हम को जीना पड़ा जतन कर के
एक परदेस को वतन कर के
कैसी यादों में आँखें खोली हैं
रोशनी आ रही है छन कर के
हर घड़ी पूछती है तन्हाई
कितने पछताए हम मिलन कर के
एक चेहरा मिला था सपने में
जिसको देखा किये सजन कर के
मुझ से चलना जिन्होंने सीखा था
अब वही देखते हैं तन कर के
ख़ुद को तन्हा न जानिए हर पल
ख़ुद को रखिएगा अंजुमन कर के

 

डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल - हम को जीना पड़ा जतन कर के 3

डॉ रूबी भूषण
102, शिवराज अपार्टमेंट,
ईस्ट बोरिंग कैनल रोड,
पंचमुखी हनुमान मंदिर के समीप,
पटना-800001
मोबाइल – +91-9931918723
Email – ruby4u30@gmail.com 

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.