Friday, October 11, 2024
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पाकिस्तान पर सुशील उपाध्याय के कुछ नोट्स – न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जाने…!

कई बार ऐसा लगता है कि अगर पाकिस्तान नाम का दुश्मन ना हो तो शायद हमारा वजूद खतरे में पड़ जाए। चाहे हमारे मीडिया माध्यम हों, सरकारें हों या सत्तापोषित अन्य संस्थाएं, वे लगातार हमारे मस्तिष्क में इस बात को रोपित करती हैं कि पाकिस्तान एक शत्रु देश है और भारत कितना भी अनुकूल व्यवहार कर ले, उसमें कोई परिवर्तन नहीं आएगा। 
जब तक हम एक पहलू को देखते हैं, तब तक ये सारी चीजें ठीक लगती हैं। पाकिस्तान की सरकार या वहां की फौज को सुनें तो इस बात में कोई संदेह नहीं रह जायेगा कि हम दुश्मन ही हैं और हजारों साल तक दुश्मन ही रहने वाले हैं, लेकिन वहां की नई पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा शायद ऐसा नहीं सोचता। इसका एक बड़ा प्रमाण मौजूद है। यूट्यूब पर लाहौर (पंजाब) यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के कुछ वीडियो देखने को मिले। 
एक वीडियो में वहां की एक छात्रा अपने अन्य युवा साथियों से भारत के बारे में कुछ सवाल करती है और उन सबके जवाब आश्चर्यजनक है, बल्कि आंख खोलने वाले हैं। उनके दिल-दिमाग में एक सपना पल रहा है कि वे किसी दिन हिंदुस्तान देखकर आएंगे। जब उनसे भारत की संस्कृति, यहां की फिल्मों, यहां की भाषा, रहन-सहन के बारे में पूछा जाता है तो ज्यादातर का जवाब बेहद अनुकूल होता है। उनके जवाब में दुश्मनी की झलक देखने को नहीं मिलती।
इस वीडियो को देखने के बाद मैंने कुछ ऐसे ही अन्य वीडियो भी तलाश किए और ऐसे दर्जनों वीडियो मिल गए जिनमें पाकिस्तान की औरतों, वहां के बुजुर्ग लोगों और युवाओं से हिंदुस्तान के बारे में उनके ख्यालात पूछे गए थे। वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि हमारे बीच की दुश्मनी दोनों तरफ के लोगों को प्रभावित करती है और उन्हें उम्मीद है कि एक दिन भारत और पाकिस्तान के बीच में उनके युवाओं के कारण एक मजबूत रिश्ता बनेगा।
पाकिस्तानियों के लिए यह बात बेहद आकर्षण का केंद्र है कि किस तरह भारत के युवा अपनी तकनीकी योग्यता के बल पर पूरी दुनिया में छा गए हैं। वे भी अपने यहां पर बेंगलुरु जैसा आईटी हब देखना चाहते हैं। (यहां मैं उन लोगों की बात या हिमायत नहीं कर रहा हूँ जिन्हें दिमाग मे बचपन से ही नफरत और जिहाद का जहर घोला गया हो।)
जो मार्मिक पहलू है, इन वीडियो में, वह उन युवाओं से जुड़ा है, जिनके दादा-परदादा हिंदुस्तान से पाकिस्तान गए थे। ऐसे ही एक युवा से जब पूछा गया कि क्या वह कभी हिंदुस्तान जाएगा तो उसने बहुत अपनेपन के साथ कहा-हां। उसने बताया, वो राजपूतों के खानदान से है और अपने पुरखों की धरती देखना चाहता है। उसने अंबाला जिले में अपने गांव का नाम भी बताया, जहां अब भी राव राजपूत रहते हैं।
अब आप आश्चर्य कर सकते हैं कि जिस युवा का जन्म पाकिस्तान में हुआ हो, न केवल उसका, बल्कि उसके पिता भी पाकिस्तान में जन्मे हों और वह हिंदुस्तान में अंबाला में अपना गांव आकर देखना चाहता है तो यह अपने आप में बड़ी और उल्लेखनीय बात है।
इन सब बातों को कहते और लिखते वक्त एक बड़ा खतरा यह रहता है कि आपको पाकिस्तान समर्थक मान लिया जाए। पाकिस्तान की पंजाब यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने यूट्यूब पर मौजूद अपने इंटरव्यू में कहा कि वे जब भी किसी अकादमिक प्रोग्राम में भारत जाते हैं तो उन्हें एक बार भी ऐसा नहीं लगता कि वे किसी पराये मुल्क में हैं। वे कहते हैं, ‘ हिंदुस्तान में लोग हम जैसे हैं। सलीका हमारे जैसा है। खानपान और पहनावा भी अलग नहीं है। बोलने-सोचने का ढंग हमारे जैसा है। बस, हमें उन लोगों को पहचानने और उनसे सावधान रहने की जरूरत है जिनके लिए दुश्मनी का पेड़ ही एकमात्र जगह है जिसे पानी दिया जा सकता है।’
ऐसा ही कुछ अनुभव ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली एक फेसबुक मित्र रुचि भारती को भी हुआ। उन्होंने 22 फरवरी, 21 को अपनी फ़ेसबुक वॉल पर लिखा, ” ससुर जी की अचानक तबियत खराब होने के चलते मेरे पति को इंडिया जाना पड़ा। तीन महीने हो चुके हैं, लेकिन वो कोविद -19 प्रतिबंध के कारण ऑस्ट्रेलिया वापस नही आ पा रहें। दोनो बच्चों को सम्हालना, काम करना थोड़ा मुश्किल हो रहा है।
जब मुझे किसी जरूरी काम या मीटिंग में जाना होता है तो एक ही परिवार है जिस पर मैं सबसे ज्यादा यक़ीन करती हूँ, जहाँ अपने बच्चों को छोड़ पाती हूँ। वो एक पाकिस्तानी परिवार है जो पिछले कई सालों से हमारे परम स्नेही मित्र हैं।
मेरे पति और उनका पाकिस्तानी सहपाठी पिछले 18 सालोँ से दोस्त है। दोनो के अपनी पढ़ाई मेलबर्न से ही पूरी की। उनका नाम फ़ारूख़ अहमद और पत्नी का नाम सायका है। जब हमारा मेलबर्न में घर बन रहा था, तब कुछ महीनों के लिये उनके घर पर ही रहे।
तब मैं इंडिया से नई-नई आई थी। इससे पहले कभी किसी पाकिस्तानी से नही मिली थी तो बड़े गौर से उनकी दिनचर्या, बात करने का ढंग, व्यवहार देखा करती थी। जब उन सभी को एकटक देखती तो वो मुझे देखकर कहते,’ तुम्हारी ग़लती नही है। हमारे मुल्क वाले दुश्मनों को इतने क़रीब से कहा देख पाते हैं, वो भी ज़िंदा।
इस बात पर हम सभी हँसते। वो हम जैसे ही हैं और हम उनके जैसे। सही मायनों में हम एक जैसे ही हैं। वो भी अपने मुल्क की सियासत के मारे हैं और हम भी। शुक्र है कि मेरे जीवन में कुछ ऐसे बेहतरीन मित्र हैं जिनका प्रेम और विश्वास हमारे धर्म, जाति, नस्ल, क्षेत्र के दायरों से मुक्त है।”
अब, एक बार अपने भीतर गौर से देखिए तो आप सच में पाएंगे कि हम अपने पड़ोस में एक सच्चे और पक्के दोस्त की तलाश में हैं। और अगर वह दोस्त पाकिस्तान में हो तो यह बात और भी मजेदार होगी।
डॉ. सुशील उपाध्याय
डॉ. सुशील उपाध्याय
प्रोफेसर एवं प्रिंसिपल, सीएलएम पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज. संपर्क - [email protected]
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