कहानी मुझको मुझतक
ढूंढ़कर लाने लगी है
मै अपने ही चुने
किरदार में खोने लगा हूँ
ः
बढ़ आरोह से आगे
थमा अवरोह के पीछे
चरम सीमा पर हूं
विस्तार में खोने लगा हूँ।
मै अपने ही चुने ……..
ः
कभी रंगमंच का चेहरा
कभी नेपथ्य में ठहरा
मैं दर्शक दीर्घा के
प्यार में खोने लगा हूँ।
मै अपने ही चुने ………
ः
विरह पत्थर पे लिख आया
मिलन फूलों पे लिखता हूँ
मै अपने ही लिखे
श्रृंगार में खोने लगा हूं।
मैने डॉ प्रभा मिश्र जी की सभी रचनाओं को पढ़ा है बडे मौलिक ढंग से अपनी बात गीत या ग़ज़ल में कहदेने का तरीका अद्भुत है।