ज़िंदगी इश्क़ में सँवर जाये,
जिस तरफ भी तेरी नजर जाये।
आशिक़ी तो खुदा की नेमत है,
दीद हो और आँख भर जाये।
तू पिला दे जिसे यहां साकी,
होश में फिर कहाँ वो घर जाये।
प्रीत गहरी अगर पिया की हो,
रंग मेंहदी की फ़िर निखर जाये।
छू ले  इक बार जो नज़र तेरी,
ज़िन्दगी की थकन उतर जाये।
है नया दौर ये मुहब्बत का,
वो नहीं हद से जो गुज़र जाये।
जल रहे हैं किसान खेतों में,
आग देखो तो भूख मर जाये।
आसमाँ है न तो ज़मीं बाकी,
बोल इंसान अब किधर जाये।
बाढ़ संभाल लें अगर जो हम,
हँस के सूखा भी फ़िर गुज़र जाये।

4 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.