Saturday, July 27, 2024
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डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए

दिल में दफ़ना चुके थे जिन्हें वो भी फ़ौरन अयाँ हो गए
कर लिया  उसने  इक़रार  जब सारे अरमाँ जवाँ हो गए।
अब किसी की ज़बां में यहाँ प्यार का रस रहा ही नहीं
भूल कर प्यार का हर सबक़  लोग अब बदज़ुबाँ हो गए।
हाथ पकड़े हुए ख़्वाब में साथ तेरे टहलती रही
आँख बेदार  जैसे  हुई  सारे मंज़र धुआँ हो गए।
शहरे उल्फ़त में जितने भी थे बच गए ज़लज़ले में सभी
देखते  देखते   मुन्हदिम  नफ़रतों  के  मकाँ  हो  गए।
मेरी खुशियाँ तो आयीं नज़र हर  किसी को यहाँ दोस्तो
दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए।
दूरियाँ  पास  जब  तक  रहीं  चैन  दोनों  न  पाए  कभी
जब मुहब्बत में दोनों मिले एक ही जिस्मों जाँ हो गए।
राज़ कोई तो ये खोल दे पास आकर कभी ‘यासमीं’
किस तरह अजनबी दिल यहाँ इश्क़ में हमज़ुबाँ हो गए।
बस इसी फिक्र में “यास्मीं”  नींद  अपनी उड़ाती रही
राहे हक़ पर वो कैसे चलें जो बशर बदगुमाँ हो गए।
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