बजाता हुआ बोला,” मुझे मीठा पपीता बहुत अच्छा लगता है।नानी मुझे गाँव बहुत अच्छा लगता है क्या मैं हमेशा आपके साथ रह सकता हूँ “
नानी ने समझाया,” बेटा तुम्हारे मम्मी -पापा का मन तुम्हारे बिना नहीं लगेगा और फिर तुम्हारी पढ़ाई भी ज़रूरी है।
मम्मी-पापा का नाम सुनकर बबलू उदास हो गया।धीरे से बोला,” हाँ मुझे भी उनकी याद आती है पर नानी मैं हर बार छुट्टियों में आपके साथ रहने ज़रूर आऊँगा।”
नानी ने प्यार से उसे गोद में उठा लिया। सामने से आ रहे नानाजी ने मुस्करा कर कहा, “अब बबलू बड़ा हो गया है। इसे गोद से नीचे उतारो ।” बबलू शर्माता हुआ नानी के पल्लू में अपना मुँह छिपाने लगा।