पीयूष अवस्थी की ग़ज़ल
सुना है आइनों ने अक्स का पुतला निकाला है
ज़हर या जाम का मतलब न इस बस्ती को समझाओ
नहीं चढ़तीं किसी की आस्तीनें तो अचम्भा क्या
उसे भी भूनकर ख़ुद खा गया वो भूख का मारा
न फेंको झील में कंकड़ यहाँ चुपचाप ही बैठो
यहाँ फिर ज़िन्दगी को देखने के वास्ते हमने
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अच्छी रचना