झूठे शिकंजे अगर तुम कसते नहीं,
रास्तों मे इस तरह हम फँसते नहीं ।
भीड़ मे तन्हाई भी शामिल हो गई,
लोग बातें तो करते हैं, हँसते नहीं  ।
बादल भी अब सियासतदाँ हो गए,
आते हैं, गरजते हैं,  बरसते नहीं ।
खुशियाँ माना तुम्हारी हैं महँगी बहुत,
गम हमारे भी तो कोई सस्ते नहीं।
अब तो दूर से ही हाथ हिला देते हैं वो,
पास आकर करते कभी नमस्ते नहीं ।
खबर लॉक डाऊन की होती अगर,
वह शहरों मे आकर बसते  नहीं ।
इमदाद बीच मे जो गायब न होती,
दाने दाने को वह यूँ तरसते नहीं
“आमोद” थोड़ी तुम भी चापलूसी सीख लो,
यूँ बनते कामयाबी के रस्ते नहीं।
मुरादाबाद में जन्म . एम.एस.सी.भौतिक शास्त्र एवं गणित, सेवा निवृत लेक्चरर, साहित्य सृजन के अतिरिक्त सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षणिक क्षेत्रों मे सक्रिय और संघर्षशील रहने के कारण अनेक बार जेल जाना पड़ा, इमरजेन्सी मे अट्ठारह माह मीसा के अंर्तगत तन्हाई मे जेल मे रहे। छः काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। सम्मान एवं पुरस्कारः शताब्दी साहित्य सम्मान, हिन्दी साहित्य सममेलन पटना, साहित्य श्री सम्मान कोटा राजस्थान, साहित्य कुसुमाकर सम्मान नाथद्बाराराजस्थान, बंगलूरू की साहित्य संस्थाओं,मुरादाबाद, दिल्ली,नैनीताल आदि अन्य स्थानो पर सम्मानित एवं पुरस्कृत

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.