होम ग़ज़ल एवं गीत डाॅ राजेश तिवारी ‘विरल’ का शृंगार-गीत ग़ज़ल एवं गीत डाॅ राजेश तिवारी ‘विरल’ का शृंगार-गीत द्वारा डॉ राजेश तिवारी विरल - May 29, 2022 65 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet सौन्दर्य की मोहक अलौकिक रूप राशि अपार हो! नव वलय किसलय मुकुल-सी यामिनी मधुगीत सी! सप्त स्वर की सहज सरगम सुगम शुचि संगीत सी!(1) सौन्दर्य की मोहक अलौकिक रूप – राशि अपार हो! नेह की अनुपम छटा-छवि- स्निग्ध पारावार हो!(2) तुम विभूषित रूप जिसमें भव्यता की भावना है! कलित कोमल कल्पना – सी कामना- सी कामना है!(3) जग, उसी श्रृंगार – छवि का अनुकरण करता सदा है! जो लुटाती मुग्ध परिमल जगत को ही सर्वदा है!(4) ज्ञात की अज्ञात-छवि-नवनील के परिधान – सी! अनहद् मधुर अव्यक्त अनुपम महाचिति अभिराम-सी!(5) दृग-कोर ज्यों खंजन सजी-सी मृदुल मोहक दृष्टि हो! द्विति अलौकिक दिव्यता में भव्य पूर्ण समष्टि हो!(6) अधर पल्लव – दल सजे-से राग का अनुराग हैं! नयन उन्मीलन तुम्हारा सहज मुकुल विहाग है!(7) केश श्यामल-यामिनी ज्यों कर रही अभिसार अनुपम! बिम्ब का प्रतिबिम्ब लख-लख रच रही श्रृंगार अनुपम!(8) वह सुघड़ रमणीय आभा-सी सजी परिधान पहने! अलंकारों से सजे-से एक – एक सु – अंग गहने !(9) इन्द्र की हो अप्सरा या रति स्वयं हो पंचशर की? या कि गौरा अवतरित है इस धरा पर स्वयं हर की?(10) उर्वशी या मेनका रम्भा-सदृश इक अप्सरा – सी? रूप यह अपरूप ! अनुपम कान्तिमय अद्भुत त्वरा-सी!(11) रूप लौकिक , छवि अलौकिक भानु की-सी दीप्ति अनुपम। चन्द्र की शीतल छुअन – सी सिन्धु -सा गाम्भीर्य निरुपम।(12) संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं नीलम वर्मा की ग़ज़ल त्रिलोक सिंह ठकुरेला का गीत – मैं उजाला बाँटता हूँ, तिमिर में डूबे घरों में डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ के दो गीत कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.