मिल जाये गली में वो हरदम, जब निकलूं मैं अपने घर से,
दिल में आंधी सी उठती है, उड़ जाए चुनरिया भी सर से।
मैं बूंद स्वाति की उसे लगूं
वो जब ख़ुद को चातक माने
हम प्रणय नीड़ के पंछी हैं
यह बात सकल जग अब जाने
जब जब दोनों का मन चाहे
तब प्रेम सुधा अविरल बरसे।
वह वासंती मौसम जैसा
मैं रंगबिरंगी होली सी
वह लोकगीत सा मधुर मधुर
मैं ग़ज़ल सरीखी भोली सी
मैं उसे देखने को आतुर
वह मुझे देखने को तरसे।
मैं जब नदिया बनकर बहती
वह बांह पसारे सागर सी
वह मीठे-मीठे जल सा है
मैं ठंडी ठंडी गागर सी
मैं जीभरकर इतराऊं जब
वो मुझे देखकर जब हरसे।
मिल जाये गली में वो हरदम, जब निकलूं मैं अपने घर से,
दिल में आंधी सी उठती है, उड़ जाए चुनरिया भी सर से

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