निधि भार्गव ‘मानवी’ की ग़ज़ल
प्यार तुम्हारा सबसे जुदा है, समझो न
तुम छूलो तो पत्थर सोना बन जाए
इतना प्यार कहाँ से लेकर आए हो
शर्म-ओ-हया की बेड़ी हमको जकड़े है
अंदर अंदर इश्क़ का कोपल फूट रहा
जान हथेली पर ले कर हम निकले हैं
मेरी ग़ज़लों में प्यार निधि का देखो
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निधि भार्गव जी की प्यार में डूबी गजल बढ़िया।
आप पत्रिका पढ़ती हैं अनिता जी… हमारे लिये विशेष प्रसन्नता की बात है।