प्रत्येक संस्कृति में लोक-कथायें पीढ़ियों से मौखिक रूप से कही जाने वाली कहानियों के रूप में प्रचलन में हैं। सामान्यतः परिवार के बुज़ुर्ग बच्चों को ये कहानियांँ सुनाया करते हैं और इस तरह बिना लिखे हुये भी सदियों से जन-श्रुति साहित्य की ये कहानियांँ किंचित सामयिक परिवर्तनों के साथ यथावत चली आ रही हैं।इन कहानियों के मूल लेखक अज्ञात हैं। किन्तु लोक कथायें सांस्कृतिक परिचय देती हैं।
आर्थर की लोक कथाओं को ईमानदारी, वफ़ादारी और ज़िम्मेदारी के ब्रिटिश मूल्यों को, अंग्रेजों की राष्ट्रीय पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। भारत में पंचतंत्र की कहानियां; नैतिक शिक्षा की पाठशाला ही हैं। उनसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का परिचय भी मिलता है। लोक कथायें बच्चों के अवचेतन मन में संस्कारों का प्रतिरोपण भी करती हैं।
समय के साथ एकल परिवारों के चलते लोककथाओं के पीढ़ी दर पीढ़ी पारंपरिक प्रवाह पर विराम लग रहे हैं। अतः नये प्रकाशन संसाधनों से उनका विस्तार आवश्यक हो चला है। विभिन्न भाषाओं में अनुवाद का महत्व निर्विवाद है। आज की ग्लोबल-विलेज वाली दुनिया में अनुवाद अलग-अलग संस्कृतियों को पहचानने के साथ ही सामाजिक सद्भाव के लिए भी महत्वपूर्ण है। अनुवाद ही एकमात्र ऐसा माध्यम है; जिसके जरिये क्षेत्रीयता के संकुचित दायरे टूटते हैं। यूरोपियन देशों में नीदरलैंड्स में,फ्रांसीसी, अंग्रेज़ी और जर्मन भी समझी जाती है।
प्रस्तुत पुस्तक नीदरलैंड की ‘लोक कथायें’ में डाॅ. ऋतुशर्मा ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य करते हुये, छः लोककथायें नीदरलैंड से, दो स्वीडन से, इटली से तथा जर्मनी से एक-एक कहानी चुनी है। डाॅ. ऋतु शर्मा ने कोई लेखकीय नहीं लिखा है। यह स्पष्ट नहीं है कि ये लोककथायें लेखिका ने कहां से ले कर हिन्दी अनुवाद किया है। कहानियों को हिन्दी में बच्चों के लिये सहज सरल भाषा में प्रस्तुत करने में लेखिका को सफलता मिली है।
यद्यपि कहानियों को किंचित अधिक विस्तार से कहा गया है। ‘जादुई पोशाक’, ‘चांदी का सिक्का’, ‘बुद्धू दांनचे’, ‘स्वर्ग का उपवन’, ‘तिकोनी ठुड्डी वाला राजकुमार’, और ‘दो लैंपपोस्ट की प्रेम कहानी’, नीदर लैंड की कहानियाँ हैं । जिनके शीर्षक ही बता रहे हैं कि उनमें कल्पना, फैंटेसी, चांदी के सिक्के और लैंप पोस्ट जैंसी जड़ वस्तुओं का मानवीकरण, थोड़ी शिक्षा, थोड़ा कथा-तत्व पढ़ने को मिलता है।
स्वीडन की लोककथायें, ‘नन्हीं ईदा के जादुई फूल’ और ‘रेतवाला कहानीकार’ हैं। इटली की लोक कहानी ‘तीन सिद्धांत’ और जर्मन लोक कथा ‘तीन सोने के बाल’ के हिन्दी रूप पढ़ने को मिले ।
इस तरहका साहित्य जितना ज्यादा प्रकाशित हो बेहतर है। वंश पब्लिकेशन, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश सहित हिन्दी बैल्ट के राज्यों में अपने नये-नये प्रकाशनों के जरिये गरिमामय स्थान अर्जित कर रहा, उदयीमान प्रकाशन है। वे उनके सिस्टर कन्सर्न ज्ञानमुद्रा के साथ लेखकों के तथा किताबों के परिचय पर किताबें भी निकाल रहे हैं। मेरी मंगलकामनायें। यह पुस्तक विश्व साहित्य को पढ़ने की दृष्टि से बहुउपयोगी और पठनीय है।
पुस्तक चर्चा के अंतर्गत विवेक जी के द्वारा डॉ.ऋतु शर्मा की लोककथाओं के नाम मात्र से परिचय हुआ।
दादी नानी के मुंह से सुनी गई कहानी अभी लोक कथाओं के अंतर्गत ही आती हैं आज पहली बार एहसास हुआ की जो कहानी हमने अपने बचपन में भाई से सुनी थी काश उन्हें हमने आज तक याद रखा होता हालांकि कुछ कहानियाँ याद हैं लेकिन नाम नहीं।
एक ही याद है, कहानी भी और नाम भी “राजा के सिर पर सींग”
साहित्यिक समूह का यह लाभ तो बहुत अच्छा ही है की कई चीज बहुत पुरानी याद आ जाती हैं। जिन चीजों को नादानी में नजरअंदाज किया वह भी बहुत काम की थीं।
अब तो “गई बात पुनि का पछिताने।”
शुक्रिया विवेक जी एक मधुर याद के लिये। ऋतु जी जहाँ भी हों उन्हें हमारी ओर से बधाइयाँ दीजिएगा।
डॉक्टर ऋतु नन्नन पांडे की लोककथाओं वाली पुस्तक की समीक्षा सटीक और तथ्यात्मक बन पड़ी है।
विवेक जी ने बड़ी साफगोई से लिखा है,इस खरेपन और सटीकता के लिए बधाई।
डॉक्टर ऋतु खोजी और उत्साही लेखिका हैं बीते ज़माने में खालसा कॉलेज में अध्यापन और दूरदर्शन को गुलज़ार कर चुकी हैं।लोककथाएं ,साहित्य या संस्कृति पर लिखना चुनौतीपूर्ण होती ही है। लेखिका को बधाई।
पुस्तक चर्चा के अंतर्गत विवेक जी के द्वारा डॉ.ऋतु शर्मा की लोककथाओं के नाम मात्र से परिचय हुआ।
दादी नानी के मुंह से सुनी गई कहानी अभी लोक कथाओं के अंतर्गत ही आती हैं आज पहली बार एहसास हुआ की जो कहानी हमने अपने बचपन में भाई से सुनी थी काश उन्हें हमने आज तक याद रखा होता हालांकि कुछ कहानियाँ याद हैं लेकिन नाम नहीं।
एक ही याद है, कहानी भी और नाम भी “राजा के सिर पर सींग”
साहित्यिक समूह का यह लाभ तो बहुत अच्छा ही है की कई चीज बहुत पुरानी याद आ जाती हैं। जिन चीजों को नादानी में नजरअंदाज किया वह भी बहुत काम की थीं।
अब तो “गई बात पुनि का पछिताने।”
शुक्रिया विवेक जी एक मधुर याद के लिये। ऋतु जी जहाँ भी हों उन्हें हमारी ओर से बधाइयाँ दीजिएगा।
डॉक्टर ऋतु नन्नन पांडे की लोककथाओं वाली पुस्तक की समीक्षा सटीक और तथ्यात्मक बन पड़ी है।
विवेक जी ने बड़ी साफगोई से लिखा है,इस खरेपन और सटीकता के लिए बधाई।
डॉक्टर ऋतु खोजी और उत्साही लेखिका हैं बीते ज़माने में खालसा कॉलेज में अध्यापन और दूरदर्शन को गुलज़ार कर चुकी हैं।लोककथाएं ,साहित्य या संस्कृति पर लिखना चुनौतीपूर्ण होती ही है। लेखिका को बधाई।