होम ग़ज़ल एवं गीत पीयूष अवस्थी की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत पीयूष अवस्थी की ग़ज़ल द्वारा पीयूष अवस्थी - May 29, 2022 67 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet सुना है आइनों ने अक्स का पुतला निकाला है इसी से हाथ में हमने भी अब पत्थर संभाला है ज़हर या जाम का मतलब न इस बस्ती को समझाओ यहाँ पर खलबली होगी कि किसके हाथ प्याला है नहीं चढ़तीं किसी की आस्तीनें तो अचम्भा क्या कहो किसने भला कब बाँबियों में हाथ डाला है उसे भी भूनकर ख़ुद खा गया वो भूख का मारा परिन्दा , जिसको कहता था बड़े नाजों से पाला है न फेंको झील में कंकड़ यहाँ चुपचाप ही बैठो मछरों ने अभी मछली फँसा काँटा उछाला है यहाँ फिर ज़िन्दगी को देखने के वास्ते हमने अभी सन्दूक की तह में पड़ा अलबम निकाला है ! संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल – हम को जीना पड़ा जतन कर के सतीश उपाध्याय का नवगीत – मुझ में ही सपने पलते हैं आशा शैली की ग़ज़ल – साथ तू था न तेरा साया था 1 टिप्पणी अच्छी रचना जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
अच्छी रचना