Sunday, October 6, 2024
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पीयूष अवस्थी की ग़ज़ल

सुना   है  आइनों  ने  अक्स  का  पुतला  निकाला  है
इसी  से  हाथ  में  हमने  भी  अब  पत्थर  संभाला है
ज़हर या जाम का मतलब न इस बस्ती को समझाओ
यहाँ पर खलबली  होगी  कि  किसके  हाथ प्याला है
नहीं  चढ़तीं  किसी  की  आस्तीनें  तो  अचम्भा  क्या
कहो  किसने  भला  कब  बाँबियों  में  हाथ  डाला  है
उसे  भी  भूनकर  ख़ुद  खा  गया वो  भूख  का  मारा
परिन्दा , जिसको  कहता  था बड़े  नाजों  से  पाला है
न   फेंको   झील  में  कंकड़   यहाँ  चुपचाप  ही  बैठो
मछरों   ने  अभी   मछली   फँसा   काँटा   उछाला  है
यहाँ   फिर   ज़िन्दगी   को   देखने   के   वास्ते  हमने
अभी सन्दूक  की  तह  में  पड़ा  अलबम  निकाला है !
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