यह मानना तो संभव नहीं कि संतोष आनंद जी को कोई स्क्रिप्ट दिया गया होगा जिसके तहत वे अपने जीवन का दर्द वहां मौजूद निर्णायकों एवं श्रोताओं तक पहुंचा सकें। यानि कि उन्होंने जो कुछ भी कहा उस समय के हालात से प्रभावित हो कर कहा। वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति इमोशनल हो गया था और उसकी आँखें सजल हो उठी थीं।

पिछले सप्ताह एक वीडियो क्लिप यू-ट्यूब पर ख़ासा वायरल हुआ। इंडियन आइडल के इस वीडियो क्लिप में पुराने लोकप्रिय गीतकार संतोष आनंद व्हील-चेयर पर बैठे दिखाई दिये। उनके हाथों की ‘मूवमेण्ट’ और बोलने के अन्दाज़ से कुछ ऐसा आभास अवश्य हो रहा था कि उनकी सेहत और स्थिति में ख़ासी गिरावट आ गयी है। 
इंडियन आइडल के इस एपिसोड में संगीतकार प्यारेलाल भी मौजूद थे जिन्होंने संतोष आनंद के अमर गीत – ‘इक प्यार का नग़मा है, मौजों की रवानी है…’ की धुन बनाई थी।
शो के दौरान संतोष आनंद ने कहा,बरसों बाद मैं मुंबई आया हूं… अच्छा लग रहा है… एक उड़ते हुए पक्षी की तरह मैं यहां आता था और चला जाता था… रात-रात भर जाग के मैंने गीत लिखे… मैंने गीत नहीं, अपने खून और कलम से लिखे… इतना अच्छा लगता है वो दिन याद करके… आज तो मेरे लिए ऐसा लगता है जैसे दिन भी रात हो गया है।
उन्होंने आगे कहा, “मैंने एक बात हमेशा कही है, ग़ौर से सुन लीजिए… हथियार टूटता है हौसला नहीं। मेरी टांग भी टूट गई, चार-चार बार टूटी। लेकिन मेरा कलेजा नहीं टूटा है… अभी भी। मेरे पास कुछ भी नहीं है, लेकिन बहुत कुछ है। लेकिन एक बात मैं कहना चाहता हूं कि मुझे यह लगता था कि मैं अपनी कविता से दुनिया जीत लूंगा।
दरअसल कुछ अरसा पहले ही संतोष आनंद के बेटे संकल्प ने (जो कि गृह मंत्रालय में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को समाजशास्त्र और अपराध शास्त्र की शिक्षा देते थे) अपनी पत्नी और बच्ची के साथ मिलकर आत्महत्या कर ली थी। इस आत्महत्या में उनकी बच्ची ज़िंदा बच गई लेकिन संतोष आनंद के बेटे और बहू हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए। इस घटना ने संतोष आनंद को पूरी तरह से तोड़ दिया था।
संतोष जी ने जब कहा, “अब आकर लगता है कहीं तो संतोष आनंद ग़लत था। आज मेरे पास ना पावर है और ना पैसा। लेकिन जनता का प्यार बहुत मिला।” तो इंडियन आइडल की एक जज नेहा कक्कड़ काफ़ी इमोशनल हो गयीं। उसकी आँखों में आँसू आ गये। उसने अपनी भावनाओं के प्रभाव में संतोष जी को पाँच लाख रुपये देने की पेशकश की। संतोष आनंद ने बहुत शालीनता से ये पैसे लेने से इन्कार कर दिया। मगर नेहा ने उन्हें इमोशनल होकर कहा कि वह उनकी पोती जैसी है। उन्हें पैसे ले लेने चाहियें। इस पर संतोष जी ने कहा, “तो, मैं स्वीकार कर लेता हूं।”
इसके बाद संगीतकार विशाल डडलानी ने भी संतोष जी से कहा कि वे अपने गीत उन्हें उपलब्ध करवाएं जिनकी धुनें वे तैयार करेंगे। 
मन को कष्ट हुआ यह देखकर कि जिन संतोष आनंद का लिखा गाना गाकर रेलवे स्टेशन पर गाना गाने वालीं रानू मंडल पूरी दुनिया में फ़ेमस हो गईं उसी गीत के गीतकार बीते कई सालों से गुमनामी का जीवन जी रहे हैं।
यहाँ तक जो कुछ लिखा है वो सब इंडियन आइडल की वीडियो में रिकॉर्ड किया हुआ है। यानि कि कहीं किसी प्रकार के झूठ की कोई गुंजाइश नहीं है। इसके बाद आई बहुत से मित्रों और संतोष जी के प्रशंसकों की प्रतिक्रियाएं। 
युवा लोकप्रिय गीतकार मनोज मुंतशिर ने ट्वीट किया, “शर्म आती है जब सोशल मीडिया ख़बर बेचने के लिए इतना गिर जाता है! एक लेखक के स्वाभिमान की धज्जियाँ उड़ा के रख दीं। संतोष आनंद जी एक अच्छी, सुखी और सार्थक ज़िंदगी जी रहे हैं. कभी मिलो उनसे, उनकी ख़ुद्दारी का क़द बड़े-बड़ों को बौना करने के लिए काफ़ी है। SHAME.
वहीं मित्र हरीश नवल ने भी व्हट्सएप पर संदेश दिया, “संतोष आनंद जी के सम्पर्क में मैं रहा हूँ। वे ग़रीब नहीं हैं, अशक्त हैं और वह भी अत्यधिक मदिरा सेवन से। तेजेंद्र जी, आपके दिल्ली कॉलेज की वर्तमान बिल्डिंग के पीछे एक स्कूल में संतोष जी कार्यरत थेवहाँ मैं उनसे मिलने जाया करता था… अभी भी कभी-कभी वे कवि सम्मेलनों में जाते हैं और उन्हें सम्मान और राशि प्राप्त होती है। वे एक बहुत श्रेष्ठ रचनाकार हैं, उन्हें और अधिक मिलना चाहिए, इसमें दो राय नहीं… उन्हें नमन !”
लोकप्रिय ग़ज़लकार आलोक श्रीवास्तव ने फ़ेसबुक पर एक लंबी सी पोस्ट डाली है जिसमें वे लिखते हैं, “संतोष आनंद जी बड़े गीतकार हैं। इंडियन आइडल में उन्हें जो सम्मान मिला, वे उससे कहीं ज़ियादा के मुस्तहक़ हैं। ‘क़लम’ और ‘कलाम’ के ऐसे कितने ही लीजेंड हैं, जिनकी तरफ़ फ़िल्म इंडस्ट्री और तमाम सशक्त माध्यमों को ध्यान देना चाहिए… अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक़, ख़ुद हमें भी देखना चाहिए।
पर कुछ लोग इस एपिसोड को इंडियन आइडल और उसके कलाकारों की टीआरपी से जोड़ कर देख रहे हैं. उन पर निशाना साध रहे हैं। उन बयानवीरों से पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने अपने इन बुजुर्गों के लिए, अब तक क्या किया है? कमज़र्फ़ ख़ुद तो कुछ करते नहीं, दूसरा कोई करे तो उसकी राह में भी काँटे बो देते हैं।
यह मानना तो संभव नहीं कि संतोष आनंद जी को कोई स्क्रिप्ट दिया गया होगा जिसके तहत वे अपने जीवन का दर्द वहां मौजूद निर्णायकों एवं श्रोताओं तक पहुंचा सकें। यानि कि उन्होंने जो कुछ भी कहा उस समय के हालात से प्रभावित हो कर कहा। वहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति इमोशनल हो गया था और उसकी आँखें सजल हो उठी थीं। 
ऐसे में यह सोचना कि नेहा कक्कड़ ने किसी सोची समझी  प्लानिंग के तहत पाँच लाख रुपये देने की पेशकश की होगी, उसके साथ नाइंसाफ़ी होगी। जो कुछ हुआ एक मामले में अच्छा हुआ कि पूरी फ़िल्मी दुनिया, आभासी दुनिया और आम जनता को संतोष आनंद के हालात की जानकारी मिल गयी। अब देखना यह है कि फ़ेसबुक पर अपना छींकना, बुख़ार होना, परेशान होना, ख़ुश होना, जन्मदिन तक साझा करने वाले महान इन्सान बिना किसी प्रचार के इस बेहतरीन गीतकार की कितनी गुप्त सहायता करते हैं !
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

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