आज मोनू की इच्छा हुई अंतरिक्ष की सैर करने की। धरती पर अब कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां जाकर कुछ देर शांति से बैठा जा सके। ना हरियाली बची थी ना नदियां और तालाब। थी तो बस हर तरफ लोगों की भीड़ और भीषण शोर, प्रदूषण। सड़कों पर असंख्य वाहन। धरती की जनसंख्या 14 अरब हो चुकी थी। खेतों की जगह फैक्ट्रियां व लैबोरेट्रीज थी जो विभिन्न न्यूट्रीशनल कैप्सूल बनाती थी। अब धरती के मनुष्य अनाज, फल, सब्जियों की जगह यही खाते हैं क्योंकि भूमि बेजान हो चुकी है और अन्न का एक दाना भी उपजा नहीं पाती। लैब में ही ऑक्सीजन का निर्माण किया जाता है क्योंकि पेड़ अब बचे नहीं। पानी भी कृत्रिम तरह से बनाया जाता है क्योंकि अब धरती पर बारिश नहीं होती। नीली हरी सुंदर धरती अब पथरीली दिखाई देती है और उस पर ऊंची-ऊंची इमारतों के जंगल।
मोनू ने एक सूटकेस में अपना जरूरी सामान रखा। खाने के लिए कैप्सूल रखी, ऑक्सीजन उत्पन्न करने वाली व्यक्तिगत मशीन ली और लिफ्ट में आ गया। लिफ्ट ने उसे 208 मंजिल नीचे 2 मिनट में ही पहुंचा दिया। अपने निजी वाहन से वह उस स्टेशन पर पहुंचा जहां उसका अंतरिक्ष यान रखा था। धरती पर विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली थी कि अधिकांश लोगों के पास विभिन्न आकारों वाले अपने निजी हवाई जहाज और अंतरिक्ष यान थे। मोनू ने अपने यान में पर्याप्त मात्रा में न्यूक्लियर ईंधन भरवाया और साथ में अतिरिक्त इंधन भी रख लिया। विशेषज्ञों द्वारा अपने यान की जांच करवाई और उड़ चला। धरती प्रतिक्षण छोटी होती हुई अंत में ओझल हो गई। जल्दी ही वह सौरमंडल से कुछ दूर काले अंतरिक्ष में पहुंच गया।
उसने तारामंडल का नक्शा निकाला और देखने लगा कि आसपास कौन सा ऐसा ग्रह है जिस की सैर की जा सकती है। पिछली बार उसने अपने सौरमंडल के ग्रह बृहस्पति की सैर की थी जो बहुत ही विशाल और ठंडा था। अब उसके सबसे पास अंतरिक्ष का दूसरा सौरमंडल था जिसका सूर्य रेनॉन था और उसके आसपास पाँच ग्रह चक्कर लगाते हैं। मोनू ने रेनॉन के ग्रहों के वातावरण का परीक्षण किया। उसने पाया कि रेनॉन सूर्य के चौथे ग्रह जेनॉन एक्स-30 का वातावरण पृथ्वी से काफी मिलता-जुलता है।
मोनू को वह ग्रह काफी दिलचस्प लगा उसने सोचा कि हो सकता है कि पृथ्वी की ही भांति जेनॉन भी अपने सूर्य से लगभग उतनी ही दूरी पर है तो वहां भी किसी प्रकार का जीवन हो। हालांकि पास होने के बाद भी वह ग्रह लाखों किलोमीटर दूर था लेकिन मोनू के यान की गति भी बहुत तेज थी और उसके पास इंधन भी प्रचुर मात्रा में था।
तीन दिन और तीन रात्रि की यात्रा करके वह जेनॉन की कक्षा में प्रवेश कर गया। उसने यान की गति धीमी कर दी और जेनॉन के चारों तरफ चक्कर लगाने लगा। जेनॉन के पास अपना वातावरण था। उस पर विविध रंगों की उपस्थिति से मोनू को लगा कि निश्चित ही यहां पर जीवन तो है। अब वह मात्र पेड़ पौधे हैं या प्राणी भी हैं यह तो वहां जाकर ही पता चलेगा। ग्रह के और पास आने पर मोनू ने अलग-अलग आवृत्तियों पर संदेश भेजे की यदि वहां कोई विकसित सभ्यता है तो वह उसके संदेशों को पढ़ ले और मोनू को उसका पता चल सके। उसे बहुत आश्चर्य हुआ जब एक आवृत्ति के संदेश जेनॉन पर ग्रहण कर लिए गए। मोनू को उसी आवृत्ति पर कूट भाषा में एक तरंग संदेश प्राप्त हुआ। उसने उसे डिकोड करके श्रवण आवृत्ति पर ट्रांसफर किया तो यह एक खरखराती भारी आवाज थी जो कह रही थी ‘जेनॉन ग्रह पर पृथ्वीवासी मोनू का स्वागत है।’
मोनू को बहुत आश्चर्य हुआ कि वह लोग उसका ग्रह ही नहीं नाम तक जानते हैं। उनके बताए निर्देशों के अनुसार मोनू ने अपना यान जेनॉन पर उतार दिया। जब वह यान से बाहर आया तो उसने देखा कि वहां के लोग उसके स्वागत में खड़े हैं। वह लोग धरती के मनुष्य जैसे ही थे लेकिन ऊंचे और स्वस्थ थे। सबसे पहले उन्होंने मोनू का हार पहना कर स्वागत किया और फिर उसे एक भाषा अनुवादक यंत्र दिया ताकि वह उनकी भाषा समझ सके।
“स्वागत है आपका मोनू हमारे ग्रह पर। हम बहुत प्रसन्न हैं कि आज हमारे ग्रह पर कोई पृथ्वीवासी आया है।” वहां उपस्थित लोगों में से एक ने कहा।
“मुझे भी आप लोगों से मिलकर बहुत खुशी हो रही है।” मोनू ने कहा।
“मेरा नाम सियांग है। आपके जेनॉन प्रवास के दौरान मैं आपके साथ रहूंगा और आपको यहां के दर्शनीय स्थल दिखाऊंगा।” सियांग ने कहा।
उस दिन मोनू ने विश्राम किया क्योंकि वह लंबी यात्रा से थका हुआ था। सियांग ने उसे एक आरामदायक विश्राम गृह में रखा। मोनू ने अपना ऑक्सीजन मास्क निकाल दिया क्योंकि वहां प्रचुर मात्रा में ठंडी हवा बह रही थी। चारों तरफ हरियाली थी। बड़े-बड़े वृक्ष हवा में झूम रहे थे। घंटे भर की नींद के बाद ही मोनू एकदम तरोताजा हो गया और उसकी सारी थकान दूर हो गई। यह शायद वहां की ऑक्सीजन से भरपूर प्राकृतिक हवा का कमाल था।
तभी सियांग उसके लिए भोजन ले आया। मोनू को तो धरती पर कैप्सूल ही खानी पड़ती थी। यहां इतनी सारी वस्तुएं देखकर उसे आश्चर्य भी हुआ और आनंद भी आया। पहली बार उसने जाना की अलग-अलग स्वाद कैसे होते हैं। उसने पेट भर कर खाना खाया और पानी पिया। फिर सियांग उसे आसपास घुमाने ले गया। वहां चारों तरफ पेड़ ही पेड़ थे। उन पर तितलियां, भँवरे और नन्हे पंछी उड़ रहे थे और चहक रहे थे। सुंदर-सुंदर फूल खिले थे। आसमान का रंग एकदम स्वच्छ नीला था जिस पर रुई जैसे सफेद बादल तैर रहे थे। वहां खेत भी थे और उनमें पशु चर रहे थे। फसलें खूब स्वस्थ व फल सब्जियां आकार में बहुत बड़ी थी। पहाड़ों पर से साफ निर्मल झरने बह रहे थे। पानी में बगुले, बतख, हंस जैसे अनगिनत जल पक्षी तैर रहे थे। अचानक मोनू की आंखें भर आयीं उसे अपनी सूखी वीरान धरती की याद आ गई।
“क्या हुआ मित्र तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों?” सियांग ने पूछा “क्या कोई परेशानी है तुम्हें यहां?”
“नहीं मित्र मुझे तो तुमने बहुत ही स्नेह व आराम से रखा है। बस तुम्हारे ग्रह को देखते हुए मुझे अपनी धरती की याद आ गई। सदियों पहले हमारी धरती भी ऐसी ही रही होगी।” मोनू ने कहा।
“हां मैं जानता हूँ मैंने पृथ्वी का इतिहास पढ़ा है। दरअसल मनुष्य प्रगति और विकास की दौड़ में ऐसा भागता रहा कि उसने ना धरती की चिंता की ना अन्य प्राणियों की। आज पृथ्वी पर मनुष्य के अलावा अन्य कोई प्राणी या पौधा तक नहीं बचा। न ही ऋतुएँ रही। बस कंक्रीट और लोहे की इमारतें, वाहन और प्रयोगशाला रह गई हैं। वैज्ञानिक प्रयोगों और प्रगति के पीछे मनुष्य ने अपनी इतनी सुंदर धरती नष्ट कर उसे ईट पत्थरों का ढेर बना डाला है।” सियांग ने अफसोस के साथ कहा।
“तुम सच कहते हो मित्र मनुष्य ने विज्ञान में तो बहुत प्रगति कर ली लेकिन प्रकृति को नष्ट कर दिया।” मोनू ने दुख से कहा।
“तभी हमने वैज्ञानिक प्रगति के साथ ही प्रकृति का भी बराबरी से संरक्षण किया। हमने जनसंख्या पर नियंत्रण रखा, हमने खूब पेड़-पौधे लगाए। जीव जंतुओं की रक्षा की। जल को प्रदूषण से बचाया। हमने प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों को सर्वोपरि रखा कभी भी विज्ञान को उस पर हावी नहीं होने दिया। हम सबको साथ लेकर चले। हमने न प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग किया न विज्ञान का। आज हमारे पास प्रकृति भी है और विकसित विज्ञान भी है।” सियांग ने गर्व से कहा।
“तभी तुम्हारा ग्रह अभी भी इतना सुंदर और प्यारा है।” मोनू ने कहा “लेकिन यह संभव कैसे हुआ की प्रकृति और विज्ञान का इतना बढ़िया तालमेल है इस ग्रह पर।”
“क्योंकि हमने वैज्ञानिक शोध भी प्रकृति के माध्यम से किया। हमने अपनी जीवनशैली और रहन-सहन प्राकृतिक रखा। हमारे घर व दैनिक उपयोग की वस्तुएं प्राकृतिक हैं। हम रसायनों व रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते और हमने देखा कि पृथ्वी प्लास्टिक व पॉलिथीन आदि हानिकारक वस्तुओं के अत्यधिक उपयोग से बंजर हो गई। हमने कभी भी ऐसे तत्वों की न खोज की ना उपयोग।” सियांग ने बताया।
“काश कि हमें भी समय पर समझ आ जाती तो हमारी प्यारी पृथ्वी की यह हालत न होती।” मोनू दुख से बोला।
मोनू चार दिन उस ग्रह पर रहा। वहां के सभी निवासी बहुत स्वस्थ व प्रसन्न थे। जेनॉन पर सभी प्राणी आपस में मिल जुल कर रहते थे। वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता व प्रकृति के संगीत अर्थात नदियों-झरनों की कलकल, पंछियों के कलरव ने उसका मन मोह लिया। प्रकृति में बिखरे अनगिनत रँग देखकर उसका मन खिल उठा। उस सुंदर ग्रह की यादों को मन में बसा कर और सियांग से विदा लेकर मोनू अपने यान में बैठ गया और धरती की ओर लौट चला। वह कुछ ही दूर आया होगा कि अचानक उसके यान में कुछ खराबी आ गई और उसका अंतरिक्ष यान नीचे गिरने लगा। मोनू ने संभालने की बहुत कोशिश की लेकिन यान नीचे ही आता गया। घबराकर मोनू जोर से चिल्लाया –
“माँ”
“क्या हुआ मोनू कोई बुरा सपना देखा क्या?” माँ कमरे में आई और उसके पास बैठ कर सर पर हाथ फेरने लगी।
मोनू ने देखा वह अपने कमरे में था, अपने बिस्तर पर। खिड़की से बाहर हरे-भरे पेड़ दिखाई दे रहे थे। चिड़ियों के चहकने की आवाज आ रही थी।
“ओह तो यह बुरा और भयानक सपना था।” उसने अपना सपना माँ को बताया और दोनों बहुत देर तक हंसते रहे।
“लेकिन बेटा सियांग ने बात तो ठीक कही थी। जिस तरह से हम पॉलीथिन व प्लास्टिक का उपयोग कर रहे हैं जल्दी ही हम धरती की वही स्थिति कर देंगे।” माँ ने कहा।
“नहीं माँ मैं आज से ही पॉलीथिन, प्लास्टिक और डिस्पोजेबल वस्तुओं का उपयोग बंद कर दूंगा और अपने दोस्तों से भी कहूंगा। साथ ही में खूब सारे पेड़ भी लगाऊंगा। मैं अपनी प्यारी धरती को ऐसे वीरान और पथरीली नहीं होने दूंगा।” मोनू ने कहा।
“शाबाश बेटा भविष्य में धरती को यदि बचाना होगा तो उसके लिए हम सबको आज से ही प्रयास करने होंगे।” माँ ने उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।