होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से ग़ज़ल एवं गीत डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से द्वारा डॉ. यासमीन मूमल - April 10, 2022 227 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet मिल जाये गली में वो हरदम, जब निकलूं मैं अपने घर से, दिल में आंधी सी उठती है, उड़ जाए चुनरिया भी सर से। मैं बूंद स्वाति की उसे लगूं वो जब ख़ुद को चातक माने हम प्रणय नीड़ के पंछी हैं यह बात सकल जग अब जाने जब जब दोनों का मन चाहे तब प्रेम सुधा अविरल बरसे। वह वासंती मौसम जैसा मैं रंगबिरंगी होली सी वह लोकगीत सा मधुर मधुर मैं ग़ज़ल सरीखी भोली सी मैं उसे देखने को आतुर वह मुझे देखने को तरसे। मैं जब नदिया बनकर बहती वह बांह पसारे सागर सी वह मीठे-मीठे जल सा है मैं ठंडी ठंडी गागर सी मैं जीभरकर इतराऊं जब वो मुझे देखकर जब हरसे। मिल जाये गली में वो हरदम, जब निकलूं मैं अपने घर से, दिल में आंधी सी उठती है, उड़ जाए चुनरिया भी सर से संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल – हम को जीना पड़ा जतन कर के सतीश उपाध्याय का नवगीत – मुझ में ही सपने पलते हैं आशा शैली की ग़ज़ल – साथ तू था न तेरा साया था कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.