Saturday, July 27, 2024
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बिट्टू जैन सना की ग़ज़ल – भूख ईमान पे भारी है कि डरना है उसे

वस्ल की रात है श्रृंगार तो करना है उसे
हो भले देर मगर सजना-सँवरना है उसे
मुफ़लिसी आँख दिखाए कभी मुमकिन ही नहीं
भूख ईमान पे भारी है कि डरना है उसे
बेवफ़ाई की अगर लत है तो सच मानियेगा
वादा हर रोज़ ही करना-ओ-मुकरना है उसे
दर-हक़ीक़त कोई आशिक़ कभी मरता न मगर
रोज़ आग़ोश-ए-हसीना में तो मरना है उसे
ज़िंदा हर शख़्स ही ज़िंदा हो ज़रूरी तो नहीं
ज़िंदा है गर तो किसी दिल में उतरना है उसे

बिट्टू जैन सना

संपर्क – [email protected]

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