निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल
सारे जहाँ में कोई, हमदम नहीं हमारा।
नादान दिल को मेरे, धोखा दिया उन्होंने।
अनजान बन गए वो, बर्बाद करके मुझको।
अरमान दिल के सारे, दिल में मचल रहे हैं।
रुख़ से नक़ाब हटते, इक आह दिल से निकली।
तारीकियों में भटके, इस आस पर सदा हम।
मरने का ग़म नहीं है, ग़म तो निज़ाम ये है।
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