ताम्र पत्र पे भाव उकेरे
प्रेम निवाला मुझे खिलाना
आस अटारी चढ के बैठी
उधङे ह्दय को आ सिलाना—
गूथी हिल मिल है मेल लङी
बाते बीती क्यो बिसराते
उमङ बहे अब मेरी अंखिया
झूठे शब्दो मे भरमाते
काल चक्र निर्धारित करके
भूल चुके क्या याद  दिलाना—-
क्षति विक्षिप्त हुई सरल कामना
पवन विरह की उङे निगोङी
कुटिल भाव क्यो मन मे उपजे
झलक दिखा दो आ के  थोड़ी
चंदा की किरणे बुन आती
नैन डगर से शहद पिलाना —-
तरंगिणी मिलती जलनिधि से
शशि छटक तारो को चूमती
गिरती स्वाती चातक उर में
बरखा मेघा साथ घूमती
पुनः लौट के आता सावन
बागों मे अब पुष्प खिलाना

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