एक बार की बात है, मगध देश का राजा विशालसिंह शिकार खेलने गया। शिकार खेलते-खेलते राजा को प्यास लगी। पास ही एक नदी थी। राजा नदी पर पानी पीने गया। जब राजा पानी पी चुका तो उसने देखा कि उसके समीप ही नदी में एक घड़ा तैर रहा था। राजा को बड़ी हैरानी हुई। उसने उत्सुकतावश उस घड़े में झाँककर देखा तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उस घड़े में एक नन्हा-सा बालक पड़ा सो रहा था। राजा के कोई संतान नहीं थी। राजा ने सोचा मैं इसे अपना बेटा बनाकर पालूँगा।
यह सोचकर राजा उस बालक को अपने साथ महल में ले आया। रानी भी उस बालक को देखकर बड़ी प्रसन्न हुई।
राजा-रानी बड़े लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण करने लगे, क्योंकि वह बच्चा उनको मटके (घड़े) में से मिला था, इसलिए उन्होंने उसका नाम मटकू रख दिया।
देखते-देखते मटकू 8-9 साल का हो गया। एक बार की बात है मटकू खूब बीमार पड़ा। उसके बचने की कोई आशा न रही। हकीमों, वैद्यों आदि सबने जवाब दे दिया। सब निराश हो गए पर राजा- रानी ने हिम्मत नहीं हारी। वे घंटों अपने बेटे के पास बैठे रहते और इस उम्मीद में कि एक दिन उनका बेटा अवश्य ठीक हो जाएगा, उसकी खूब सेवा करते। रानी मटकू के जीवन के लिए सभी देवी-देवताओं की पूजा करती व कठिन से कठिन व्रत-उपवास करती। राजा ने ब्राह्मणों एवं गरीबों को दान देने के लिए अपने खजाने खोल रखे थे।
आखिर उनकी तपस्या सफल हो गई और मटकू धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा कुछ ही दिनों में वह चलने-फिरने व खेलने लगा। एक दिन की बात है मटकू बगीचे में अपने मित्रों के साथ खेल रहा था। खेल-खेल में उसे किसी ने कह दिया, “राजा-रानी तुम्हारे सगे माँ-बाप नहीं हैं।”
बस फिर क्या था। मटकू को ये बात बुरी लग गई। वह रानी के पास गया और कहने लगा, “मुझे बताओ मैं कौन हूँ तथा मेरे माँ-बाप कौन हैं? मैं उनके पास जाऊँगा।”
रानी ने मटकू को उसके मिलने की सारी घटना सुना दी और कहा, “अब तुम हमारे ही बेटे हो, क्योंकि हमने ही तुम्हें पाला-पोसा है। इसलिए तुम हमारे पास ही रहो।” इस पर मटकू बोला, “पालने-पोसने से क्या होता है। सगा तो आखिर सगा ही होता है इसलिए अब मैं अपने सगे माता-पिता के पास ही जाऊँगा।” यह कहकर वह महल से चला गया।
चलते-चलते वह एक नदी के किनारे पहुँच गया। वहाँ एक गाँव बसा हुआ था। यह वही नदी थी जिसमें से राजा को मटका मिला था।
उस गाँव में मटकू ने कई जगह पूछताछ की मगर किसी को उसके बारे में पता नहीं था रात ढल गई थी। हारकर वह एक बड़े, पक्के मकान के बाहर बने चबूतरे पर लेट गया। भूख भी लगी थी इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी।
अचानक उसे किसी की बातचीत सुनाई दी। कोई औरत अपने पति से कह रही थी, अच्छा हुआ जो हमने बड़े बेटे को घड़े में डालकर नदी में छोड़ दिया, नहीं तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता।
इस पर पति बोला, “हाँ, जब ज्योतिषी ने मुझे बताया कि इस बालक के ग्रह अच्छे नहीं हैं, यह बड़ा होकर खूब बीमार पड़ेगा और पिता के पास रहेगा तो उन्हें भी कष्ट देगा, मैं तो डर ही गया था। दोनों तरफ ही मुसीबत थी। तब तुमने मुझे घड़े में डालकर नदी में छोड़ देने वाली बात सुझाई थी। मैंने वैसा ही किया तभी हमारी मुसीबत टली थी।” इतनी बात करके पति-पत्नी सो गए।
पर मटकू जो कि पहले से ही सो नहीं पा रहा था, उसकी आँखों से नींद कोसों दूर भाग गई। उसे समझते देर न लगी कि यही उसके सगे माँ बाप हैं जिनकी तलाश में वह दर-दर भटक रहा है। लेकिन उन्होंने तो उसे मुसीबत समझकर त्याग दिया था तो अब उनके पास जाने से क्या लाभ?
तभी उसे राजा-रानी के दुख का खयाल आया जिन्होंने उसे मेहनत व प्यार से पाला-पोसा था। बीमार पड़ने पर लगन से सेवा की थी। उसके बिछुड़ने पर वह कैसे बिलख-बिलखकर रो रहे थे और वह उनका अपमान करके चला आया।
यह सोचकर उसे अपने ऊपर बड़ी शर्म आई। राजा-रानी दुखी होंगे, यह सोचकर वह जल्दी से वापस महल की ओर चल पड़ा। वह समझ गया था कि सगे माँ-बाप वही होते हैं जो प्यार व मेहनत से बच्चे का पालन-पोषण करते हैं। वे नहीं, जो अपने स्वार्थ व सुख का ध्यान रखकर बच्चों को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं।

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