होम ग़ज़ल एवं गीत निधि भार्गव ‘मानवी’ की ग़ज़ल ग़ज़ल एवं गीत निधि भार्गव ‘मानवी’ की ग़ज़ल द्वारा निधि भार्गव मानवी - January 9, 2022 130 2 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet प्यार तुम्हारा सबसे जुदा है, समझो न कैसे बताऊँ दिल में क्या है, समझो न तुम छूलो तो पत्थर सोना बन जाए तुम से लिपट कर जान लिया है, समझो न इतना प्यार कहाँ से लेकर आए हो दिल ये जिसमें डूब गया है, समझो न शर्म-ओ-हया की बेड़ी हमको जकड़े है वर्ना क्या क्या टूट रहा है, समझो न अंदर अंदर इश्क़ का कोपल फूट रहा रोग ये मुझको कैसा लगा है, समझो न जान हथेली पर ले कर हम निकले हैं इश्क़- ओ- वफा का पाठ पढ़ा है, समझो न मेरी ग़ज़लों में प्यार निधि का देखो लफ़्जों में तेरा जलवा है, समझो न संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ रूबी भूषण की ग़ज़ल – हम को जीना पड़ा जतन कर के सतीश उपाध्याय का नवगीत – मुझ में ही सपने पलते हैं आशा शैली की ग़ज़ल – साथ तू था न तेरा साया था 2 टिप्पणी निधि भार्गव जी की प्यार में डूबी गजल बढ़िया। जवाब दें आप पत्रिका पढ़ती हैं अनिता जी… हमारे लिये विशेष प्रसन्नता की बात है। जवाब दें कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
निधि भार्गव जी की प्यार में डूबी गजल बढ़िया।
आप पत्रिका पढ़ती हैं अनिता जी… हमारे लिये विशेष प्रसन्नता की बात है।