होम ग़ज़ल एवं गीत सुभाष पाठक ‘ज़िया’ की ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीत सुभाष पाठक ‘ज़िया’ की ग़ज़लें द्वारा सुभाष पाठक ज़िया - April 17, 2022 48 1 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ग़ज़ल 1 छोड़ो कि टूटकर वो सितारा किधर गया देखो कि रास्तों का मुक़द्दर संवर गया दरिया छलक छलक के समन्दर के सामने मौजों को बोल जाने पे मजबूर कर गया दिल को बुरा न कहिये कि धड़के है बार बार कहने को क्या बचेगा अगर ये ठहर गया तेरी निगाह फेर ने की देर है फ़क़त तू देखना कि बात से मेरी असर गया दामन बचा न पाया जो तितली का ख़ार से ग़ुस्से में गुल वो अपनी क़बा को कतर गया इतना यक़ीन था मेरे ईमान पर उसे आँसू भी अपने वो मेरी आँखों में धर गया माथे को उसने चूम लिया कुछ कहे बग़ैर उसको मिला सुकून मेरा दर्द ए सर गया ग़ज़ल 2 किस हँसी पर हारिये दिल किन ग़मों पर रोइये चार दिन की ज़िंदगी है आप किसके होइये छेड़कर बातें पुरानी फेरकर मुँह बैठे हो ये कहाँ की रीत है हमको जगाकर सोइये बह रही है देखिए गंगा हमारी आँख से आइये अब आप भी अपनी ख़तायें धोइये जब अंधेरे में नहीं कोई हमारे साथ तो बोझ साये का उजाले में भला क्यूँ ढोइये देखना है देखिये हरइक नज़ारा शौक़ से ख़ुद नज़ारा हो न जाओ यूँ न उसमें खोइये ख़्वाब की इस फ़स्ल में होगा इज़ाफ़ा और भी जागती आँखों में कुछ नींदों के मोती बोइये बाद मुद्दत के मिले हो ऐ ‘ज़िया’ साहब अगर छोड़िए बोसा जबीं का अब लिपटकर रोइये ग़ज़ल 3 ख़्वाहिशों को हसरतों को तिश्नगी को मार के गाँव मुझको देखने हैं इस नदी के पार के दिल मेरा उम्मीद से क्यूँकर बँधा है क्या पता जबकि हैं आसार सारे यार से इनकार के हमने कब चाहा कि देखें पाँव तेरे नाज़नीं हम हैं दीवाने फ़क़त पाज़ेब की झनकार के कुछ दिनों से फूल अक्सर चुभ रहा है आँख में दिल ज़रा बहले कि अब क़िस्से सुनाओ ख़ार के है अगर मुमकिन तो फिर आकर मिलो बुधवार को मुंतज़िर हम रह न पाएंगे सुनो इतवार के अपने ही हाथों से सर पे छाँव कर ली धूप में पर गये कब साये में अहसान की दीवार के वो ‘ज़िया’ है उससे मिलकर तुम ज़िया ही पाओगे ख़ुशबुएं रहती हैं दामन में सदा गुलज़ार के संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल – मुझपे नज़रे इनायत मगर कीजिए डॉ. यासमीन मूमल का गीत – उड़ जाए चुनरिया भी सर से आमोद कुमार की ग़ज़ल – लोग बातें तो करते हैं, हँसते नहीं 1 टिप्पणी सुभाष पाठक ,लाज़वाब ग़ज़ल कही है । Dr Prabha mishra जवाब दें Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
सुभाष पाठक ,लाज़वाब ग़ज़ल कही है ।
Dr Prabha mishra