आशुतोष कुमार की ग़ज़ल
ज़िंदगी इश्क़ में सँवर जाये,
आशिक़ी तो खुदा की नेमत है,
तू पिला दे जिसे यहां साकी,
प्रीत गहरी अगर पिया की हो,
छू ले इक बार जो नज़र तेरी,
है नया दौर ये मुहब्बत का,
जल रहे हैं किसान खेतों में,
आसमाँ है न तो ज़मीं बाकी,
बाढ़ संभाल लें अगर जो हम,
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Dr Prabha mishra
जी प्रणाम हार्दिक आभार
हंस के सूखा फ़िर गुज़र जाए… बहुत अच्छी रचना
जी प्रणाम हार्दिक आभार