संपादकीय – पुस्तक मेला का खेला

कुछ प्रकाशक अपने-अपने स्टॉल पर पुस्तक चर्चा का आयोजन भी करते हैं। बेचारा लेखक यहां भी अपना किरदार पूरी शिद्दत से निभाता है। वह समीक्षक और आलोचक का इंतज़ाम तो करता ही है, पांच से दस श्रोताओं को भी आमंत्रित करता है और मिठाई...

संपादकीय – पूनम पांडेय और मौत का नाटक…

पूनम पांडेय की बात पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसने अपने मरने का नाटक सर्वाइकल कैंसर के विरुद्ध जागरूकता फैलाने के लिये किया था। सच तो यह है कि ऐसे लोग अपनी विश्वसनीयता अपने ही घटिया व्यवहार के कारण खो देते हैं। यदि...

संपादकीय – साहित्य में सामूहिक विवाह… !

कुछ महीने पहले एक पुरस्कार देने वाली संस्था और एक लेखक में हो गई बहस। संस्था देना चाह रही थी ‘अंतर्राष्ट्रीय कोरोना देव सम्मान’ जबकि पुरस्कृत होने वाला लेखक का मानना था कि इसे ‘वैश्विक कोरोना देवी पुरस्कार’ कहा जाए। लेखक की बात में...

संपादकीय – ईरान, पाकिस्तान और आतंकवाद

भारत के लिये स्थिति पर ध्यान रखने के अलावा कोई विकल्प फिलहाल तो नहीं है। याद रहे कि 1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान ईरान ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था। मगर आज हालात कुछ अलग किस्म के हैं।...

संपादकीय – देश में दुत्कार… दूर-देश में प्यार…!

आज के हालात हैरान करने वाले हैं। भारत में हिन्दू धर्म वायरस कहलाता है, बीमारी कहलाता है और हिन्दू होना गंदी बात बन जाती है। वहीं दूर देशों में जूलिया रॉबर्ट्स से लेकर स्वामी घनानन्द तक हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। लंदन और...

संपादकीय – हिंदी सिने दर्शक को ‘एनिमल’ ही मिलेगा…!

वो ज़माना याद आता है जब अनाड़ी, सुजाता, बंदिनी, प्यासा, जागते रहो, श्री420, आनंद, आंधी, चुपके-चुपके, प्यार किये जा, ख़ामोशी,  जैसी फ़िल्में बना करती थीं जिन्हें देख कर दर्शकों के व्यक्तित्व में गुणात्मक परिवर्तन हो पाता था। आज की हिट फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर...