हम को जीना पड़ा जतन कर के
एक परदेस को वतन कर के
कैसी यादों में आँखें खोली हैं
रोशनी आ रही है छन कर के
हर घड़ी पूछती है तन्हाई
कितने पछताए हम मिलन कर के
एक चेहरा मिला था सपने में
जिसको देखा किये सजन कर के
मुझ से चलना जिन्होंने सीखा था
अब वही देखते हैं तन कर के
ख़ुद को तन्हा न जानिए हर पल
ख़ुद को रखिएगा अंजुमन कर के