Saturday, July 27, 2024
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डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल – हम को जीना पड़ा जतन कर के

हम को जीना पड़ा जतन कर के
एक परदेस को वतन कर के
कैसी यादों में आँखें खोली हैं
रोशनी आ रही है छन कर के
हर घड़ी पूछती है तन्हाई
कितने पछताए हम मिलन कर के
एक चेहरा मिला था सपने में
जिसको देखा किये सजन कर के
मुझ से चलना जिन्होंने सीखा था
अब वही देखते हैं तन कर के
ख़ुद को तन्हा न जानिए हर पल
ख़ुद को रखिएगा अंजुमन कर के

 

डॉ रूबी भूषण
102, शिवराज अपार्टमेंट,
ईस्ट बोरिंग कैनल रोड,
पंचमुखी हनुमान मंदिर के समीप,
पटना-800001
मोबाइल – +91-9931918723
Email – [email protected] 
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