सौन्दर्य की मोहक अलौकिक
रूप राशि अपार हो!
नव वलय किसलय मुकुल-सी
यामिनी मधुगीत सी!
सप्त स्वर की सहज सरगम
सुगम शुचि संगीत सी!(1)
सौन्दर्य की मोहक अलौकिक
रूप – राशि अपार हो!
नेह की अनुपम छटा-छवि-
स्निग्ध पारावार हो!(2)
तुम विभूषित रूप जिसमें
भव्यता की भावना है!
कलित कोमल कल्पना – सी
कामना- सी कामना है!(3)
जग, उसी श्रृंगार – छवि का
अनुकरण करता सदा है!
जो लुटाती मुग्ध परिमल
जगत को ही सर्वदा है!(4)
ज्ञात की अज्ञात-छवि-नवनील
के परिधान – सी!
अनहद् मधुर अव्यक्त अनुपम
महाचिति अभिराम-सी!(5)
दृग-कोर ज्यों खंजन सजी-सी
मृदुल मोहक दृष्टि हो!
द्विति अलौकिक दिव्यता में
भव्य पूर्ण समष्टि हो!(6)
अधर पल्लव – दल सजे-से
राग का अनुराग हैं!
नयन उन्मीलन तुम्हारा सहज
मुकुल विहाग है!(7)
केश श्यामल-यामिनी ज्यों कर
रही अभिसार अनुपम!
बिम्ब का प्रतिबिम्ब लख-लख
रच रही श्रृंगार अनुपम!(8)
वह सुघड़ रमणीय आभा-सी
सजी परिधान पहने!
अलंकारों से सजे-से एक – एक
सु – अंग गहने !(9)
इन्द्र की हो अप्सरा या रति
स्वयं हो पंचशर की?
या कि गौरा अवतरित है
इस धरा पर स्वयं हर की?(10)
उर्वशी या मेनका रम्भा-सदृश
इक अप्सरा – सी?
रूप यह अपरूप ! अनुपम
कान्तिमय अद्भुत त्वरा-सी!(11)
रूप लौकिक , छवि अलौकिक
भानु की-सी दीप्ति अनुपम।
चन्द्र की शीतल छुअन – सी
सिन्धु -सा गाम्भीर्य निरुपम।(12)