बृज राज किशोर ‘राहगीर’ की ग़ज़ल – रोशनी को आइना दिखला रही है

चाँद बाँहों में लिए इठला रही है। झील अपने आप पर इतरा रही है। चाँदनी में हुस्न दोबाला हुआ है, नूर की बारिश इसे नहला रही है। इन हवाओं ने ज़रा सा छू लिया क्या, देखिए तो किस क़दर बल खा रही है। आज इसके हौसले हैं आसमां पर रोशनी को...

बिट्टू जैन सना की ग़ज़ल – भूख ईमान पे भारी है कि डरना है उसे

वस्ल की रात है श्रृंगार तो करना है उसे हो भले देर मगर सजना-सँवरना है उसे मुफ़लिसी आँख दिखाए कभी मुमकिन ही नहीं भूख ईमान पे भारी है कि डरना है उसे बेवफ़ाई की अगर लत है तो सच मानियेगा वादा हर रोज़ ही करना-ओ-मुकरना है उसे दर-हक़ीक़त कोई आशिक़...

डॉ पुष्पलता की ग़ज़ल – प्यास बैठी है पास पानी के

रंग सारे उदास पानी के, बस रहें आस-पास पानी के। ओक भी है उदास औ' लब भी, प्यास बैठी है पास पानी के। आँख छलकी हुयी हैं औ दिल भी, हमसे रिश्ते हैं खास पानी के। तेरा साया सदा निकलता है, यूँ पहन कर लिबास पानी के। आज पानी की है कमी...

गज़ाला तबस्सुम की ग़ज़ल – बच्चों पे कुछ तो रहम किया कर ऐ मुफ़लिसी

पुख़्ता हो हर सड़क भी, कुशादा भी चाहिए सर पे हमें दरख़्तों का साया भी चाहिए क्या क्या तुझे अता करूं ऐ दिल मुझे बता है चांद की तलब भी,सवेरा भी चाहिए इस दिल की ख़्वाहिशों की कोई इंतहा नहीं जब मिल गया है साथ,सहारा भी चाहिए बच्चों पे कुछ...

डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र का गीत – कभी सोचा नहीं था

कभी सोचा नहीं था घर ये मेरा घर नहीं होगा बनाने में जिसे दिन रात सारी जिंदगी गुजरी। हमारी बागवानी देखकर दुनिया तरसती थी तृषा की सीपियों में स्वाति की बूंदें बरसती थी कमल की चाह में हमने गुलाबों को सँजोया यों कि कांटे चुभ रहे थे जब उंगलियां...

अशोक व्यास की दो ग़ज़लें

1 किसी सपने को जगाया जाये इस तरह ख़ुद को बचाया जाये नदी ये ज़िंदगी की रुक रही है गति का गीत फिर गाया जाये बेवजह लग रही हर बात अगर चलो बिन बात मुसकुराया जाये कहाँ हूँ, क्यूँ हूँ, ये ख़बर पाने किससे पूछें, कहाँ जाया जाये सैलाब थम तो गया आंसू...