Monday, October 14, 2024
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संपादकीय – क्या भारत को राष्ट्रमण्डल देशों में बना रहना चाहिये ?

साभार : CNBCTV18

सवाल यह उठता है कि जब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया खालिस्तानी उग्रवादियों से निपटने को तैयार नहीं हैं तो भला भारत राष्ट्र मण्डल देशों के समूह में कर क्या रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो तो अपनी पार्टी के वोटों के लिये खालिस्तानियों के वोटों पर आश्रित रहता है। ऑस्ट्रेलिया का प्रधानमंत्री केवल बातें कर सकता है… कोई एक्शन नहीं। ऐसे में यदि भारत राष्ट्र मण्डल देशों से बाहर होने का निर्णय ले लेता है तो राष्ट्र मण्डल देशों की बैण्ड बज जाएगी।

भारत में खालिस्तान संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के मुखिया अमृतपाल सिंह पर पुलिस की कार्यवाही के जवाब में लंदन में खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय उच्चायोग के भवन पर हमला कर दिया और वहां से राष्ट्रध्वज तिरंगे को हटा कर खालिस्तानी झण्डा फहराने का प्रयास किया। उच्चायोग के एक कर्मचारी ने अपनी जान जोखिम में डालते हुए उस उग्रवादी को वहां से हटा कर वापिस तिरंगे को अपनी जगह प्रतिष्ठित कर दिया। 

भारतीय उच्चायुक्त ने ब्रिटेन के होम ऑफ़िस, लंदन के मेयर एवं गृह मंत्रालय को सख़्त लहजे में इस हिंसक कार्यवाही से निपटने के लिये कहा और अपराधियों को सज़ा देने की मांग की। उग्रवादियों के जवाब में भारतीय उच्चायोग ने दिखा दिया कि ऐसी निंदनीय कार्यवाहियों से हम दबने वाले नहीं हैं और एक विशाल तिरंगा भारत भवन पर शान से लगा दिया। 
भारतीय उच्चायुक्त श्री विक्रम दोरायस्वामी एवं उप-उच्चायुक्त श्री घोष ने भारतीय डायस्पोरा के प्रतिनिधियों को उच्चायोग में निमंत्रित कर समस्या के बारे में विस्तार से बताया और सभी मुअज़िज़ शहरियों के सवालों के जवाब दिये। बातचीत के दौरान उच्चायुक्त ने समुदाय के प्रतिनिधियों को विश्वास दिलाया कि उच्चायोग और भारत सरकार इस विषय में ब्रिटेन की सरकार के साथ राबता बनाए हुए हैं।
उस मीटिंग में कथा यूके के महासचिव एवं पुरवाई पत्रिका के संपादक के तौर पर मैं भी मौजूद था। मैंने महामहिम उच्चायुक्त से सवाल किया, “ब्रिटिश सरकार हमारे उच्चायोग को सुरक्षा प्रदान करने में असफल सिद्ध हो रही है। क्या भारत अपने दूतावासों की रक्षा स्वयं नहीं कर सकता जिस तरह इज़राइल विश्व भर में कर रहा है?”
उच्चायुक्त महोदय ने बहुत विनम्रता से मेरे सवाल का जवाब देते हुए कहा, “हम इस बारे में विमर्श कर रहे हैं। मगर हमारे सुरक्षा कर्मी केवल भवन के भीतर सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। भवन के बाहर सड़क पर उनका जाना ग़ैर-कानूनी हो जाएगा।”
हमेशा की तरह ब्रिटेन के नेताओं ने ट्वीट करते हुए घटना की भर्त्सना की मगर इसे अधिक से अधिक बनावटी हमदर्दी ही कहा जा सकता है। घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए लंदन के मेयर सादिक खान ने एक ट्वीट में कहा, “मैं भारतीय उच्चायोग में हुई अव्यवस्था और तोड़-फोड़ की निंदा करता हूं। इस तरह के व्यवहार के लिए हमारे शहर में कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों ने मामले की जांच शुरू कर दी है। भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त एलेक्स एलिस ने इस घटना को अपमानजनक और अस्वीकार्य बताया।

भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तानी समर्थकों के हमले पर ब्रिटेन के हैरो पूर्व के सांसद बॉब ब्लैकमैन ने आक्रोश प्रकट किया है। बॉब ने खालिस्तानी समर्थकों को चेतावनी देते हुए लंदन पुलिस से इन पर सख्त कार्रवाई करने के लिए कहा। बॉब ने कहा, ‘यह सिख समुदाय का एक बहुत छोटा, अति-छोटा तबका है। इस देश में सिखों का विशाल बहुमत खालिस्तानी प्रोजेक्ट और विचारधारा को पूरी तरह से खारिज करता है… और ये हम जानते हैं। मेरा संदेश पुलिस के लिए बहुत सरल और साफ है। जब ऐसा होता है (खालिस्तानी समर्थकों द्वारा भारतीय समुदाय या दूतावास पर हमला), तो उन लोगों को गिरफ्तार करके सबक सिखाएं। उनसे उचित तरीके से निपटने की आवश्यकता है। 
वहीं हैरो पश्चिम के लेबर पार्टी सांसद गैरेथ थॉमस ने भी ब्रिटिश संसद में भारतीय उच्चायोग पर की गई हिंसक वारदात की निंदा करते हुए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से प्रश्न किया कि भारतीय उच्चायोग की सुरक्षा के लिये सरकार क्या कदम उठा रही है। 
साउथहॉल के सांसद विरेन्द्र शर्मा, ने भी स्टॉकपोर्ट के सांसद नवेन्दु मिश्रा के साथ मिल कर भारतीय उच्चायुक्त को एक पत्र लिख कर इस हिंसात्मक घटना की निंदा की है। उन्होंने संबद्ध विभागों की आलोचना भी की है जो कि समय रहते उच्चायोग को सुरक्षा प्रदान नहीं कर पाए।
ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली का भी बयान आया है। उन्होंने कहा कि भारतीय उच्चायोग में कर्मचारियों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं अस्वीकार्य हैं। उन्होंने उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी को अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। पुलिस जांच जारी है। खालिस्तान समर्थकों द्वारा बार-बार भारतीय उच्चायोग पर हो रहे हमलों के मद्देनजर भारत सरकार की तीव्र प्रतिक्रिया के बाद ब्रिटेन में सरकार सक्रिय हुई है।

यह ख़बर भी मिली है कि अवतार सिंह खांडा नामक व्यक्ति जिसने भारतीय उच्चायोग में तिरंगे का अपमान करते हुए वहां खालिस्तान का झण्डा फहराने का अपराध किया जो कि लंदन में पाकिस्तान उच्चायोग के साथ संपर्क में था। न्यूज़ एक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार  पाकिस्तान के प्रथम सचिव पॉलिटिक्ल मिस्टर दिलदार अली, पाकिस्तान उच्चायोग द्वारा आयोजित ‘कश्मीर में मानवाधिकार’ कार्यक्रम में, खालिस्तानी उग्रवादियों से मिले। वही खालिस्तानी समर्थक भारतीय उच्चायोग पर की गई वारदात में भी शामिल थे। 
दरअसल भारतीय उच्चायोग लंदन पर बार-बार हमला होने को लेकर भारत सरकार ने 75 वर्षों में पहली बार कठोर निर्णय लेते हुए दिल्ली में ब्रिटिश दूतावास एवं उच्चायुक्त के निवास के बाहर सुरक्षा की अतिरिक्त सुविधाएं हटा ली हैं। बैरिकेड हटा दिये गये और पुलिसकर्मियों की संख्या में भी कमी कर दी गई है। इस कदम के बाद ब्रिटेन और अन्य देशों में अफ़रा-तफ़री का माहौल बनने लगा। अगले ही दिन भारतीय उच्चायोग लंदन के बाहर कम से कम सौ पुलिसकर्मी तैनात मिले। बैरिकेड लगा दिये गये और ख़ालिस्तानी समर्थकों को सड़क की दूसरी ओर ठहरने को मजबूर होना पड़ा। भारत सरकार का कहना है कि ब्रिटिश हाई कमीशन पर किसी प्रकार के हमले की कोई आशंका न होने के कारण इतनी हाई-फ़ाई सुरक्षा प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
कुछ ऐसी ख़बरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं कि दिल्ली प्रशासन ब्रिटिश उच्चायुक्त के घर के निकट सार्वजनिक मूत्रालय बनाने जा रहा है। ज़ाहिर है कि आज भारत की वो स्थिति नहीं है जो कभी हुआ करती थी। आज का भारत आर्थिक रूप से मजबूत देश है। विश्व की सबसे बड़ी मार्केट है। पिछले 75 वर्षों से वहां लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव हो रहे हैं। इसलिये विश्व के हर देश को भारत में और भारत की मिडल-क्लास में रुचि है। 
यह कहना अनुचित न होगा कि ब्रिटेन के इस तमाम घटनाक्रम में यदि कोई एक व्यक्ति नायक के रूप में उभर कर सामने आया है तो वे हैं भारत के उच्चायुक्त – महामहिम श्री विक्रम दोरायस्वामी। उन्होंने जिस परिपक्वता और दक्षता से इस समस्या के साथ निपटा है, हमें अहसास दिलाता है कि सही समय पर जब एक सही अधिकारी पद पर बैठा हो तो देश के लिये कितना अहम हो सकता है। 
ध्यान देने लायक बात यह भी है कि ब्रिटेन के अतिरिक्त तीन और देश हैं – ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और अमरीका – जहां खालिस्तान समर्थक भारतीय उच्चायोग / दूतावास पर हमला बोल रहे हैं। अमरीका के साथ भारत के रिश्तों में बदलाव आ रहे हैं। मगर ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन तीनों ही राष्ट्र मण्डल देशों के संस्थापक देशों में शामिल हैं। तीनों देशों ने 1931 में इस संगठन की शुरूआत की थी। भारत स्वतंत्रता मिलने के बाद 1947 में इस संगठन का हिस्सा बना। इस समय राष्ट्र मण्डल के 54 देश हैं। पाकिस्तान शायद एक अकेला देश है जो दो बार इस संगठन से अलग हुआ और दोबारा जुड़ा।
सवाल यह उठता है कि जब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया खालिस्तानी उग्रवादियों से निपटने को तैयार नहीं हैं तो भला भारत राष्ट्र मण्डल देशों के समूह में कर क्या रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो तो अपनी पार्टी के वोटों के लिये खालिस्तानियों के वोटों पर आश्रित रहता है। ऑस्ट्रेलिया का प्रधानमंत्री केवल बातें कर सकता है… कोई एक्शन नहीं। ऐसे में यदि भारत राष्ट्र मण्डल देशों से बाहर होने का निर्णय ले लेता है तो राष्ट्र मण्डल देशों की बैण्ड बज जाएगी। 
राष्ट्र मण्डल देशों में बाक़ी 53 देशों की जनसंख्या भारत के बराबर नहीं है। यदि भारत आज राष्ट्र मण्डल देशों के समूह से निकल जाता है तो इस समूह का कोई औचित्य ही नहीं बचेगा। आज भारत विश्व की सबसे बड़ी पांचवीं अर्थव्यवस्था है। ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया को समझना होगा कि वो दिन हवा हुए जब भारतीय गोरे साहबों के सामने हाथ बांधे खड़े रहते थे।… आज का भारत सक्षम, सबल और मज़बूत भारत है। आज भारत दूसरे देशों में नौकरियां पैदा करता है… उसे किसी तथाकथित सुपर पॉवर की दया दृष्टि की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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30 टिप्पणी

  1. Your Editorial of today raises a very important question relating to the position of india vis a vis international relations in the context of this vexatious rise in incidents of Khalistan flags being hoisted in various parts of Britain,Australia n US.
    In recent times.
    Which is both distressing n worrisome.
    Regards

  2. सार्थक एवं सामयिक संपादकीय, राष्ट्रमंडल देश मे भारत का होना एक गुलामी का प्रतीक है यह सदस्यता बार बार याद दिलाती है कि हम रानी की जी हजूरी में लगे हैं। हम आज इस स्थिति में हैं कि किसी बीबी देश की आंखों में आंखे डालकर बराबरी की बात कर सकते हैं। खालिस्तानी समस्या 45 वर्षों से लगातार बनी हुई है कभी बढ़ जाती है कभी घट जाती है।दृढ़ इच्छा शक्ति से इसे कुचला जा सकता है हमे याद रखना होगा कि हमारी एक यशस्वी प्रधान मंत्री इन्ही लोगों द्वारा शहीद की जा चुकी हैं।

    • सुरेश भाई आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है। राष्ट्रमंडल देशों की सदस्यता के बारे में पुनर्विचार करने का समय आ गया है।

  3. सार्वजनिक मंच पर साहस भरे इस प्रश्न को उठाने के लिए बधाइयां ,संपादक महोदय!
    राष्ट्रमंडल की स्थापना ही शायद इसी विचार से की गई थी कि ब्रिटेन के प्रभुत्व का महिमामंडन समाप्त न हो सके। ब्रिटेन के औपनिवेशिक देशों के मन से कभी यह भावना ना मिटे कि वे ब्रिटेन के दास रहे हैं।
    मेरा विचार है कि भारत को तत्काल राष्ट्रमंडल देशों से हट जाना चाहिए। हमारा देश इस समय ऐसी स्थिति में है कि विश्व का कोई देश उसकी उपेक्षा नहीं कर सकता।
    ऊर्जावान संपादकीय के लिए एक बार फिर साधुवाद।

  4. आपका लेख एक नए भारत की परिकल्पना, दक्षता और आत्मनिर्भरता को दर्शाता है और चुनौतियों से निपटने के लिए आगाह भी करता है ।
    प्रखर वक्तव्य के बहुत बहुत धन्यवाद ।

  5. नमस्कार
    आज की सम्पादकीय ‘क्या से आरंभ हुई है यानी प्रश्नवाचक है ।उदधृत सभी घटनाक्रम गम्भीर हैं ।यह सत्य है कि मुट्ठीभर लोग देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हैं और इन्हें काबू किया जा सकता है फिर भी प्रत्येक देश अपनी वोट की राजनीति में इनका लाभ ले रहा है।
    भारत राष्ट्र मंडल में रहेगा, तभी तो अन्य राष्ट्रों की जवाबदेही तय कर सकेगा ,सम्भवतः मैदान छोड़कर चले जाने वाली रणनीति पर वर्तमान सरकार काम नहीं करेगी ।
    Dr Prabha mishra

  6. एक देश को धर्म के नाम पर दो देशों में बांट कर अपना औपनिवेशिक शासन समेटने की परम्परा ब्रिटेन की ही शैतानी चाल है, जिसका खामियाजा , हम भारतीय आज तक भुगत रहे हैं। क्या ब्रिटेन सचमुच उन देशों का सत्य -निष्ठा से साथ देगा जो उसके षड़यंत्र से निकलने का प्रयत्न करेंगे? ं

  7. आज के अपने संपादकीय में आपने बहुत ही वाज़िब प्रश्न किया है कि जब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया खालिस्तानी उग्रवादियों से निपटने को तैयार नहीं हैं तो भला भारत राष्ट्र मण्डल देशों के समूह में कर क्या रहा है!!

    यहाँ मैं कहना चाहूँगी कि कोई किसी के लिए कुछ नहीं करता अपनी लड़ाई व्यक्ति को स्वयं लड़नी पड़ती है। यही बात देशों के बीच लागू होती है। देश सहानुभूति दिखा सकते हैं किन्तु अपनी नीतियों और रीतियों से हमें अपनी संप्रभूता की रक्षा स्वयं करनी होगी। आज भारत यब कर सकता है, उसे करना चाहिए।

  8. इस समस्या से संबंधित आपने सभी पक्षों पर यथार्थ रूप से सही प्रकाश डाला है और ब्रिटेन सरकार की इस विषय पर पोल खोलते हुए उसे आइना दिखा दिया है। भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सोनक ने इस विषय पर क्यों अपेक्षित ध्यान नहीं दिया? वहां सभी संबंधित पक्षों ने ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग पर हुई घटना की सभी ने निंदा की है और मामले में आवश्यक कार्रवाई करने की मांग की है।भारत ने जब दिल्ली में ब्रिटेन के उच्चायोग के पास से चुस्त दुरुस्त सुरक्षा का घेरा हटाया तो देखा गया कि दूसरे दिन ब्रिटेन में भारत के उच्चायोग पर पुलिस की तैनाती की गई जो कि पहले ही होनी चाहिए थी। इस बात पर हम सब भारतीय लोगों को बहुत गर्व है कि वहां भारतीयों ने भारतीय उच्चायोग पर एकत्रित हो खालिस्तानी तत्वों के आक्रमण का विरोध किया और भारत के प्रति अपने प्रेम और श्रद्धा का प्रर्दशन किया। इससे प्रेरणा ले कर अगर आस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में भी वहां भारतीय ऐसा करते तो अच्छा लगता। ब्रिटेन में रह रहे भारतीय लोगों का इस प्रकार भारतीय उच्चायोग के सामने एकत्रित हो भारत के प्रति अपने प्रेम प्रदर्शन से एक बड़ा ही सार्थक संदेश संबंद्ध तत्वों तक पहुंचा होगा कि भारत को अब हल्के में नहीं लिया जा सकता।ऐसे विश्लेषणात्मक संपादकीय के लिये बहुत बहुत साधुवाद और आभार।

    • संतोष जी आपने अपनी विस्तृत टिप्पणी से संपादकीय पर रौशनी डाली है। हार्दिक आभार।

  9. तजेंद्र शर्मा जी नमस्कार।
    संपादकीय के लिए साधुवाद और आभार
    सार्वजनिक मंच पर अपनी बात को कहना इससे यह पता चलता है कि प्रवासी जो भारत से बाहर रह रहे हैं। उनके अंदर सेवा भाव कितना है। मुट्ठी भर लोगों ने जो यह हरकत की है वह निंदनीय है।

    • धन्यवाद डॉक्टर मुक्ति। आपकी टिप्पणी पुरवाई के लिए हमेशा महत्वपूर्ण होती है।

  10. तेजेन्द्र जी मेरे विचार में राष्ट्रमंडल का गठन ही संदिग्ध उद्देश्य से किया गया था। यह केवल अपनी औपनिवेशिक शक्ति को बनाए रखने का बहाना था। कैनेडा की बात छोड़ें क्योंकि कैनेडा राजनैतिक विचारधारा के मामले में अभी व्यस्क हुआ ही नहीं। प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो को प्रधान मंत्री पद के लिए ठीक उसी तरह “ग्रूम” किया गया जैसे कि गांधी परिवार में किया जाता रहा है। कैनेडा में रहते हुए चिंता की बात यह है कि यहाँ राजनैतिक व्यवस्था भारत की तरह जातीयता में जकड़ती चली जा रही है। क्योंकि सही सोच वाले सिख समुदाय के लोग बोलते नहीं हैं और गुरुद्वारों पर खालिस्तानी बरसों से अपना कब्ज़ा जमा चुके हैं। पत्रकारों और भारतीय समाचार के माध्यमों के प्रकाशकों और सम्पादकों की पिटाई करना भी चल रहा है। कैनेडा का शासन सब देखते-समझते हुए भी वोट की राजनीति को अपना कर आँख मूँद लेता है। अभी यहाँ पर शासन को समझने के लिए समय लगेगा कि यह खालिस्तानी और कट्टरपंथी मुस्लिम समुदाय के वोटिंग बैंक ही प्रजातन्त्र के गले की हड्डी प्रमाणित होंगे।
    इसी वोटिंग ब्लॉक के चलते इन समूहों के आपराधिक कृत्यों को भी अनदेखा किया जा रहा है। प्रचार-प्रसार का यह आलम है कि खालिस्तानी रिफ़्रेंडम के लिए ब्रैम्पटन के मेयर कोम्युनिट हाल को निःशुल्क उपलब्ध करवाते हैं। जस्टिन ट्रूडो भारत यात्रा के समय अपने साथ भगोड़े खालिस्तानी/आतंकवादी को साथ ले जाते हैं। अब आर्थिक रूप से भारत शक्तिशाली होता जा रहा है। भारत को, वर्तमान नेतृत्व के चलते, सर उठा कर चलना चाहिए और ऐसा हो भी रहा है। भारत को एक अलग अपना राष्ट्रमंडल का गठन करना चाहिए। प्रधान मंत्री मोदी जी के “ग्लोबल साउथ” के विचार भी इसी और इशारा कर रहे हैं। पुरानी औपनिवेशिक शक्तियों के दिन लद चुके हैं, बस अभी उनकी पुरानी ख़ुमारी उतरी नहीं है। आँखों पर जो मकड़ी के जाले लगे हैं, वह उतारने बाक़ी हैं।

    • सुमन जी आपकी यह टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है। कनाडा में भारतीयों की हालत को आप बहुत अच्छी तरह समझते हैं। मुझे उम्मीद है कि पुरवाई के पाठक आपकी टिप्पणी पढ़ कर अपनी जानकारी बढ़ा सकते हैं।

  11. “यशस्वी रहें हे प्रभो ! हे मुरारे!
    चिरंजीवी राजा औ रानी हमारे।”
    हमरे माँ – बाप यानी गुलाम भारत के बच्चे ब्रिटेन की राजशाही की कुशल मनाते थे स्कूल की प्रातः प्रार्थनाओं में। वो दिन और आज का दिन। सम्पादक महोदय के ओजस्वी संपादकीय ने दिल ख़ुश कर दिया।
    हैरो और केंब्रिज के पढ़े, विलायती तबीयत के प्रधान मंत्री को भारत गुलाम ही अच्छा लगता था। तभी तो नाम के लिये स्वतन्त्र हो कर भी देश परतंत्र ही रहा।
    आज भारत के बढ़ते हुए कद और प्रभाव को देख कर मन को सुकून मिलता है।
    ब्रिटिश उच्चायोग के प्रति की गयी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी और कारगर रही। तटस्थता या प्रतिक्रिया सबल की ही प्रभावी है। ब्रिटेन की हड़बड़ाहट, भारत के शक्ति को प्रमाणित करती है।
    सुबह-सुबह इतने रोचक और ऊर्जावान संपादकीय को पढ़ कर मन कमल सा खिल गया (यूँ प्रतिक्रिया लिखने में विलम्ब हुआ)। धन्यवाद तेजेन्द्र जी।

  12. नमस्कार सर,आपने संपादकीय में हर बार की तरह इस बार भी अतिमहत्वपूर्ण मुद्दा उठाया है।भारतीय उच्चायोग में खालिस्तान समर्थकों द्वारा किए गए कृत्य की जितनी निंदा की जाए कम है। राष्टमंडल के शक्ति संपन्न देशों द्वारा इस विषय पर मनन के बाद समय रहते उचित कार्रवाई अपेक्षित है।अन्यथा यह समस्या भविष्य में और विकराल रूप ले सकती है।भारत के सशक्त नेतृत्व ने आज दिखा दिया है कि भारत विघटनकारी ताकतों का साहस पूर्वक मुकाबला कर सकता है और इस बात को समस्त विश्व आज अनुभव भी कर रहा है। प्रासंगिक मुद्दे को उठाने के लिए एक बार पुनः बधाई।

    • धन्यवाद नूतन। ऐसी सार्थक टिप्पणियां पुरवाई संपादकीय की शक्ति बन जाती है।

  13. अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत के कदम सफलता की ओर है… अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में अनेक भारतीयों की विभिन्न रूप में भागीदारी है।
    आपका लेख और आपके सवाल अति सराहनीय है हार्दिक शुभकामनाएं

  14. बहुत महत्वपूर्ण संपादकीय। आपका सवाल जेनुइन है। वैसे भी भारतीयों को गुलामी की निशानी संजोये रहने की भला क्या आवश्यकता है। भारत को खंडित करने वालो के विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।

  15. आपने सही कहा कि भारत को राष्ट्रमंडल से बाहर निकल आना चाहिए। अब भारत की साख विश्व में प्रतिष्ठित हो चुकी है। आपकी सम्पादकीय टिप्पणी के अन्तिम अंश से हमारा सर गर्व से ऊँचा हो गया।
    उक्त घटना पर भारत ने जो जवाबी प्रतिक्रिया की, उसकी सराहना की जानी चाहिए।

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