होम ग़ज़ल एवं गीत डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे... ग़ज़ल एवं गीत डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए द्वारा डॉ. यासमीन मूमल - February 28, 2021 96 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet दिल में दफ़ना चुके थे जिन्हें वो भी फ़ौरन अयाँ हो गए कर लिया उसने इक़रार जब सारे अरमाँ जवाँ हो गए। अब किसी की ज़बां में यहाँ प्यार का रस रहा ही नहीं भूल कर प्यार का हर सबक़ लोग अब बदज़ुबाँ हो गए। हाथ पकड़े हुए ख़्वाब में साथ तेरे टहलती रही आँख बेदार जैसे हुई सारे मंज़र धुआँ हो गए। शहरे उल्फ़त में जितने भी थे बच गए ज़लज़ले में सभी देखते देखते मुन्हदिम नफ़रतों के मकाँ हो गए। मेरी खुशियाँ तो आयीं नज़र हर किसी को यहाँ दोस्तो दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए। दूरियाँ पास जब तक रहीं चैन दोनों न पाए कभी जब मुहब्बत में दोनों मिले एक ही जिस्मों जाँ हो गए। राज़ कोई तो ये खोल दे पास आकर कभी ‘यासमीं’ किस तरह अजनबी दिल यहाँ इश्क़ में हमज़ुबाँ हो गए। बस इसी फिक्र में “यास्मीं” नींद अपनी उड़ाती रही राहे हक़ पर वो कैसे चलें जो बशर बदगुमाँ हो गए। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं होली पर निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल फ़िरदौस ख़ान की ग़ज़ल निज़ाम फतेहपुरी की दो ग़ज़लें Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.