डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए
दिल में दफ़ना चुके थे जिन्हें वो भी फ़ौरन अयाँ हो गए
अब किसी की ज़बां में यहाँ प्यार का रस रहा ही नहीं
हाथ पकड़े हुए ख़्वाब में साथ तेरे टहलती रही
शहरे उल्फ़त में जितने भी थे बच गए ज़लज़ले में सभी
मेरी खुशियाँ तो आयीं नज़र हर किसी को यहाँ दोस्तो
दूरियाँ पास जब तक रहीं चैन दोनों न पाए कभी
राज़ कोई तो ये खोल दे पास आकर कभी ‘यासमीं’
बस इसी फिक्र में “यास्मीं” नींद अपनी उड़ाती रही
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