टन- टन-टन घंटी की आवाज आई और सभी बच्चे अपनी-अपनी किताबें बंद करके बस्तों में रखने लगे यह खाना खाने की घंटी थी। “सभी बच्चे अपना-अपना लंच बॉक्स लेकर लॉन में चले जाओ।
सर्दी का मौसम है, धूप में बैठकर खाना खाने से तुम्हें अच्छा लगेगा ” रोचर ने कहा। और सभी बच्चे लॉन की ओर चल दिए। पर राकेश चुपचाप अपनी जगह पर ही बैठा रहा। “चलो राकेश लॉन में चलें खाना खा लें ” दीपक ने कहा, जो कि उसका पक्का दोस्त था।
“नहीं, दीपक मुझे भूख नहीं है, इसीलिए मैं आज टिफिन भी नहीं लाया हूँ। मेरी तबीयत कुछ अच्छी नहीं है, तुम जाओ।” राकेश ने कहा। “ठीक है, खाना मत खाना, बाहर तो चलो। खुली हवा में तुम्हारी तबीयत को कुछ आराम मिलेगा।”
“नहीं, नहीं, मैं कक्षा में ही आराम करना चाहता हूँ। बाहर धूप के साथ-साथ हवा भी है जो मुझे अच्छी नहीं लग रही। कृपया तुम मुझे बार-बार बाहर चलने को कहकर परेशान मत करो ” राकेश ने कहा। राकेश की यह बात सुनकर दीपक चला गया। अब कक्षा में राकेश अकेला था। दीपक के जाते ही वह अपनी जगह से उठा और धीरे से विजय के बैग की ओर बढ़ा।
विजय आज एक नई पेंसिल लाया था जो कि बहुत हो सुन्दर थी। विजय बता रहा था कि यह पेंसिल उसके चाचा ताइवान से लाए थे।
जब से राकेश ने वह पेंसिल देखी थी, उसका मन उसी में हो अटका हुआ था। वह किसी भी तरह उस पेंसिल को हथियाना चाहता था इसलिए उसने खाना न खाने का तथा बाहर न जाने का बहाना बना लिया था। वाह अकेले में पसिल चुराना चाहता था।
इधर-उधर देखकर राकेश ने विजय का बैग खोला और उसमें से वह पेसिल निकाल लो। फिर उसने पेंसिल अपने बैग में छिपा ली।
थोड़ी देर बाद जब घंटी बजी तो सभी बच्चे फिर कक्षा और अपनी-अपनी बेंच पर बैठ गए।
गणित का घंटा था टीचर ने सभी बच्चों को कॉपी-पेंसिल निकालने के लिए कहा। विजय ने भी अपना बैग खोला, पर यह क्या. उसकी पेंसिल तो गायब थी। यह बात उसने टीचर को कही।
टीचर ने सभी बच्चों से पूछा, “किसी ने विजय की पेंसिल ली है या देखो है क्या?” 
सभी बच्चों ने कहा, “नहीं।”
“पर टीचर अभी तक तो पेंसिल मेरे बैंग में ही थी। बस मैं खाना खाने गया और आया तो देखा कि पेंसिल गायब है।” विजय ने कहा। 
टीचर ने एक बार फिर पूछा, “किसी ने पसिल ली हो तो लौटा दो।” पर सब चुप रहे। 
अचानक दीपक जो कि राकेश के पास ही बैठा हुआ था, का ध्यान राकेश की ओर गया जो कि सिर झुकाए बैठा था। उसे याद आया कि लंच टाइम में जब बच्चे खाना खाने लॉन में गए थे, राकेश कक्षा में ही था।
कहीं आज भी राकेश ने ही तो विजय की पेंसिल नहीं चुराई है। चूँकि वह राकेश का दोस्त था, इसलिए उसकी अच्छी-बुरी सभी आदतें जानता था। वह जानता था कि राकेश में चोरी करने की आदत है। उसने मित्र होने के नाते कई बार राकेश को समझाया कि चोरी करना बुरी बात है, पर वह मानता ही नहीं था।
दीपक ने कई बार यह भी सोचा कि सारी बात टीचर को बता दें पर इससे उनकी पुरानी दोस्ती टूटने का डर था दीपक सोच में डूब गया कि क्या करना चाहिए ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
पूरी छुट्टी की घंटी बज गई। सभी बच्चे बैग लेकर अपने-अपने घर जाने लगे तो दोपक ने कहा, “सब थोड़ी देर के लिए रुक जाओ। मैं आज तुम सबको जादू का खेल दिखाना चाहता हूँ।
“जादू का खेल।” बच्चों ने कहा, “ठीक है भाई थोड़ी देर और रुक जाते हैं, दिखाओ जादू का खेल।” 
“सुनो।” दीपक ने कहा “यह तो हम सब जानते है कि आज विजय को पेंसिल चोरी हो गई और चूँकि यह कक्षा में हो हुई है इसलिए चोर भी हम में से ही कोई एक है।”
“हाँ” सबने कहा।
दीपक ने फिर कहा, “मेरे पास एक जादू है जो चोर को पकड़ सकता है। ये देखो मेरे पास कुछ पर्चियों हैं जिसमें एक पर चोर और बाकी सब पर पुलिस लिखा है। जो चोर होगा उसी के पास चोर की पर्ची आएगी। फिर हम सब उसको सजा देंगे।”
“अरे भाई वाह । यह तो कमाल का जादू है। सबने कहा और बारी-बारी एक-एक पर्ची उठा ली। राकेश ने ना चाहते हुए भी एक पर्ची ले ली। 
दीपक के हाथ में भी एक पर्ची थी। सबने अपनी-अपनी पर्ची खोली। जादू का कमाल किसी भी पर्ची पर चोर नहीं था दीपक ने अपनी पर्ची भी देखी। उस पर लिखा था ‘चोर ।’
“यह क्या दीपक, क्या तुमने ही विजय की पैंसल चुराई है?” 
‘हाँ” दीपक ने कहा। “अब तुम सब मुझे जो चाहे सजा दे सकते हो।”
“चलो इसे टीचर के पास ले चलो वही इसको पिटाई करेंगे बड़ा आया जादू वाला। खुद ही फंस गया न अपने जाल में।” सबने कहा। 
यह सुनकर राकेश जो चुपचाप खड़ा था, की आँखों से आँसू बहने लगे। 
रोते-रोते वह बोला “नहीं मित्रों, दीपक को व्यर्थ सजा मत दो, चोर दीपक नहीं, मैं हां। मैंने ही विजय की पेंसिल चुराई है।” यह कहकर उसने बैग में से पेंसिल निकालकर विजय को दे दी। खोई पेसिल पाकर विजय का चेहरा खिल उठा।
“मगर क्या? तुम्हारा जादू झूठा था।” सबने दीपक से कहा।
यह सुनकर दीपक हँसने लगा और बोला, ” वास्तव में जादू वादू कुछ था ही नहीं। सभी पर्चियों पर ही पुलिस लिखा था। चोर वाली पर्ची तो मेरे हाथ में ही थी जो मैंने सब को दिखा दी थी। मैं जानता था कि राकेश ने ही चोरी की है और वह मेरा सच्चा मित्र है। वह मुझ पर लगा मिथ्यारोप कभी सहन न कर पाएगा और खुद ही अपना अपराध स्वीकार कर लेगा।”
फिर राकेश की ओर मुँह करके बोला, “मुझे माफ कर दो दोस्त।तुम्हें सबक सिखाने के लिए मुझे यह सब करना पड़ा। पर मुझे उम्मीद है कि आज के बाद तुम कभी ऐसा काम नहीं करोगे जिसके कारण तुम्हें अपमानित होना पड़े या तुम्हारी जगह किसी और को।”
राकेश ने आगे बढ़कर दीपक को गले लगा लिया और बोला, “मैं पूरी कोशिश करूँगा।”

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